हजारों साल से प्राकृतिक सरसों हमारे भरोसे का साथी रहा है. प्राकृतिक सरसों इसलिए कहा क्योंकि अब एक नया सरसों आ सकता है जिसे वैज्ञानिक भाषा में जेनेटिकली मोडिफाइड मस्टर्ड कहते हैं. हिन्दी में जीएम सरसों कह सकते हैं. पूरी दुनिया में जीएम फूड यानी जेनिटिकली मोडिफाइड अनाजों के खाने और असर को लेकर बहस चल रही है. भारत में इस बहस का नतीजा यह निकला कि 2010 में बीटी ब्रिंजल, बीटी बैंगन पर रोक लगा दी गई. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी जीईएसी ने पर्यावरण मंत्रालय को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जीएम मस्टर्ड की व्यावसायिक खेती की अनुमति दी जा सकती है. पर्यावरण मंत्रालय की वेबसाइट में जीएम फूड को लेकर सवाल-जवाब छापे गए हैं. इसमें कहा गया है कि सारे जीएम फूड को हम एक तराजू पर नहीं तौल सकते.
अलग-अलग जीएम अलग-अलग जीन से बनाए जाते हैं. इसलिए हर जीएम फूड का परीक्षण का नतीजा एक दूसरे से अलग हो सकता है. संभव नहीं है कि सारे जीएम फूड के बारे में एक जवाब दे दिया जाए कि सुरक्षित नहीं हैं. अंतरराष्ट्रीय बाजारों में जीएम फूड उपलब्ध है और इससे स्वास्थ्य को खास खतरा नहीं है. जिन देशों में अनुमति है, वहां इस्तेमाल करने वाले लोगों में किसी प्रकार की खराबी के कोई संकेत नहीं मिले हैं.
जेनिटिकली मोडिफाइड फूड की वैज्ञानिक परिभाषा तो नहीं दे सकता मगर इसमें कृत्रिम रूप से प्रोटीन की क्षमता पैदा कर दी जाती है. इस तरह से बना दिया जाता है कि इसे कीड़े बर्बाद न कर सकें, इसके बीज को किसी प्रकार का संक्रमण न हो क्योंकि इसके भीतर खास किस्म का ताकतवर जीन होता है. सवाल उठता है कि इसका उपभोग करने पर इंसान और जानवर के शरीर में वह जीन प्रवेश कर जाएगा.
पर्यावरण मंत्रालय की साइट पर कहा गया है कि जीएम फूड खाने से मानव शरीर में ट्रांसजीन के प्रवेश के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं. जीएम फूड का बढ़ा हुआ प्रोटीन शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाता है. जीम मस्टर्ड के बीज पारंपरिक सरसों के बीज की तरह ही सुरक्षित हैं. जीएम मस्टर्ड से बना तेल या दवा वैसे ही सुरक्षित है जैसे पारंपरिक सरसों से बना तेल या दवा. बल्कि स्वाद से लेकर औषधीय गुण तक में कोई अंतर नहीं होता है. जीएम मस्टर्ड सरसों की पारंपरिक वेरायटी वरुणा और आरएल 1359 के जैसा ही पोषक होता है.
जिस तरह से मंत्रालय की वेबसाइट पर सारे सवालों के जवाब दिए गए हैं उससे यही लगता है कि जीएम फूड से सुरक्षित दुनिया में कुछ है ही नहीं. यह एक ऐसा फूड है जो सारे सवालों के जवाब दे सकता है. यह सर्वगुण संपन्न है. कुछ भी पूछिए मंत्रालय की वेबसाइट कहती है कि कोई खतरा नहीं है. गाय-भैंस जीएम सरसों की खली खा लें, दूध पर कोई असर नहीं पड़ेगा, मधुमक्खियां जीएम सरसों के फूलों का रस चूस लें, उन पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
जीएम मस्टर्ड Dmh-11 का हाइब्रीड रूप है जिसे दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर जेनेटिक मेनिपुलेशन ऑफ क्राप प्लांट्स ने विकसित किया है. इसे भारत सरकार की संस्थाओं ने ही आर्थिक सहयोग दिया है. जीएम सरसों से उत्पादकता बढ़ेगी, दावा है कि 30-35 प्रतिशत उत्पादकता बढ़ जाएगी, जिससे हम सरसों तेल का आयात कम कर सकेंगे. इस वक्त हम सालाना साठ हज़ार करोड़ खाने के तेल का आयात करते हैं. हम दुनिया के किसी ऐसे देश के बारे में नहीं जानते हैं जिसने जीएम फूड के उत्पादन के बाद उस अनाज का आयात ही बंद कर दिया हो. आलोचक कहते हैं कि जीएम मस्टर्ड की उत्पादकता का परीक्षण सरसों की जिस वेरायटी की तुलना में किया गया है वह सही नहीं है. RH-749 किस्म से एक हेक्टयेर में 2600- 2800 किलो सरसो हो जाता है. DMH-11 हाइब्रीड सरसों से एक हेक्टेयर में 2,626 किलो प्रति हेक्टेयर उत्पादन का दावा है.
200 से 400 ग्राम प्रति हेक्टेयर अगर उत्पादन बढ़ भी जाए तो क्या यह बहुत है, क्या यह वाकई बड़ा कमाल है, जिसे हम पारंपरिक खेती में सुधार के ज़रिए हासिल नहीं कर सकते. हमारे सपनों के देश अमरीका में भी जीएम फूड को लेकर एक राय नहीं है. वैसे वहां ट्रंप को लेकर भी एक राय नहीं है. अमरीका में लोग वर्षों से जीएम फूड खा रहे हैं. मक्का और सोयाबीन तो जीएम ही उगाते हैं शायद वहां. पिछले साल वहां बहस हुई कि पता होना चाहिए कि जीएम खा रहे हैं या नहीं. तो लेबल होना चाहिए इसे लेकर बहस हुई और अलग-अलग राज्यों में 100 से ज्यादा बिल पेश कर दिए गए. लेबल का विरोध करने वाले कहते थे कि जब जीएम अनाज सुरक्षित है तो क्यों लिखें कि यह जीएम अनाज है. दशकों तक जीएम अनाज खाने के बाद अमरीकी लोगों को पता चला कि जीएम फूड के लिए जिन कीटनाशकों का इस्तेमाल होता है वो ख़तरनाक हैं.
हर्बिसाइड कहते हैं ऐसी दवाओं को. विश्व स्वास्थ्य संगठन की कैंसर रिसर्च शाखा ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जीएम फसलों के नीचे उगने वाले खरपतवार को खत्म करने वाले हर्बिसाइड में ग्लाइफोसेट होता है जो एक तरह से कैंसर पैदा करने वाला कार्सिनोजेन हैं. इसके खिलाफ देश भर में कई संगठन सरसों सत्याग्रह चला रहे हैं. स्वदेशी जागरण मंच ने 23 मई को प्रधानमंत्री मोदी को एक पत्र लिखा है. कहा है कि जीएम सरसों की खेती की अनुमति देने में जल्दबाज़ी नहीं होनी चाहिए. स्वदेशी जागरण मंच का कहना है कि जीएम मस्टर्ड के पक्ष में आंकड़ों की बाजीगारी की गई है. जीएम मस्टर्ड के स्वदेशी होने का दावा ग़लत है. 2002 में ठीक ऐसे ही उत्पाद की खेती के लिए एक कंपनी ने अनुमति मांगी थी. जीएम सरसों की उत्पादता पारंपरिक सरसों से बिल्कुल ज़्यादा नहीं है. बहुत सी देसी सरसों है जो जीएम सरसों से ज्यादा उत्पादक है.
स्वदेशी जागरण मंच के संयोजक डॉ अश्विनी महाजन ने जिस वैज्ञानिक अंदाज़ में प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी है उससे लगता नहीं है कि कोई उनके दावे को गणेश जी के ट्रांसप्लांट वाले उदाहरण से काट सकता है. मेरे कहने का मतलब है कि महाजन जी ने पूरे तथ्यों के साथ और वैज्ञानिकता के आधार पर चिट्ठी लिखी है अंग्रेज़ी में. वैसे हिन्दी करने में मुझे भी दिक्कत आई है.
18 मई को मिंट अखबार से 14 साल के शोध के बाद जीएम सरसों की वेरायटी तैयार करने वाले दीपक पेंटल का इंटरव्यू छपा है जिसमें उन्होंने कहा है कि आदमी हर दिन दो से तीन लाख प्रकार के प्रोटीन का सेवन करता है. सरसों में अस्सी हज़ार प्रकार के प्रोटीन होते हैं. जीएम सरसों बरनेस और बरस्तर जीन से बना है जो ऐसा प्रोटीन ही पैदा नहीं करता है जिससे एलर्जी और टॉक्सिक पैदा हो. इसलिए इससे कोई नुकसान नहीं होगा. जीएम टेक्नालाजी के खिलाफ जो झूठ फैलाया जा रहा है वह post truth जगत का हिस्सा है. post truth से हम पत्रकार लोग तो परेशान हैं ही, लगता है वैज्ञानिक लोग भी कष्ट में हैं. वैसे जीएम फूड का विरोध post truth के प्रचलन में आने से कई साल पहले से हो रहा है. ट्रंप के जीतने के बाद यह शब्द प्रचलित हुआ, मतलब यह है कि सत्य पर लोगों की भावना भारी पड़ जाती है. जो भीड़ मान ले वही सत्य है. पश्चिम का तो पता नहीं, हमारे धर्म ग्रंथों में post truth के अनेक प्रसंग मिल जाएंगे. बहरहाल, पेंटल साहब का दावा है कि इस रिसर्च को लेकर जितने भी परीक्षण हुए, सुरक्षा जांच हुईं वे किसी कंपनी के दबाव से नहीं हुई हैं. सरकार का पैसा लगा था, सरकार की एजेंसियां शामिल थीं.
This Article is From May 23, 2017
प्राइम टाइम इंट्रो : अहम सवाल, देश में जीएम सरसों की पैदावार होनी चाहिए?
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:मई 23, 2017 21:43 pm IST
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Published On मई 23, 2017 21:42 pm IST
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Last Updated On मई 23, 2017 21:43 pm IST
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