प्रियंका गांधी ने आखिरकार ना-ना करते-करते हां कर ही दी. अब वे आधिकारिक तौर पर राजनीति में आ गई हैं और कांग्रेस की महासचिव बनाई गई हैं. प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश का जिम्मा दिया गया है. पूर्वी उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 34 सीटें आती हैं जिनमें से करीब 16 सीटें ऐसी हैं जहां यदि ब्राह्मण और मुस्लिम एक साथ आ जांए तो पासा पलटा जा सकता है.
वैसे भी प्रियंका राजनीति के लिए नई तो हैं नहीं. एक बार उन्होंने मुझे निजी बातचीत में बताया था कि वे हमेशा से दादी की ही बेटी रही हैं और उन्हीं की तरह बनना चाहती थीं. मगर 12 साल की उम्र में दादी ने उसे अकेले कर दिया और बाद में पिता राजीव गांधी का भी साया सिर से उठ गया. जीवन में घटे इन पलों ने प्रियंका को समय से पहले परिपक्व बना दिया. अब उसने अपने आप को मां सोनिया गांधी के लिए ढाल बना दिया.
एनडीटीवी को दिए एक इंटरव्यू में प्रियंका ने कहा था कि जब 2004 में कांग्रेस बहुमत में आई और सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए सहयोगी दलों ने दबाव बनाना शुरू किया तो प्रियंका ने राहुल के साथ मिलकर ऐसा नहीं होने दिया. उन्होंने सोनिया गांधी को मनाया कि यदि वे प्रधानमंत्री बनती हैं तो उनकी जान को खतरा हो सकता है और वे किसी भी हालत में ऐसा नहीं होने देना चाहती हैं. इतिहास गवाह है कि मनमोहन भारत के प्रधानमंत्री बने और दस साल तक अपने पद पर बने रहे. उधर प्रियंका का राजनीति से नाता बना रहा, एक तरह से रायबरेली और अमेठी के केयर टेकर के रूप में. वे सोनिया गांधी के लोकसभा क्षेत्र की देखभाल करने का काम करने लगीं. वहां से जो भी जनता दिल्ली आती थी उसे प्रियंका से ही मिलना पड़ता था. वही उनकी समस्याओं को देखती थीं.
अब जब राहुल गांधी ने अपनी छोटी बहन को पूर्वी उत्तर प्रदेश का जिम्मा सौंपा है तो प्रियंका के लिए उतनी मुश्किल नहीं होने वाली है. क्योंकि ये वह इलाका है जो एक वक्त में कांग्रेस को वोट करता रहा है. मगर प्रियंका के लिए सबसे बड़ी चुनौती है कांग्रेस के लिए एक ढांचा तैयार करना. प्रियंका के पास अपील तो है, लोग उन्हें देखना और सुनना पसंद करते हैं, मगर क्या वह वोट में तब्दील हो पाएगा, ये सबसे बड़ा सवाल है. समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन के बाद कांग्रेस के लिए कितना वोट बचेगा ये सबसे बड़ा सवाल है. सर्वे की मानें तो यदि कांग्रेस सपा-बसपा गठबंधन का हिस्सा होती तो बीजेपी 20 सीटों तक सिमट सकती थी, मगर ऐसा हो न सका और राहुल ने उत्तरप्रदेश के एक हिस्से को प्रियंका और दूसरे को ज्योतिरादित्य सिंधिया के हवाले कर दिया. दोनों के पास काम बहुत कठिन है मगर नामुमकिन नहीं है. यानी 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए खेल अभी खुला हुआ है.
कहते हैं न कि पिक्चर अभी बाकी है दोस्त..मजा तो तब आएगा जब प्रियंका पूर्वी उत्तरप्रदेश के दौरे पर निकलेंगी. इतना तो तय है कि मीडिया में उन्हें जबरदस्त कवरेज तो मिलेगा ही साथ ही लोगों को एक नई आवाज सुनने को भी मिलेगी. नतीजा चाहे जो भी हो मगर प्रियंका को उत्तरप्रदेश में आगे कर राहुल ने यह तो दिखा ही दिया है कि वे इस प्रदेश को लेकर गंभीर हैं और आगे की राजनीति के लिए भी तैयार हैं. राहुल ने प्रियंका को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री घोषित कर दिया है और केन्द्र में गठबंधन की सरकार बनने की भी बात कही है.
सूत्रों की मानें तो प्रियंका गांधी 2019 का लोकसभा चुनाव भी रायबरेली से लड़ेंगी. ऐसे में कांग्रेस भले ही उत्तर प्रदेश में हासिए पर दिखे मगर चुनाव तो दिलचस्प बन गया है. यानी अगला चुनाव भाई-बहन की जोड़ी बनाम मोदी-शाह की जोड़ी के बीच ही लड़ा जाएगा. दूसरी तरफ राहुल गांधी ने सपा और बसपा के प्रति नरम रुख दिखाकर उस तरफ के दरवाजे भी बंद नहीं किए हैं. वैसे भी सपा-बसपा ने अमेठी और रायबरेली से उम्मीदवार खड़े न करके एक तरह से राहुल और प्रियंका के लिए पूरे प्रदेश में प्रचार करने के लिए ज्यादा अवसर देने की बात कही है. सही ही है सभी को पता है कि दिल्ली की गद्दी का रास्ता बिहार और उत्तर प्रदेश से होकर ही गुजरता है. कहा तो यह भी जा रहा है कि एक और गांधी जो दूसरी पार्टी में हैं उनका भी कांग्रेस में आना हो सकता है क्योंकि वे गांधी प्रियंका से काफी नजदीक बताए जा रहे हैं. ऐसे में लगता है कि राहुल के तरकश में अभी और भी तीर बाकी हैं.
(मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं...)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है...