
- डिजिटल पेमेंट के बढ़ते दौर में मोबाइल से छोटी और बड़ी सभी रकम की भुगतान सुविधा लोकप्रिय हो गई है
- एक रुपये का सिक्का 1757 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने कलकत्ता में जारी किया था
- सिक्कों का चलन पहले काफी महत्वपूर्ण था और एक रुपये के सिक्के से कई चीजें खरीदी जा सकती थीं
डिजिटल पेमेंट के इस दौर में लोग अब अपनी जेब में पैसे की जगह मोबाइल रखना पसंद करते हैं. एक क्लिक से 10 रुपये से लेकर लाखों रुपये तक की पेमेंट हो जाती है. भले ही आज एक या दो रुपये का सिक्का दिखते ही लोग उसे घर के किसी कोने में रख देते हों, लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब लोगों की जेब में नोट और सिक्के खनकते थे. बस का किराया देना हो या फिर किराने की दुकान से सामान लेना हो, ये सिक्के बहुत काम आते थे. आज हम आपको एक रुपये के सिक्के की पूरी कहानी बताने जा रहे हैं.
सिक्कों का रहा है लंबा इतिहास
सिक्कों का अपना पूरा इतिहास रहा है. एक दौर था जब सिक्के काफी कीमती हुआ करते थे और एक रुपया होने का मतलब था कि आप इससे कई चीजें खरीद सकते हैं. ये तब होता था जब कौड़ी और आना या आधा आना हुआ करते थे. तब एक आने का मतलब 4 पैसा हुआ करता था. इसके बाद एक पैसा से लेकर 25 पैसा और 50 पैसा भी कई सालों तक चलन में रहे. 50 पैसे को अठन्नी कहा जाता था और 25 पैसे के सिक्के को चवन्नी कहकर बुलाते थे. हालांकि ये वक्त के साथ चलन से बाहर हो गए.
कब बना था एक रुपये का सिक्का?
साल 1757 में 19 अगस्त को ईस्ट इंडिया कंपनी ने कलकत्ता में रुपये का पहला सिक्का बनाया था और कंपनी के बनाए गए पहले सिक्के को बंगाल के मुगल प्रांत में चलाया गया. दरअसल बंगाल के नवाब के साथ एक संधि के तहत ईस्ट इंडिया कंपनी ने साल 1757 में यह टकसाल बनाई थी. एक रुपये का सिक्का चलन में आने के बाद व्यापार में कई तरह की मुश्किलें खत्म हो गईं.
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ये वो दौर था जब प्लासी का युद्ध खत्म हुआ था और बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को हार के बाद अंग्रेजों से संधि करनी पड़ी. इसके बाद अंग्रेजों ने टकसाल में एक रुपये का सिक्का बनाने पर काम शुरू किया. इस सिक्के पर ब्रिटिश सम्राट विलियम 4 की तस्वीर छपी थी. भारत की आजादी तक ब्रिटिश हुकूमत के ये सिक्के प्रचलन में रहे, लेकिन 1950 में आजाद भारत ने अपना पहला सिक्का जारी किया.
सिक्के को लेकर बनाया गया कानून
देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग मुद्रा प्रचलन में थी, जिससे व्यापार में काफी मुश्किलें आने लगीं. इसे देखते हुए साल 1835 में यूनिफॉर्म कॉइनेज एक्ट पास हुआ. इसके बाद पूरे देश में एक ही मुद्रा प्रचलन में आई और बाकी तमाम मुद्राएं धीरे-धीरे खत्म होने लगीं. इस एक्ट के तहत आज भी आप मुद्रा को पिघला नहीं सकते हैं या फिर इसका गलत इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.
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