जयपुर के करेरी गांव की रहने वाली रूपा यादव बाल विवाह की शिकार हुई थी, अब उसने मेडिकल प्रवेश परीक्षा पास की है. तस्वीर: प्रतीकात्मक
नई दिल्ली:
करीब 12 साल पहले राजस्थान की बेटी रूपा मीडिया की सुर्खियों में आई थी. हालांकि रूपा की तस्वीर टीवी स्क्रीन और अखबारों में इसलिए नहीं दिखी थी कि उसने कोई उपलब्धि हासिल की हो. यह मासूम बेटी का बाल विवाह हुआ था, इसके घरवालों ने महज आठ साल की उम्र में 12 साल शंकरलाल से उसकी शादी करा दी थी. उस वक्त मासूम बच्चों की रोती हुई तस्वीरें काफी चर्चा का विषय बनी थी. इस बार रूपा ने अपनी मेहनत और लगन के बूते अखबारों और टीवी चैनलों की सुर्खियों में आई है. रूपा ने मेडिकल एंट्रेंस टेस्ट (NEET) पास कर लिया यानी अब वह डॉक्टरी की पढ़ाई करेगी. हालांकि इस बेटी को इस मुकाम तक पहुंचाने में उसके ससुराल वालों का भी बड़ा हाथ है. ससुराल वालों ने मदद की तो रूपा ऐसा काम कर दिखाया है, जिसके बाद शायद दुनिया के कोई मां-बाप अपनी बेटी का बाल विवाह करने से पहले हजार बार सोचेंगे.
पीटीआई के मुताबिक जयपुर के करेरी गांव की रहने वाली रूपा यादव अब 21 साल की हैं और वह डॉक्टरी की पढ़ाई कर समाज सेवा करने के साथ लड़कियों के लिए प्रेरणा बनना चाहती हैं. सीबीएसई की ओर से आयोजित राष्ट्रीय प्रवेश-सह-पात्रता परीक्षा (NEET) की परीक्षा में रूपा को 702 में से 603 अंक आए हैं. उसने 2283 हजार रैंक हासिल किया है. रूपा ने मेडिकल कॉलेज में दाखिला भी ले लिया है. कोटा में मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने वाली रूपा ने तीसरे प्रयास में इस सफलता को हासिल किया है.
घरवालों ने जब रूपा की शादी कराई थी तब वह तीसरी क्लास में पढ़ती थी. कुछ साल तो उसने मायके में रहकर अपनी पढ़ाई जारी रखी, लेकिन 10वीं की परीक्षा दिए बगैर वह ससुराल चली गई थी. पति और ससुराल वालों ने देखा कि रूपा पढ़ने में मेधावी है, तो उन्होंने उसे भरोसा दिलाया कि वह अपनी पढ़ाई जारी रखे वे हरसंभव उसकी मदद करेंगे. फिर पति व जीजा बाबूलाल ने रूपा का एडमिशन गांव से करीब 6 किलोमीटर दूर प्राइवेट स्कूल में कराया.
रुपा के ससुराल वालों के अलावा गांव वालों ने भी उसकी सास को कहा कि रुपा को स्कूल जाने दिया जाए और पढ़ाई आगे जारी रखने दिया जाए. 10वीं में उसने 84 फीसदी अंक प्राप्त किए.
रूपा ने बताया कि पढ़ाई के दौरान चाचा भीमाराम यादव की हार्ट अटैक से मौत हो गई. इसके बाद मैने ठाना कि डॉक्टर बनूंगी, क्योंकि उन्हें समय पर उपचार नहीं मिल पाया था. रूपा बताती हैं कि कोटा में एक साल मेहनत करके मैं मेरे लक्ष्य के बहुत करीब पहुंच गई. एक साल तैयारी के बाद मेरा सिलेक्शन नहीं हुआ. अब आगे पढ़ने में फिर फीस की दिक्कत सामने आने लगी. इस पर पारिवारिक हालात बताने पर संस्थान ने मेरी 75 प्रतिशत फीस माफ कर दी.
इस सफलता को हासिल करने के बाद रूपा कहती हैं, 'मेरे ससुराल वाले मेरे घरवालों की तरह छोटे किसान हैं, खेती से इतनी आमदनी नहीं हो पा रही थी कि वे मेरी उच्च शिक्षा का खर्च उठा सकें. फिर मेरे पति ने टैक्सी चलानी शुरू और अपनी कमाई से मेरी पढ़ाई का खर्च जुटाने लगे.'
पीटीआई के मुताबिक जयपुर के करेरी गांव की रहने वाली रूपा यादव अब 21 साल की हैं और वह डॉक्टरी की पढ़ाई कर समाज सेवा करने के साथ लड़कियों के लिए प्रेरणा बनना चाहती हैं. सीबीएसई की ओर से आयोजित राष्ट्रीय प्रवेश-सह-पात्रता परीक्षा (NEET) की परीक्षा में रूपा को 702 में से 603 अंक आए हैं. उसने 2283 हजार रैंक हासिल किया है. रूपा ने मेडिकल कॉलेज में दाखिला भी ले लिया है. कोटा में मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने वाली रूपा ने तीसरे प्रयास में इस सफलता को हासिल किया है.
घरवालों ने जब रूपा की शादी कराई थी तब वह तीसरी क्लास में पढ़ती थी. कुछ साल तो उसने मायके में रहकर अपनी पढ़ाई जारी रखी, लेकिन 10वीं की परीक्षा दिए बगैर वह ससुराल चली गई थी. पति और ससुराल वालों ने देखा कि रूपा पढ़ने में मेधावी है, तो उन्होंने उसे भरोसा दिलाया कि वह अपनी पढ़ाई जारी रखे वे हरसंभव उसकी मदद करेंगे. फिर पति व जीजा बाबूलाल ने रूपा का एडमिशन गांव से करीब 6 किलोमीटर दूर प्राइवेट स्कूल में कराया.
रुपा के ससुराल वालों के अलावा गांव वालों ने भी उसकी सास को कहा कि रुपा को स्कूल जाने दिया जाए और पढ़ाई आगे जारी रखने दिया जाए. 10वीं में उसने 84 फीसदी अंक प्राप्त किए.
रूपा ने बताया कि पढ़ाई के दौरान चाचा भीमाराम यादव की हार्ट अटैक से मौत हो गई. इसके बाद मैने ठाना कि डॉक्टर बनूंगी, क्योंकि उन्हें समय पर उपचार नहीं मिल पाया था. रूपा बताती हैं कि कोटा में एक साल मेहनत करके मैं मेरे लक्ष्य के बहुत करीब पहुंच गई. एक साल तैयारी के बाद मेरा सिलेक्शन नहीं हुआ. अब आगे पढ़ने में फिर फीस की दिक्कत सामने आने लगी. इस पर पारिवारिक हालात बताने पर संस्थान ने मेरी 75 प्रतिशत फीस माफ कर दी.
इस सफलता को हासिल करने के बाद रूपा कहती हैं, 'मेरे ससुराल वाले मेरे घरवालों की तरह छोटे किसान हैं, खेती से इतनी आमदनी नहीं हो पा रही थी कि वे मेरी उच्च शिक्षा का खर्च उठा सकें. फिर मेरे पति ने टैक्सी चलानी शुरू और अपनी कमाई से मेरी पढ़ाई का खर्च जुटाने लगे.'
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