देश का चुनाव आयुक्त कैसा हो, क्या ऐसा हो कि घुटने पर झुक जाए, प्रधानमंत्री के खिलाफ आरोप लगे तो कार्रवाई करने से नहीं हिचके या दबाव पड़ने पर हां में हां मिलाता रहे. चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ से जो आवाज़ें आ रही हैं, उसे ध्यान से सुनिए, हाल के वर्षों में जो होता दिख रहा था, जिसे कहने की हिम्मत कोई नहीं कर पा रहा था, क्या सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ उन्हीं बातों को नहीं उठा रही है? क्या हमारा चुनाव आयोग निष्पक्ष है. महीना अप्रैल का और साल 2019, मामला था ओडिशा के संभलपुर के चुनाव पर्यवेक्षक का. मोहम्मद मोहसिन नाम के IAS अफ़सर ने प्रधानमंत्री के हेलिकॉप्टर की जांच कर दी. इस कारण उनका हेलिकाप्टर 15 मिनट की देरी से उड़ा. जस्टिस जोसेफ का यह कथन तो काल्पनिक था कि चुनाव आयुक्त ऐसा हो कि प्रधानमंत्री की जांच करने में भी न झिझके मगर मोहम्मद मोहसिन का यह कदम वास्तविक था, जिसके लिए चुनाव आयोग ने ही उन्हें निलंबित कर दिया.
मोहम्मद मोहसिन ने अपने निलंबन की चुनौती केंद्रीय प्रशासनिक पंचाट CAT में दी, CAT ने निलंबन पर रोक लगा दी. आरोप लगा कि चुनाव पर्यवेक्षक मोहम्मद मोहसिन ने प्रधानमंत्री की सुरक्षा में लगी SPG के निर्देशों के अनुसार काम नहीं किया. तब विपक्ष ने सवाल उठाया था कि ऐसा कोई नियम नहीं है कि चुनावों के दौरान जांच से किसी को छूट मिली हो. CAT ने कहा था कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी की निजी गाड़ी की तो चुनाव अधिकारियों ने कई बार जांच की, उनके खिलाफ तो कार्रवाई नहीं हुई. ओडिशा के मुख्यमंत्री की गाड़ी की जांच हुई. इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि जिन्हें एस पी जी सुरक्षा प्राप्त है, उन्हें हर चीज़ से छूट मिली हुई है. ndtv के रिपोर्टर अरविंद ने लिखा है कि कैट ने इस बात का भी ज़िक्र किया कि कर्नाटक की एक रैली में प्रधानमंत्री की रैली में काले रंग का एक बक्सा देखा गया मगर कोई कार्रवाई नहीं हुई. कैट के इस आदेश के बाद चुनाव आयोग ने IAS मोहम्मद मोहसिन का निलंबन वापस ले लिया और कहा कि वे अपने काडर कर्नाटक राज्य में ड्यूटी पर तैनात हो जाएं और वहां राज्य सरकार अनुशासनात्मक कार्रवाई करेगी. यह सब उस समय के अखबारों में छपा है. यह कहानी बताती है कि इस देश में मोहम्मद मोहसिन नाम के एक अफसर हैं जिन्होंने प्रधानमंत्री का हेलिकाप्टर चेक कर दिया मगर चुनाव आयोग ने ही निलंबित कर दिया. सुप्रीम कोर्ट में बहस हो रही है कि चुनाव आयुक्त ऐसा होना चाहिए जो प्रधानमंत्री की जांच करने से भी नहीं झिझके.
उस समय चुनाव आयोग ने कहा कि ऐसा कोई आदेश है कि एसपीजी सुरक्षा प्राप्त व्यक्तियों की जांच नहीं होगी, ndtv के अरविंद गुणाशेखर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि मोहम्मद मोहसिन के निलंबन के आदेश में ऐसे किसी आदेश का उल्लेख नहीं है. 26 अप्रैल 2019 की इस रिपोर्ट में लिखा है कि चुनाव आयोग से जवाब नहीं आया है कि क्या आयोग ने मोहम्मद मोहसिन को ऐसे प्रावधान के आधार पर निलंबित किया है जो दरअसल वजूद में ही नहीं है. उस समय कांग्रेस लेकर आम आदमी पार्टी ने हेलिकाप्टर को लेकर सवाल उठाए थे. अब आते हैं सुप्रीम कोर्ट में चल रही बहस पर. या रुकिए इसी कहानी को पहले पूरी करते हैं
उस समय मुख्य चुनाव आयुक्त थे सुनील अरोड़ा. चुनाव आयुक्त थे सुशील चंद्रा और अशोक ल्वासा. उस समय की ख़बरों को खंगाल रहा था तो कई जगहों पर ज़िक्र मिला है कि प्रधानमंत्री के खिलाफ आचार संहिता के उल्लंघन के पांच मामले सामने आए हैं. उस साल चुनाव आयोग ने चेतावनी दी थी कि सेना और धार्मिक पहचान के नाम पर वोट नहीं मांगा जाएगा. 9 अप्रैल 2019 को महाराष्ट्र के लातूर में प्रधानमंत्री मोदी ने पुलवामा और बालाकोट के नाम पर वोट मांगा. चुनाव आयोग को इस पर फैसला लेने में 20 दिन लग गए. जब फैसला हुआ तब दो आयुक्तों ने प्रधानमंत्री को क्लिन चिट दि और अशोक ल्वासा ने विरोध कर दिया. प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ पांच शिकायतें थीं, एक में भी पूर्ण बहुमत से क्लिन चिट नहीं मिली. चुनाव आयुक्त अशोक ल्वासा लगातार प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ पांच शिकायतों में असहमति दर्ज करते रहे, यानी प्रधानमंत्री को दोषी पाते रहे. उनके परिवार के सदस्यों के यहां जांच शुरू हो गई. एक्सप्रेस में खबर छपी है कि अशोक ल्वासा की पत्नि के खिलाफ आयकर विभाग की जांच शुरू हो गई और बेटे पर भी नज़र रखी जा रही है. पेगासस जासूसी कांड में अशोक ल्वासा के फोन में भी पेगासस होने की खबर आई थी.
याद रखा कीजिए या बीच बीच में पुरानी ख़बरों को खोज कर पढ़ा कीजिए. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस के एम जोसेफ की अध्यक्षता में पांच जजों की संविधान पीठ चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर सुनवाई कर रही है. आयोग की स्वायत्तता और निष्पक्षता को लेकर जो सवाल उठ रहे हैं, वो शून्य से नहीं आए हैं,
कितने ही आरोप लगे कि प्रधानमंत्री रैली कर सकें इसलिए चुनाव आयोग की प्रेस कांफ्रेंस टाली गई, प्रधानमंत्री घोषणा कर सके इसलिए चुनाव की तारीखों का एलान देर से हुआ. 2002 को छोड़ दें तो 1998 से हिमाचल और गुजरात के चुनावों की तारीखों का एलान साथ-साथ होता था लेकिन 2017 में यह पंरपरा टूट गई. हिमाचल की तारीख के एलान के कई दिनों बाद गुजरात चुनावों का एलान हुआ. जबकि दोनों ही आकार और आबादी के हिसाब से छोटे राज्य माने जाते हैं. उस समय मुख्य चुनाव आयुक्त थे ए के ज्योति. इसे भी लेकर सवाल उठे थे, तब भी और इस बार भी. पूर्व चुनाव आयुक्तों ने इसे गंभीर मामला बताया था. पुरानी खबरों को देखेंगे तो चुनाव आयोग को लेकर बहुत से सवाल उठे हैं, मगर हिन्दू बनाम मुस्लिम नफरत की आंधी में सारे ज़रुरी सवाल कागज़ के टुकड़े की तरह हवा में उड़ गए. केरल में जब राज्य सभा का चुनाव टाला गया तब सवाल उठा. कहा गया था कि वर्तमान सदस्यों को वोट करने से रोक जा रहा है. यही नहीं पिछले साल नवंबर में प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ आनलाइन बैठक में चुनाव आयुक्तों ने हिस्सा ले लिया. उस समय इन दो आयुक्तों और एक मुख्य आयुक्त के हिस्सा लेने से सवाल उठे थे कि इससे स्वायत्तता से समझौता हो गया है. मीडिया खबरों के अनुसार महामारी के दौरान चुनाव आयोग ने प्रधानमंत्री की रैलियां पूरी हो जाने पर रैलियों पर बंदिशें लगाई थी.
तब जब विपक्ष के नेता चुनाव आयोग पर सवाल उठाते थे तो उनका मज़ाक उड़ाया जाता था. कहा जाता था कि जनता वोट नहीं देती है, हार जाते हैं इसलिए हताशा में आयोग को ही निशाना बना रहे हैं.जस्टिस के एम जोसेफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस सी टी रविकुमार,जस्टिस अनिरुद्ध बोस,जस्टिस हृषिकेश रॉय. वकील प्रशांत भूषण की याचिका पर सुनवाई कर रहा है.
मामला यह है कि पंजाब काडर के आई ए एस अधिकारी अरुण गोयल शुक्रवार के दिन स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेते हैं. शनिवार को चुनाव आयुक्त बना दिए जाते हैं और सोमवार को चुनाव आयुक्त का पदभार ग्रहण कर लेते हैं. यह जल्दबाज़ी क्यों की गई? जस्टिस अजय रस्तोगी ने पूछा कि 24 घंटे में नियुक्ति हो भी गई?इस आपा धापी में आपने कैसे जांच पड़ताल की? जस्टिस बोस ने कहा कि इतनी रफ्तार से इनकी नियुक्ति संदेह पैदा करती है. जस्टिस रस्तोगी की यह पंक्ति चुनाव आयोग के इतिहास में हमेशा ही गूंजती रहेगी कि उसी दिन प्रक्रिया, उसी दिन मंजूरी, उसी दिन आवेदन, उसी दिन नियुक्ति. कोर्ट ने पूछा कि चुनाव आयुक्त नियुक्त करने की प्रक्रिया क्या है? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश को घुटनों के बल झुककर सरकार की हां में हां मिलाने वाला चुनाव आयुक्त नहीं चाहिए.
यस मैन नहीं चाहिए. ऐसा चुनाव आयुक्त नहीं चाहिए जो सरकार के इशारे पर काम करे. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ सरकार से सवाल पर सवाल करती जा रही थी कि क्या जिसे चुनाव आयुक्त के पद पर बिठाया जा रहा है, वाकई स्वतंत्र है? अटार्नी जनरल आर वेंकटरमनी सरकार की तरफ से जवाब दे रहे थे. कोर्चट ने बार बार पूछा कि अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त कैसे बनाया गया? हम उन प्रक्रियाओं को देखना चाहते हैं.जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने कहा कि हम देखना चाहते हैं कि क्या जिस तरह से नियुक्ति हो रही है उससे इस पद पर कोई स्वतंत्र व्यक्ति आ सकता है? जस्टिस सी टी रविकुमार ने सरकार से पूछा कि हमेशा किसी नौकरशाह को ही चुनाव आयुक्त क्यों बनाया जाता है? सरकारी वकीलों का पक्ष था कि चुनाव आयोग एकदम ठीक से काम कर रहा है. नियुक्ति की प्रक्रिया पर सवाल उठाने की ज़रूरत नहीं है. चुनाव आयोग में क्या सुधार हो ताकि इसकी स्वायत्तता ख़तरे में न पड़े, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है. चार दिन तक सुनवाई चली है और फैसला सुरक्षित रखा गया है. कोर्ट ने कई अहम सवाल उठाए है
केंद्र सरकार का यही जवाब है कि नियुक्ति नियमों के तहत हुई है. अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने अरुण गोयल की नियुक्ति की फाइल सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी है. उन्होंने कहा कि वे इस अदालत को याद दिलाना चाहता हूं कि हम इस पर मिनी ट्रायल नहीं कर रहे हैं तब जस्टिस जोसेफ ने कहा कि हम इस बात को समझते हैं. अदालत के सवाल बेहद गंभीर हैं. कोर्ट ने पूछा कि नामों की सूची में से चार नामों की सिफारिश कैसे की गई?
इन सवालों को सुनते हुए क्या आपके मन में कुछ खटक रहा है? अदालत इस बात पर ज़ोर देती है कि चुनाव आयुक्त स्वतंत्र हो, किसी के प्रति वफादार न हो, अटार्नी जनरल कहते हैं कि ऐसा कोई लिटमस टेस्ट नहीं है और कोई लेंस नहीं है जो वफादारी का निर्धारण कर सके मगर अदालत के सवाल बहुत बुनियादी हैं यही कि एक ही दिन में फाइल बन जाए, एक दिन में चार नाम चुन लिए जाएं और एक ही दिन चुनाव आयुक्त का चुनाव हो जाए. अदालत जानना चाहती है कि जिस सूची से चार नाम चुने जाते हैं, वह सूची किस आधार पर तैयार की जाती है. अदालत ने केवल नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर सवाल नहीं उठाए बल्कि यह भी पूछा कि ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति क्यों होती है जिसका कार्यकाल छह वर्ष का नहीं हो सकता है? इस पर हमारे सहयोगी आशीष भार्गव की टिप्पणी
जस्टिस जोसेफ: मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है और चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है, यह हमारी समझ है.एजी: हम वरिष्ठता और सेवानिवृत्ति को एक गतिशील तरीके से देखते हैंजस्टिस जोसफ ने कहा कि सरकार को पता होता है कि सीईसी के रूप में किसी को छह साल का कार्यकाल नही मिलेगाअटॉर्नी जनरल ने कहा कि कन्वेंशन के मुताबिक ही निर्वाचन आयुक्तों में से सीनियर मोस्ट को मुख्य आयुक्त के पद पर तरक्की दी जाती है.जस्टिस जोसेफ - देखिए आप कहते हैं कि सीईसी की नियुक्ति 6 साल के लिए होगी. अब सीईसी की नियुक्ति ईसी में से की जाती है- तो इसका मतलब है कि आपको उस आधार पर नियुक्त करने की जरूरत है ताकि उसे इतना समय मिल सके- आप जो कर रहे हैं वह बिल्कुल विपरीत है-इतना समय ही नहीं दे रहे हैंजस्टिस जोसेफ- हमारे संविधान निर्माताओं ने यह स्पष्ट किया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल छह साल का होना चाहिए- यह किसी विजन के साथ किया गया था.हमें बताएं कि कानून मंत्री इन नामों को कैसे चुनते हैंएजी- वह सेवानिवृत्ति की आयु और कार्यकाल को देखते हैं जस्टिस जोसेफ: 1950 से चुनाव आयुक्त को सीधे मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया जा रहा हैएजी; सिविल सेवाओं के डेटाबेस में कैडर, सेवानिवृत्ति के सभी ब्यौरे हैं और यह पारदर्शी हैजस्टिस रस्तोगी: आप हमें 4 नामों के चयन का औचित्य दे सकते हैं, लेकिन हम अपनी संतुष्टि के लिए जानना चाहते हैं कि नाम कैसे चुने जाते हैंएजी: बैच के आधार पर रिटायरमेंट और शॉर्टलिस्टिंग उसी आधार पर की जाती हैजस्टिस रस्तोगी: फिर मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह कहां है एजी: यदि आप प्रत्येक कदम पर संदेह करना शुरू करेंगे, तो संस्था की अखंडता और स्वतंत्रता और सार्वजनिक धारणा पर प्रभाव पड़ेगा- क्या कार्यपालिका को हर मामले में जवाब देना होगा. जस्टिस जोसफ- आपने ऐसे आदमी को आयुक्त बनाया है जो छह साल तक आयुक्त पद पर भी नहीं रह सकता- फिर उनका मुख्य आयुक्त बनना कैसे संभव होगा?- अटॉर्नी जनरल - जन्मतिथि के हिसाब से कार्यकाल होता है- छह साल का कार्यकाल अधिकतम है- क्योंकि 65 साल की आयु भी एक अहम शर्त है जस्टिस जोसेफ ने केंद्र से कहा - ऐसा नहीं समझना चाहिए कि हमने मन बना लिया है या हम आपके खिलाफ हैं.
कोर्ट ने कहा कि एक ही बैच के चालीस अधिकारियों को रखा गया है. तो कानून मंत्रालय ने उन चालीस में से चार का नाम किस आधार पर चुना? क्या रिटायर होने वाले अधिकारियों को चुनाव आयुक्त बनाना सही है? क्या वे छह साल का कार्यकाल पूरा कर पाएंगे? क्या यह तार्किक प्रक्रिया है? अब अदालत की इस एक पंक्ति पर गौर कीजिए. सुप्रीम कोर्ट का संविधान पीठ कहता है हम आपको खुले आम बता रहे हैं कि आप नियुक्ति प्रक्रिया की धारा छह का उल्लंघन करते हैं. एक बार और पढ़ देता हूं.हम आपको खुले आम बता रहे हैं कि आप नियुक्ति प्रक्रिया की धारा छह का उल्लंघन करते हैं. कोर्ट ने कहा है कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया के लिए स्वतंत्र पैनल बनाए जाने की ज़रूरत है. इंतज़ार कीजिए कि फैसला क्या आता है. तब तक इस बात को लेकर सोचते रहिए कि चुनाव आयुक्त के पद पर अरुण गोयल की नियुक्ति की फाइल बनती है, आगे बढ़ती है, कानून मंत्री मंज़ूरी देते हैं, प्रधानमंत्री के पास जाती है, वे मंज़री देते हैं और राष्ट्रपति अधिसूचना जारी कर देते हैं. यह सब 24 घंटे में होता है. हमारे सहयोगी अरविंद गुणाशेखर ने ट्विट किया है कि रिज़र्व बैंक के बोर्ड की मीटिंग होती है, कैबिनेट की मीटिंग होती है, प्रधानमंत्री नोटबंदी की घोषणा कर देते हैं. 24 घंटे के भीतर सब हो जाता है.
राहुल गांधी की पदयात्रा महाराष्ट्र से होती हुई मध्य प्रदेश में प्रवेश कर चुकी है. मध्य प्रदेश में आते ही राहुल ने कांग्रेस की चुनी हुई सरकार गिरा देने का मामला उठाया, कहा कि बीजेपी कुछ विधायकों को खरीद लेती है. तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने भी बीजेपी पर आरोप लगाया कि वह कथित रुप से सौ करोड़ खर्च का प्रलोभलन देकर उनके विधायकों को खरीद रही है ताकि सरकार गिर जाए. मुख्यमंत्री इस पूरे मामले के सबूत होने का दावा करते हैं. एस आई टी जांच हो रही है. बीजेपी के नेता बी एल संतोष को पूछताछ के लिए हाज़िर होना था. बीजेपी इन आरोपों को ड्रामा बताती है. बी एल संतोष को एस आई टी के सामने हाज़िर होना था, हाज़िर नहीं हुए कि उन्हें नोटिस ही नहीं मिला है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल बार बार आरोप लगा चुके हैं कि बीजेपी उनके दस विधायकों को कथित रुप से खरीदने की कोशिश कर रही है. उन्हें 25-25 करोड़ देने की पेशकश हो रही है. पंजाब में आपरेशन लोटस चल रहा है. इन आरोपों के जवाब में बीजेपी सबूत मांगती है और इन आरोपों का खंडन करती है. महाराष्ट्र में भी यही आरोप लगा कि बीजेपी ने जांच एजेंसियों के प्रभावों का इस्तेमाल कर शिवसेना तोड़ दी और अपनी सरकार बना ली. सवाल यह भी उठता है कि कांग्रेस मध्य प्रदेश की सरकार क्यों नहीं बचा सकी, उसके विधायक क्यों बिक गए?
राहुल गांधी कह रहे हैं कि मध्य प्रदेश में उनके विधायकों को बीजेपी ने खरीद लिया और सरकार गिरा दी. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कह रहे हैं कि राजस्थान में बीजेपी ने उनके विधायकों को कथित रुप से दस करोड़ बीस करोड़ दिए और सरकार गिराने की कोशिश की. मुख्यमंत्री गहलौत तो सचिन पायलट पर बीजेपी से मिलीभगत के आरोप लगा रहे हैं. जबकि सचिन पायलट आज राहुल गांधी के साथ पदयात्रा में शामिल हुए. उसी समय गहलौत का इंटरव्यू चलता है कि वे बीजेपी से मिले हुए हैं. श्रीनिवासन जैन को अशोक गहलौत ने इंटरव्यू दिया है. सवाल है कि अगर उनके पास कोई सबूत है तो अब तक सामने क्यों नहीं रख सके, अशोक गहलौत का आरोप एक तरफ राहुल के साथ पदयात्रा कर रहे सचिन पायलट की निष्ठा पर गंभीर सवाल उठाते हैं तो गृहमंत्री अमित शाह और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान पर भी आरोप लगाते हैं. अशोक गहलौत ने यह भी कहा कि पायलट ने गद्दारी की है और वे कभी मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे.आलाकमान कभी पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनाएगा. मुख्यमंत्री गहलौत कहते रहे कि राजस्थान में कोई विधायक बागी नहीं है, वे सभी आलाकमान के प्रति निष्ठावान हैं, श्रीनिवासन जैन पूछते रहे कि फिर वे गुस्से में क्यों हैं?
तेलंगाना के मुख्यमंत्री, दिल्ली के मुख्यमंत्री और खुद राहुल गांधी ने बीजेपी पर आरोप लगाया है कि पैसे और एजेंसियों के दम पर विधायक खरीदे और तोड़े जा रहे हैं. क्या अशोक गहलौत का आरोप इन आरोपों से अलग है, उनके पास सबूत हैं, सही है कि वे सचिन पायलट पर आरोप लगा रहे हैं, उनकी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए अपनी सरकार गिराने में शामिल बता रहे हैं.गहलौत कहते रहे कि विधायक नाराज़ थे कि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है.
अशोक गहलौत का यह इंटरव्यू दुधारी तलवार की तरह है. एक तरफ से सचिन पायलट पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं, जो इस समय पदयात्रा में राहुल गांधी के साथ हैं तो दूसरी तरफ उससे भी गंभीर आरोप लगा रहे हैं कि कांग्रेस के विधायकों ने बीजेपी के दफ्तर से पांच करोड़ दस करोड़ कथित रुप से उठाए हैं. अपनी ही पार्टी के विधायकों पर और बीजेपी पर यह आरोप सामान्य नहीं है.
पायलट कहते हैं कि वे बीजेपी के हाथों नहीं खेल रहे थे, इस सवाल पर अशोक गहलौत कहते हैं कि पायलट गलत बोल रहे हैं. अशोक गहलौत कहते हैं कि उनके पास सबूत है कि बीजेपी ने इस बगावत को फंड किया है. पैसा गाया है. पायलट समर्थक विधायकों को दस करोड़ रुपये तक दिए गए हैं. क्या यह आरोप तेलंगाना और दिल्ली के मुख्यमंत्री के आरोपों के समान है? अगर कोई सबूत है तो सार्वजनिक क्यों नहीं है.
गुजरात में चुनाव चल रहा है. अशोक गहलौत गुजरात में कांग्रेस का प्रचार कर रहे हैं, राहुल गांधी मध्य प्रदेश के बाद राजस्थान में प्रवेश करने वाले हैं. अशोक गहलौत का यह इंटरव्यू कांग्रेस की आंतरिक राजनीति में विस्फोट करेगा या बीजेपी को भी घेरेगा, क्योंकि आरोप यह भी है कि पायलट समर्थक विधायकों ने बीजेपी मुख्यालय से पैसे उठाए हैं. ज़ाहिर है बीजेपी इंकार ही करेगी और कोई जांच एजेंसी आगे नहीं आएगी. आ जाए तो बेहतर है.
अनुराग द्वारी राहुल गांधी की पदयात्रा कवर कर रहे हैं. गहलौत अपनी तरफ से एलान कर रहे हैं कि पायलट गद्दार हैं और विधायक कभी पायलट को मुख्यमंत्री स्वीकार नहीं करेंगे. अशोक गहलौत यह भी कहते हैं कि वे आलाकमान के प्रति निष्ठावान हैं. आलाकमान किसी को भी मुख्यमंत्री बनाना चाहे, बना दे मगर पायलट को कोई स्वीकार नहीं करेगा. श्रीनिवासन जैन को दिए इस इंटरव्यू में अशोक गहलौत ने विस्तार से बताया है कि राजस्थान में विधायकों की बैठक में क्या हुआ. यह इंटरव्यू आप एनडीटीवी इंडिया के यू ट्यूब चैनल पर देख सकते हैं और न्यूज़ चैनल पर तो चल ही रहा है. पदयात्रा में शामिल नेताओं ने इस बयान पर कुछ नहीं कहा.
सचिन समर्थक विधायक राजेंद्र गुडा और गहलौत सरकार में मंत्री ने गहलौत के आरोपों का जवाब दिया है बल्कि पलट कर सवाल पूछा है कि अगर पैसे लिए थे तब उन्हें मंत्री क्यों बनाया. सौरव शुक्ला ने सचिन समर्थक विधायक और मंत्री राजेंद्र गुडा से बात की है.
कांग्रेस के नेता राहुल गांधी से लेकर अशोक गहलौत तक अपने ही विधायकों पर बीजेपी से पैसे लेकर बिक जाने के आरोप लगा रहे हैं, आरोप बीजेपी पर भी लग रहा है, इस क्रम में कांग्रेस ही बिखरती जा रही है लेकिन यह सच तो सबके सामने है. गुजरात में अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं कि कांग्रेस के विधायक जीत कर बीजेपी में मिल जा रहे हैं. कांग्रेस के भीतर की यह राजनीतिक पदयात्रा सड़क पर चल रही भारत जोड़ो यात्रा को ही संदिग्ध बना देती है. बीजेपी को कहने का मौका देती है कि अपनी पार्टी जोड़ लें बहुत हैं.
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