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लिव इन रिलेशन और नैतिकता का द्वंद

हिमांशु जोशी
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 13, 2025 13:05 pm IST
    • Published On अक्टूबर 13, 2025 13:05 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 13, 2025 13:05 pm IST
लिव इन रिलेशन और नैतिकता का द्वंद

उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने पिछले दिनों एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि 'बेटियों को लिव इन रिलेशन से बचना चाहिए. लिव इन रिलेशन का परिणाम देखना है तो अनाथालय जाकर देखिए. 15-20 साल की बेटियां एक-एक साल का बच्चा लेकर लाइन में खड़ी हैं.' यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से चर्चा में है. उनके मुताबिक युवतियों को पारंपरिक विवाह की ओर झुकना चाहिए ताकि सामाजिक और पारिवारिक ढांचा सुरक्षित रह सके. 

कानूनी आंकड़े बताते हैं कि वैवाहिक संस्थान के भीतर भी असंतोष और विवाद कम नहीं हैं. भारत सरकार के न्याय विभाग के डैशबोर्ड के अनुसार उत्तर प्रदेश में फिलहाल 3,94,877 पारिवारिक मामले पेंडिंग हैं. इन मामलों में तलाक, गुज़ारा भत्ता, अभिरक्षा और वैवाहिक विवाद शामिल हैं. यह देश में सबसे अधिक पेंडिंग पारिवारिक मुकदमों वाला राज्य है. संसद में प्रस्तुत आंकड़े बताते हैं कि साल 2016 में ही प्रदेश में ढाई लाख से अधिक तलाक के मामले दर्ज थे. अदालतों में इतनी बड़ी संख्या में मुकदमे यह संकेत देते हैं कि पारिवारिक ढांचा केवल लिव इन रिलेशन से ही नहीं, बल्कि वैवाहिक असंतुलन से भी प्रभावित हो रहा है.

सांस्कृतिक अंतर और सोच का फासला

उत्तर प्रदेश के रहने वाले मेडिकल सोशल सर्विस ऑफिसर रोहित गुप्ता कहते हैं कि लिव इन रिलेशन को नैतिकता से जोड़ना उचित नहीं, क्योंकि विवाह और सहजीवन दोनों में समान भावनात्मक जोखिम और जिम्मेदारियां होती हैं. समाज में एक कल्चरल लेक यानी सांस्कृतिक अंतर बन गया है, जहां नई पीढ़ी अपनी स्वतंत्रता और व्यक्तिगत निर्णयों को पुराने नैतिक मानदंडों से अलग रखकर देख रही है.

उम्र और सोच के इस फासले के कारण बुजुर्ग वर्ग लिव इन को पारिवारिक ढांचे पर खतरे के रूप में देखता है, जबकि युवाओं के लिए यह परस्पर सहमति पर आधारित साझेदारी का एक रूप है. उदाहरण के तौर पर वह कहते हैं कि 20-30 साल के लोग इसको लेकर बेहद खुले विचारों के होंगे, 40-60 साल के लोगों के अंदर इसको लेकर लचीले होंगे और 60 से ऊपर लोग इसे पसंद नहीं करेंगे.

कानूनी मान्यता और सामाजिक स्वीकार्यता

रोहित गुप्ता आगे कहते हैं कि समाज के लिए विवाह एक महत्वपूर्ण संस्था है, जिससे लोग आपस में जुड़े होते हैं. लिव इन रिलेशनशिप से समाज का यह जुड़ाव खत्म हो जाएगा. लेकिन जब स्वयं सरकार ने लिव-इन रिलेशन को डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट के तहत 'संबंध में रह रही महिला' की परिभाषा में शामिल किया है, तो इसका अर्थ यह है कि राज्य इसे सामाजिक यथार्थ के रूप में स्वीकार कर चुका है. ऐसे में इसे केवल नैतिकता या चरित्र से जोड़कर देखना गलत है. कानून ने यह मान्यता दी है ताकि उन महिलाओं को कानूनी सुरक्षा मिल सके जो लिव-इन में रहते हुए हिंसा या शोषण का शिकार होती हैं. इसलिए, इस पर सवाल उठाना न सिर्फ सामाजिक दृष्टि से, बल्कि कानूनी दृष्टि से भी अनुचित है.

अस्वीकरण: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं, उससे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.

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