
- 1995 में बिहार विधानसभा चुनाव में चुनाव आयुक्त टीएन शेषण ने निष्पक्ष और सख्त चुनाव कराए थे, जो चर्चा में रहा.
- उस समय बूथ कैप्चरिंग आम थी, लेकिन शेषण ने अफसरशाही नियंत्रण और सुरक्षा बल तैनाती बढ़ाकर गड़बड़ी रोकी थी.
- लालू प्रसाद यादव शेषण की सख्ती से बौखलाए हुए थे और कई बार सार्वजनिक रूप से उनकी आलोचना की थी.
'ई शेषनवा चुनाव करवा रहा है कि कुंभ करवा रहा है? पगला सांड जैसा कर रहा है. मालूम नहीं है कि हम रस्सा बांध के खटाल में बंद कर सकते हैं.... ई शेषनवा को तो भैंसिया पे चढ़ाकर गंगाजी में हेला देंगे.' ये बोल हैं- लालू यादव के. दौर 1995 का और राज्य का नाम है- बिहार.... पर ये आकाशवाणी के किसी केंद्र से गीतों का कार्यक्रम नहीं है. ये वास्तविक किस्सा है, तीन दशक पुराने बिहार का. उस दौर का जब लालू यादव बिहार के 'राजा' थे. थे तो मुख्यमंत्री, लेकिन 'चलती' यानी 'रौला' पूरा राजा वाला था. और उसी दौर में मुख्य चुनाव आयुक्त हुए- टीएन शेषण (TN Seshan). ऐसे चुनाव करवाया कि लालू एकदम से बौखला गए थे. सबसे ऊपर जो आपने पढ़ा, वो इसी बौखलाहट में लालू के बयान थे.
बिहार चुनाव को लेकर एनडीटीवी की खास सीरीज में आज कहानी, लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) और तत्कालीन CEC टीएन शेषण (Thirunellai Narayana Iyer Seshan) के भिड़ंत की.
2025 नहीं, वो 1995 का बिहार था
वो 2025 नहीं 1995 का बिहार था, जिसे बीजेपी, जदयू और एनडीए की अन्य पार्टियां 'जंगलराज' कहा करती हैं. विधानसभा चुनावों में उन दिनों बूथ कैप्चरिंग आम बात थी. तत्कालीन चुनाव आयुक्त टीएन शेषण पर बिहार में निष्पक्ष चुनाव करवाने की जिम्मेवारी थी. आसमान में शेषण के हेलिकॉप्टर की गड़गड़ाहट और नीचे गड़बड़ी करने वालों में खौफ.

पत्रकार और लेखक संकर्षण ठाकुर की नीतीश कुमार और लालू यादव पर केंद्रित किताब 'बंधु बिहारी' में 1995 के विधानसभा चुनाव का दौर एकदम किस्सों की शक्ल में दर्ज है. उस दौर का बेहद दिलचस्प किस्सा था- टीएन शेषण और लालू प्रसाद यादव के बीच की टकराहट.
शेषण की कार्रवाइयों से बौखलाए लालू
1990 के दशक में बिहार में चुनावों में बूथ कैप्चरिंग आम बात थी. शेषण ने बिहार में निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए कई सख्त कदम उठाए. जैसे अफसरशाही पर कड़ा नियंत्रण, बूथ स्तर तक की मॉनिटरिंग, सुरक्षा बलों की तैनाती बढ़ाना. और तो और... गड़बड़ी की आशंका पर बार-बार चुनाव स्थगित करना और नई तारीखें घोषित करना.

शेषण की इन कार्रवाइयों से लालू प्रसाद हैरान और परेशान हो गए. अपने आवास पर अनौपचारिक बैठकों में वे रोज टीएन शेषण को कोसते. मजाकिया अंदाज के लिए फेमस लालू का गुस्सा कई बार तो रैलियों में मंच से भी व्यंग्य के रूप में छलक जाता था. एक बार लालू यादव ने अपने इसी अंदाज में कहा,
शेषण लगातार चुनाव की तारीखें टाल रहे थे. हर फैसले में यही साबित कर रहे थे कि चुनाव आयोग की पावर एक मुख्यमंत्री से ज्यादा है. लालू की नाराजगी और बौखलाहट दोनों साफ दिख रही थी. एक बार उन्होंने ये भी कहा कि शेषनवा को भैंसिया पे चढ़ाकर गंगाजी में हेला देंगे.

'हम तुम्हारा चीफ मिनिस्टर, तुम हमारा अफसर'
शेषण हर हाल में निष्पक्ष, शांतिपूर्ण और साफ-सुथरे चुनाव चाहते थे, जबकि लालू को अपने सियासी समीकरण बिगड़ते दिख रहे थे. सत्ताधारी राजद को जैसी उम्मीद थी, वैसा हो नहीं रहा था. बिहार के लोगों के लिए भी ऐसा अनुभव शायद पहली बार था.
एक घटना में जब शेषण ने चौथी बार चुनाव स्थगित किया, तो लालू प्रसाद यादव का गुस्सा फूट पड़ा. उन्होंने राज्य के तत्कालीन मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी आरजेएम पिल्लई को फोन लगाया. लगभग डांटने वाले अंदाज में कहा,
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लालू यादव
शेषण की चुनावी सख्ती और लालू की राजनीतिक जमीन का सरकना, इस टकराहट की बड़ी वजह बना. सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद और प्रशासनिक तैयारियां दुरुस्त. पूरी मॉनिटरिंग के साथ टीएन शेषन की निगरानी में चुनाव संपन्न हुए. जनता दल 167 सीट जीतकर बहुमत तो ले आई और लालू फिर से सीएम बन गए, लेकिन उनका वोट परसेंटेज घट गया.
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