नई दिल्ली : सरकार ने राज्यसभा में बहुमत न होते हुए भी कोयला आवंटन और माइनिंग बिल पास करवा लिया। इसके लिए सरकार ने परदे के पीछे काफी मेहनत की। सरकार ने पूरी ताकत लगा दी थी, और प्रधानमंत्री खुद इस मामले पर नजर बनाए हुए थे। उन्होंने खुद उड़ीसा और बंगाल के मुख्यमंत्रियों से सर्मथन मांगा और मुलायम, मायावती जैसे नेताओं से अनौपचारिक बातें कीं।
राज्यसभा में 'बहुमत जुटाओ मिशन' में सदन के नेता अरुण जेटली के साथ-साथ मुख्तार अब्बास नकवी, पीयूष गोयल, नरेंद्र तोमर के साथ-साथ संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू की भी अहम भूमिका रही। अरुण जेटली, पीयूष गोयल ने उड़ीसा के मुख्यमंत्री से उड़ीसा भवन में जाकर मुलाकात की थी।
नवीन पटनायक पहले माइनिंग बिल को ही सर्मथन देने के लिए तैयार थे, क्योंकि सरकार ने नवीन पटनायक के चार सुझावों को उसमें शामिल कर लिया था, मगर बाद में पटनायक कोयला बिल को भी सर्मथन देने के लिए तैयार हो गए। वैसे ही प्रधानमंत्री की ममता बनर्जी से भी मुलाकात हुई थी, और उसी दौरान इन बिलों पर उन्होंने तृणमूल कांग्रेस से सर्मथन मांगा था।
सरकार को पता था कि इन बिलों पर कांग्रेस और वामपंथी दल किसी भी कीमत पर सरकार का साथ नहीं देंगे, इसलिए सरकार ने बाकी दलों पर ध्यान केंद्रित किया और सरकार की रणनीति कामयाब रही। मुलायम, मायावती, शरद यादव, शरद पवार पर खासा ध्यान दिया गया। यहां पर प्रधानमंत्री की मुलायम-लालू यादव के बच्चों की शादी में जाना और शरद पवार के साथ बारामती में मंच साझा करना काम आ गया।
प्रधानमंत्री ने कांग्रेस और लेफ्ट पर हमला जारी रखा, लेकिन बाकी दलों के प्रति नरम रवैया अपनाया। लेकिन इन तमाम प्रयासों के वावजूद सरकार की सांसें अटकी थीं कि इन दलों का सर्मथन मिलेगा या नहीं, क्योंकि यही दल राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर अपना संशोधन पास करवाकर सरकार को पटखनी दे चुके थे। उस वक्त सरकार को विपक्ष की इस रणनीति की हवा भी नहीं लगी थी, लेकिन इस बार सरकार चौकन्नी थी और अपनी रणनीति पर टिकी रही।
अब सरकार का सारा ध्यान भूमि अधिग्रहण बिल पर है कि उस पर बाकी दलों को कैसे राजी किया जाए। बिल के संशोधन में जमीन लेने पर परिवार के एक व्यक्ति को नौकरी का प्रावधान मुलायम सिंह को खुश करने के लिए किया गया है, लेकिन बाकी दलों - जैसे ममता बनर्जी - को इस बिल के लिए राजी करना मुश्किल होगा।