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बिहार चुनाव... राघोपुर में तेजस्वी बनाम तेज की लड़ाई, क्या BJP के नए प्लान से लिखी जाएगी नई कहानी?

राघोपुर लालू परिवार की परंपरागत सीट है. लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी और अब तेजस्वी यादव. सभी ने यहां से चुनाव लड़ा है. इसलिए यह सीट सिर्फ चुनाव नहीं, बल्कि “पारिवारिक सम्मान” की लड़ाई मानी जाती है.

बिहार चुनाव... राघोपुर में तेजस्वी बनाम तेज की लड़ाई, क्या BJP के नए प्लान से लिखी जाएगी नई कहानी?
  • राघोपुर सीट पर तेजस्वी यादव के चुनाव प्रचार में तेज प्रताप की सक्रियता राजनीतिक हलचल पैदा कर रही है.
  • तेज प्रताप यादव के प्रचार से RJD में मतभेद गहराने और वोटों के बंटवारे का खतरा बना हुआ है.
  • भाजपा इस मतभेद का फायदा उठाकर राघोपुर में संगठन मजबूत कर नए मतदाताओं को जोड़ने की रणनीति पर काम कर रही है.
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पटना:

बिहार चुनाव में इस बार सबसे ज्यादा चर्चा राघोपुर सीट की हो रही है. यह सीट इसलिए खास है क्योंकि यहां से महागठबंधन के मुख्यमंत्री चेहरा तेजस्वी यादव मैदान में हैं. लेकिन अब उनके बड़े भाई तेज प्रताप यादव का चुनाव प्रचार में उतरना हलचल पैदा कर रहा है. तेज प्रताप पिछले कुछ दिनों से लगातार प्रचार में सक्रिय हैं. वे न सिर्फ अपने क्षेत्र महुआ में बल्कि अब राघोपुर में भी रैलियां करने की तैयारी में हैं. कई मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि तेज प्रताप के इस कदम से RJD के अंदर मतभेद और गहरे हो सकते हैं.

परिवार के अंदर की टकराहट

लालू परिवार के अंदर लंबे समय से राजनीतिक मतभेद चल रहे हैं. तेजस्वी को पार्टी का चेहरा माना जाता है, जबकि तेज प्रताप कई बार अपने अलग विचार और नाराजगी खुलकर सामने रख चुके हैं. अगर राघोपुर में तेज प्रताप का प्रचार वोटों का बंटवारा करता है, तो इसका नुकसान सीधे तेजस्वी को हो सकता है. पिछले चुनाव में राघोपुर सीट पर जीत का अंतर बहुत कम था, इसलिए कुछ हजार वोटों का फर्क भी परिणाम बदल सकता है.

भाजपा की रणनीति

भाजपा इस मौके को एक अवसर के रूप में देख रही है. पार्टी की रणनीति यह है कि अगर महागठबंधन के वोटों में बंटवारा होता है तो उसका सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा. स्थानीय स्तर पर भाजपा अपने संगठन और नेताओं को मजबूत कर रही है. साथ ही, युवा और नए मतदाताओं को जोड़ने की कोशिश में है. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि भाजपा अंदरूनी मतभेद का फायदा उठाकर राघोपुर में आश्चर्यजनक परिणाम ला सकती है.

क्या यह ममता या केजरीवाल जैसा हाल होगा?

 राजनीति में “साथी से विरोधी” बनने के उदाहरण पहले भी मिल चुके हैं. अरविंद केजरीवाल और योगेंद्र यादव की कहानी इसका एक बड़ा उदाहरण है. 2015 के दिल्ली चुनावों के बाद जब आम आदमी पार्टी में अंदरूनी मतभेद बढ़े, तो केजरीवाल और यादव के बीच टकराव ने पार्टी को झटका दिया. इससे कई क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं की एकता टूटी और विपक्ष को मौका मिला. इसी तरह पश्चिम बंगाल में भी ममता बनर्जी के करीबी नेताओं, जैसे शुभेंदु अधिकारी के भाजपा में शामिल होने से टीएमसी को कई सीटों पर नुकसान हुआ था. ममता को अपनी ही पार्टी के बागियों से संघर्ष करना पड़ा.

राघोपुर में तेजस्वी-तेज प्रताप का समीकरण कुछ वैसा ही माहौल बना सकता है, जहां परिवार या संगठन के अंदर की असहमति का फायदा विपक्ष उठा ले. हालांकि, बिहार की राजनीति दिल्ली या बंगाल से अलग है. यहां जाति समीकरण, जमीनी नेटवर्क और परिवारिक छवि बड़ी भूमिका निभाते हैं. लेकिन अगर मतभेद गहराए, तो इसका असर वोटों पर साफ दिखेगा और भाजपा को अप्रत्यक्ष लाभ मिल सकता है.

राघोपुर क्यों अहम

राघोपुर लालू परिवार की परंपरागत सीट है. लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी और अब तेजस्वी यादव. सभी ने यहां से चुनाव लड़ा है. इसलिए यह सीट सिर्फ चुनाव नहीं, बल्कि “पारिवारिक सम्मान” की लड़ाई मानी जाती है. अब जब तेज प्रताप यहां सक्रिय हैं और भाजपा रणनीति बना रही है, तो मुकाबला दिलचस्प और कड़ा हो गया है. राघोपुर में इस बार सिर्फ एक सीट का नहीं, बल्कि पूरे महागठबंधन की साख का सवाल है. अगर अंदरूनी विवाद गहरा गया तो भाजपा को फायदा मिल सकता है. आने वाले हफ्तों में प्रचार और उम्मीदवारों की रणनीति तय करेगी कि क्या तेजस्वी इस बार फिर से जीत दोहराएंगे या राघोपुर में नई कहानी लिखी जाएगी.

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