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This Article is From Sep 25, 2019

सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने वालों को चेतावनी

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 25, 2019 01:57 am IST
    • Published On सितंबर 25, 2019 01:52 am IST
    • Last Updated On सितंबर 25, 2019 01:57 am IST

सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया पर अफवाहें फैलाने, चरित्र हनन करने, ट्रोल करने, धमकी देने इत्यादि को लेकर सरकार से तीन हफ्ते के भीतर गाइडलाइन बनाने को कहा है. सरकार की तरफ से कहा गया है कि इस पर काम चल रहा है मगर समय सीमा नहीं बताई जा सकती. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपक गुप्ता ने निजता को लेकर कई सवाल उठाए. सवाल वाजिब थे लेकिन एक सवाल और है. सुप्रीम कोर्ट ने भीड़ की हिंसा पर बेहद विस्तृत आदेश दिए थे. दारोगा से लेकर डीजीपी की जवाबदेही तय की थी, भीड़ की हिंसा नहीं रुकी और न ही किसी डीजीपी के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई. क्या गाइडलाइन बनाने से सोशल मीडिया का राजनीतिक इस्तेमाल रुक जाएगा. सरकार के ही समर्थक आईटी सेल अगर झूठी बातें फैलाएं, किसी को ट्रोल करें तो क्या वाकई आप उम्मीद करते हैं कि किसी गाइड लाइन से उनके खिलाफ कार्रवाई हो जाएगी. अभी भी पर्याप्त कानून हैं मगर आईटी सेल के लोगों के खिलाफ कार्रवाई का रिकार्ड बेहद ख़राब है. सांसद तक ट्रोल करते हुए पकड़े गए हैं उनका कुछ नहीं हुआ क्योंकि उनकी पार्टी सरकार में है. जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा कि किसी ने आपत्तिजनक पोस्ट डाली तो उस तक पहुंचने का ज़रिया तो होना ही चाहिए. माननीय अदालत के संज्ञान में यह बात तो होगी कि ऐसे अनेक लोगों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई बल्कि ऐसे लोगों को सरकार के ही बड़े ओहदेदार फोलो करते हैं. अदालत जानना चाहती है कि किसी मैसेज का मूल निर्माता कौन है. यह पता किया जा सकता है, कई बार पता भी होता है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती है. अफवाहें फैलाना, किसी को ट्रोल करना यह राजनीतिक संगठन का मूल काम हो गया है. इस समस्या को किसी आम आदमी पर शिफ्ट कर उन्हें नहीं बख्शा जाना चाहिए अगर अदालत इस समस्या का संपूर्ण समाधान चाहती है तो. उसे आईटी सेल के पोलिटिकल ट्रोल की बात करनी चाहिए.

बहरहाल एक असली ख़बर की बात कर रहा हूं. भारत के चोटी के दस कोपरेटिव बैंक में से गिने जाने एक बैंक की खबर ने उसके खाताधारकों को सड़क पर उतार दिया है. जैसे ही खबर आई कि रिज़र्व बैंक ने पंजाब एंड महाराष्ट्र कोपरेटिव बैंक को अपनी निगरानी मे ले लिया है और आदेश दिया है कि पीएमसी बैंक के खाताधारक 6 महीने में अपनी कुल जमा राशि का मात्र 1000 ही निकाल सकते हैं. अगर आपको पता चले कि आप अपने अकाउंट से छह महीने में एक ही हज़ार निकाल सकते हैं तो आप टीवी पर हिन्दू मुस्लिम डिबेट देखेंगे, आज कल पाकिस्तान पर डिबेट देखेंगे या बैंक के ब्रांच की तरफ भागेंगे. वही हुआ. जैसे ही यह खबर लोगों तक पहुंची, वे ब्रांच की तरफ भागने लगे. उनके होश उड़ गए कि कहीं सारा पैसा डूब तो नहीं गया. मुंबई में इस बैंक के ब्रांचों के बाहर लोग टूट पड़े. मुंबई, नवी मुंबई, ठाणे और पालघर में 81 ब्रांच हैं. लोग बैंक पहुंच कर हंगामा करने लगे कि उनका पैसा वापस मिले. कई लोगों के इसी बैंक में अकाउंट हैं. छह महीने में अगर एक हज़ार ही निकाल सकेंगे यह सोच कर इन पर क्या बीत रही होगी. पंजाब एंड महाराष्ट्र कोपरेटिव बैंक के सात राज्यों में ब्रांच हैं. गोवा, दिल्ली, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध प्रदेश और कर्नाटका में इसके ब्रांच हैं. मुंबई इसका मुख्यालय है. 50000 से अधिक इसके खाताधारक हैं. मार्च 2019 तक पीएमसी बैंक में 11,600 करोड़ जमा था. लोग कोपरेटिव बैंक में इसलिए भी पैसा रखते हैं क्योंकि वहां ब्याज़ अधिक मिलता है. इसलिए ब्याज़ दर देखने के साथ-साथ यह भी देख लीजिए कि इस बैंक की वास्तविक स्थिति क्या है. लेकिन आम आदमी पर यह ज़िम्मेदारी कैसे दी जा सकती है. ऐसे बैंक जब सरकार के नियमों के तहत खुलते हैं तो सरकार और बैंक की ज़िम्मेदारी बनती है वे ग्राहक को न ठगे.

आपको तो पता ही है कि अगर बैंक डूब गया या बैंक का लाइसेंस रद्द हो गया तो आपका सारा पैसा डूब जाता है सिर्फ एक लाख की अधिकतम राशि मिलेगी. एक लाख के बाद का जितना पैसा है डूब जाएगा. दुनिया भर में सबसे कम है. अगर मलेशिया में बैंक डूबा तो खाताधारक को 60,000 हज़ार डॉलर तक पैसा मिलेगा. भारत में मात्र 1400 डॉलर ही. कनाडा, स्वीट्ज़रलैंड, फ्रांस में 75 हज़ार डॉलर से लेकर 1 लाख डॉलर से अधिक पैसा मिल जाएगा. अमरीका में भी बैंक डूबने पर खाताधारण को ढाई लाख डॉलर मिल जाएंगे तो भारत में यह 1400 डॉलर क्यों है. यानी 1 लाख तक ही क्यों है. ज्यादातर देशो में आपके खाते में जमा 60 से 70 प्रतिशत पैसा सुरक्षित है लेकिन भारत में बहुत ही कम. बहरहाल मुंबई के PMC Bank का एनपीए बढ़ गया था. जिसके कारण इसका लाभ कम हो गया. कई लोग यह भी सुझाते हैं कि अलग-अलग बैंकों में पैसा रखना चाहिए. 1993 तक बैंक डूबने पर 30,000 ही मिलने का नियम था. उस साल इसे बढ़ा कर 1 लाख किया गया. 1993 से यह एक लाख ही है. इस राशि को मुद्रास्फीति के हिसाब से देखें तो आज साढ़े पांच लाख होना चाहिए मगर एक लाख ही मिलेगा. वैसे इस पर चिन्ता करने की बात नहीं है. 1913 से 1955 के बीच भारत में 1489 बैंक फेल हो गए थे लेकिन उसके बाद कई दशकों से कोई कमर्शियल बैंक नहीं डूबा है. यह सारी जानकारी हमने हिन्दू बिजनेस लाइन की राधिका मरविन की रिपोर्ट से ली है.

इसलिए हम इन खाताधारकों की चिन्ता समझते हैं. जब तक कोई ठोस आश्वासन नहीं मिलेगा इन्हें यही लगेगा कि पैसा डूब गया. जिन्होंने ज्यादा पैसे रखे होंगे उनकी क्या हालत होगी. रिज़र्व बैंक के आदेश के बाद पीएमसी बैंक अब कोई नया लोन नहीं दे सकेगा. न ही निवेश कर सकेगा. यह भी कहा गया है कि रिज़र्व बैंक के आदेश की कॉपी हर खाताधारक को भेजी जाए. बैंक की वेबसाइट पर लगाई जाए. बैंक के प्रबंध निदेशक ने खाताधारकों को भरोसा दिलाया है कि छह महीने के पहले सारी गड़बड़ियां ठीक हो जाएंगी लेकिन उन खाताधारकों का क्या जिन्हें कल 1000 से अधिक की ज़रूरत पड़ सकती है. उन्हें क्यों छह महीने तक सज़ा दी जा रही है. क्या बैंक खाताधारकों की वजह से मुश्किल में पड़ा है. भले ही इन खबरों को मीडिया में जगह न मिले लेकिन लोगों को मालूम है कि उनका पैसा असुरक्षित हो गया है. इसलिए वे रात आठ बजे तक अंधेरी ब्रांच के बाहर जमा थे. वे अपने घर नहीं गए हैं. सोचिए इस वक्त 50 हज़ार लोगों पर क्या गुज़र रही होगी और मीडिया पाकिस्तान पर चर्चा चलाकर लोगों को बरगलाने में लगा है.

संयुक्त राष्ट्र में ग्रैता तुनबैर के भाषण की खूब चर्चा हो रही है. न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र का जलवायु सम्मेलन चल रहा है. जर्मनी के वाइस चांसलर ने ग्रैता के साथ अपनी तस्वीर ट्वीट की है. इस ट्वीट के बाद उनकी आलोचना बढ़ गई कि कोयले के इस्तेमाल को खत्म करने के लिए जर्मनी पर्याप्त कदम नहीं उठा रहा है. फ्रांस के राष्ट्रपति ने ग्रैता के विचारों को रैडिकल बताया है और कहा है कि सरकारों को लेकर उसका गुस्सा सही नहीं है. अमरीका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने ग्रैता के भाषण का एक हिस्सा ट्वीट किया और उसकी सारी कोशिशों को हल्के में लिया है. कहा है कि वह एक खुशहाल लड़की लगती है जिसका भविष्य उज्ज्वल है. कहा जा रहा है कि ट्रंप ने ग्रैता की सारी कोशिशों को मात्र यहीं तक समेट दिया है. जर्मनी, फ्रांस, अर्जेंटीना, ब्राज़ील और तुर्की. ग्रैता सहित 15 बच्चों ने संयुक्त राष्ट्र में पांच देशों के खिलाफ शिकायत भी की है कि ये पांच देश उन बच्चों के मानवाधिकार का उल्लंघन कर रहे हैं. ग्रैता के भाषण को दिलचस्पी के साथ सुना जा रहा है. आप सभी ने अपनी खोखली बातों से मेरे बचपने के सपने छीन लिए हैं. आपकी हिम्मत कैसे हुई.

'नए आंकड़ों के हिसाब से कोई समाधान या योजनाएं यहां पेश नहीं की गईं क्योंकि ये आंकड़े आपके लिए असुविधाजनक हैं. आप अब भी इतने परिपक्व नहीं हुए हैं कि जैसा है, वैसा बताने की हिम्मत कर सकें. आप हमें छल रहे हैं. लेकिन युवा लोग आपके धोखे को समझ रहे हैं. भविष्य की पीढ़ी की निगाहें आप पर हैं. अगर आप हमें नाउम्मीद करते रहेंगे तो हम आपको कभी माफ़ नहीं करेगे. हम आपको जाने नहीं देंगे. हम अभी एक लकीर खींच रहे हैं. दुनिया जाग रही है, बदलाव आ रहा है, चाहें आप पसंद करें या न करें.' ये सभी ग्रैता तुनबैर के शब्द हैं. ग्रैता लगातार अपने भाषणों में दुनिया के हुक्मरानों को चैलेंज कर रही है कि सिर्फ बातें हो रही हैं, काम कम हो रहे हैं. ट्रंप तो घोषित तौर पर जलवायु संकट के विज्ञान को ही चुनौती देते हैं. अस्वीकार करते हैं. ब्राज़ील के राष्ट्रपति बोलसेनारो ने कहा कि एमेज़ान के जंगलों को कोई खतरा नहीं है. जंगल तबाह नहीं हुए हैं. जबकि वहां की आग की तबाही को पूरी दुनिया ने देखा. बोलसेनारे तो यहां तक कह गए कि एमेज़ान धरती का फेफड़ा नहीं है. वैज्ञानिकों ने ग़लत बात फैलाई है. जलवायु सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण हुआ. उन्होंने ग्रैता का किसी भी तरह से कोई ज़िक्र नहीं किया. ग्रैता की एक बात सही है. जलवायु परिवर्तन को लेकर आधी अधूरी कार्रवाई हो रही है. नारे बन जाते हैं मगर नीति कभी ज़मीन पर लागू नहीं होती है.

इसी का एक उदाहरण है फरीदाबाद का सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट. यह इसलिए है ताकि गंदे नाली का पानी साफ कर दे और यमुना मैली होने से बच जाए. जनवरी 2015 में ही नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल ने आदेश दिया था कि 31 मार्च 2017 तक यमुना साफ हो जानी चाहिए. आज तक नहीं हुई. जुलाई 2018 में नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल ने शैलजा चंदा की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई. यह रिपोर्ट एनजीटी की साइट पर है. सुशील महापात्रा ने इसका अध्ययन किया है. इस रिपोर्ट के अनुसार फरीदाबाद में चार एसटीपी प्लांट हैं. लेकिन चारों सही तरीके से काम नहीं कर रहे हैं. 19 लाख आबादी है फरीदाबाद की. यहां के घरों और इंडस्ट्री से हर दिन 210 एमएलडी पानी निकलता है जबकि चारों एसटीपी प्लांट की साफ करने की क्षमता मात्र 160 एमएलडी है. मिलियन लिटर पर डे. सोचिए अगर यहां के एसटीपी प्लांट पूरी क्षमता से काम नहीं कर रहे हैं तो फिर यमुना का क्या हाल होगा. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ग्रेटर फरीदाबाद में कोई भी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं है. जबकि यहां 50 से अधिक हाउसिंग सोसायटी है.

सुशील महापात्रा ने फरीदाबाद के प्रतापगढ़ इलाके में स्थित सबसे बड़े सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का जायज़ा लिया. प्लांट की हालत बहुत खराब है. जिस वक्त सुशील गए वहां बिजली के चली जाने के कारण प्लांट बंद था. वैसे भी यह प्लांट अपनी पूरी क्षमता पर काम नहीं करता है. यही नहीं पता चला कि इस प्लांट में रसायनों की सफाई की क्षमता नहीं है. वह सिर्फ गंदा सामान रोकता है, कपड़े औ कीचड़ रोकता है. पानी में जो रसायन मिला होता है उसे साफ करने का कोई प्लांट नहीं है. यही रसायन वाला पानी जब खेती में इस्तमाल होता है तो लोगों के शरीर के भीतर कैंसर छोड़ जाता है. इतने गंभीर मसले पर हमारा रवैया कितना ढुलमुल है.

मई 2019 के 'डाउन टू अर्थ' में बनजोत कौर ने नमामि गंगे को लेकर एक रिपोर्ट लिखी थी. उस रिपोर्ट में कहा था कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट काफी बड़ी चुनौती है. नमामि गंगे के तहत 68 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगने थे लेकिन अगस्त 2019 तक 6 प्लांट ही पूरी तरह चालू हो सकते थे.

अमिताभ बच्चन को इस साल का दादा साहेब फाल्के पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई है. पर्दे पर भूमिका निभाते हुए अमिताभ बच्चन को 50 साल हो चुके हैं. ख्वाज़ा अहमद अब्बास की फिल्म 'सात हिन्दुस्तानी' से उनकी फिल्म यात्रा शुरू होती है. 50 साल के फिल्मी सफर को यहां चंद लाइनों में समेटना सही नहीं होगा. 77 साल की उम्र में भी अमिताभ सक्रिय हैं. पूरी रात शूटिग करते हैं. इस समय 'कौन बनेगा करोड़पति' की शूटिंग में व्यस्त हैं. उनकी सफल-असफल फिल्मों की सूची बहुत लंबी है. उनका अभिनय संसार बहुत ही बड़ा है. बहुत अच्छी फिल्मों से लेकर औसत और औसत से लेकर बहुत ख़राब फिल्मों के सफ़र को उन्होंने एक सहज यात्री की तरह पूरा किया है. अमिताभ 70 के दशक में एंटी इस्टैबलिश्मेंट हीरो के रूप में उभरे लेकिन जल्दी ही वे इस छवि से बाहर आ गए. उनकी मार धाड़ वाली फिल्में आती जाती रहीं लेकिन बीच बीच में वे 'कभी-कभी', 'बेमिसाल', 'सिलसिला' जैसी फिल्मों में शांत स्वभाव वाले हीरो बनकर आते रहे. अभिताभ बच्चन के अभिनय के अलग अलग शेड्स हैं. 'पा', 'पिंक', 'पीकू', 'चीनी कम', 'ब्लैक', 'भूतनाथ' के अमिताभ को 'आनंद', 'मिली', 'अभिमान' और 'चुपके-चुपके' के अमिताभ के साथ नहीं देखा जा सकता है. इन सबके अभिताभी 'दीवार', 'जंज़ीर' और 'मुकद्दर का सिकंदर', 'शराबी', 'कूली', 'मर्द' और 'डॉन' के अमिताभ से काफी अलग हैं. 'तूफान', 'जादूगर' और 'शहंशाह', 6बड़े मियां छोटे मियां', 'आज का अर्जुन', 'अजूबा', 6गंगा जमुना सरस्वती' के अमिताभ को देखकर उनके प्रशंसक भी हैरान हो गए थे. 'सूर्यवंशम' का ज़िक्र यहां करना ठीक नहीं होगा. इस फिल्म को इतनी बार दिखाया जाता है कि डर है लोग उनकी बाकी फिल्में न भूल जाएं. ऐसा न हो कि दुनिया को लगे कि अमिताभ ने एक ही फिल्म में काम किया है और वो है 'सूर्यवंशम'. कभी फिल्में उनके लिए लिखी जाती थीं मगर अब वे किसी और के लिए लिखी गई फिल्म में भी आसानी से काम कर लेते हैं. दरअसल अगर काम के पैमाने के हिसाब से देखें तो अमिताभ का उदाहरण बहुत बड़ा है. वे नए निर्देशक के साथ भी सामान्य अभिनेता की तरह काम करते हैं. समय पर आते हैं और निर्देशक के इशारे पर काम करते हैं. अमिताभ समय के साथ एक अच्छे अभिनेता की मानिंद ढलते चले गए. ढलते जा रहे हैं. पल्स पोलियो के अभियान को अमिताभ बच्चन ने घर घर पहुंचा दिया था. बच्चन के प्रशंसकों का अपना एक संसार है. वे हर रविवार को उनके घर के बाहर दर्शन के लिए जमा हो जाते हैं और अमिताभ जब भी अपने घर में होते हैं, उन्हें निराश नहीं करते हैं. समय कम है वर्ना अमिताभ बच्चन की भाषा पर भी अलग से लिखा बोला जा सकता है. अमिताभ ने कौन बनेगा करोड़पति के ज़रिए सार्वजनिक स्पेस में एक नई हिन्दी को स्थापित किया था. वे अपनी भाषा को लेकर काफी सतर्क प्राणी लगते हैं. अंग्रेज़ी और हिन्दी दोनों को सम्मान के साथ और पूरी कुशलता के साथ बोलते हैं. बच्चन की भाषा का जवाब नहीं. दादा साहब फाल्के पुरस्कार मिलने पर बधाई.

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