जोधपुर:
समाज के रूढ़िवादी रिवाजों के खिलाफ आवाज़ उठाना आसान नहीं होता, लेकिन जोधपुर में एक 19 साल की लड़की ने कुछ ऐसा ही किया। शांता देवी मेघवाल ने 11 महीने में किए गए उसके बाल विवाह को ठुकरा दिया।
शांता देवी का परिवार गरीब है, पिता मकान बनाने में कारीगर का काम करते हैं और जब शांता 11 महीने की बच्ची थी तो उसकी शादी कर बड़ी बहन के साथ कर दी गई थी, लेकिन शांता को इसका कुछ पता नहीं चला। इसके बाद परिवार जोधपुर आ गया, शांता अब बीए सेकेंड ईयर की स्टूडेंट है। तीन साल पहले उसको शादी के बार में पता चला। लड़का उससे 9 साल बड़ा है और कम पढ़ा-लिखा भी। फिर शांता ने मां-बाप को समझाया कि वह शादी ठुकराना चाहती है, मां बाप ने उसकी बात मान ली, लेकिन अब जाति पंचायत आड़े आ रही है। कह रही है 16 लाख रुपये जमा करवाओ, तभी शादी टूट सकेगी।
पंचायत ने बाल-विवाह मानने से इनकार कर देने पर बिरादरी से बाहर करने व हुक्का-पानी बंद करने का तालिबानी फरमान सुना दिया है, लेकिन शांता इस बाल-विवाह की बेड़ियों से आजाद होकर अपनी मर्जी से अपना जीवनसाथी चुनकर शिक्षक बनना चाहती है, जिससे वह समाज को नई दिशा प्रदान कर सके।
इस लड़ाई में शांता देवी का परिवार उसका साथ दे रहा है, जिसके लिए समाज के पंचों ने पूरे परिवार का सामाजिक बहिष्कार करते हुए 16 लाख रुपये का अर्थदंड लगाने का फरमान जारी किया है, अन्यथा शांता देवी को ससुराल भेजने के लिए जबरन धमकाया जा रहा है।
शांता देवी जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय में बीए द्वितीय वर्ष में अध्ययनरत है। वही उसका पति सांवलराम कम पढ़ा लिखा है। वहीं इसी परिवार में शांता देवी की बड़ी बहन का विवाह हो चुका है, जिसके साथ भी ससुराल में अत्याचार किया जा रहा है तथा उसकी बहन को भी ससुराल से बेदखल करने की धमकी दी जा रही है।
बाल-विवाह निरस्त कराने के लिए पीड़िता व उसके परिजनों ने सारथी ट्रस्ट की मैनेजिंग ट्रस्टी कृति भारती से सम्पर्क कर अपनी व्यथा सुनाई। पीड़िता के पिता पदमाराम मेघवाल ने अपनी बेटी शांतादेवी की खुशी के लिए यह विवाह निरस्त करवाने की हिम्मत की, जिस पर पूरा समाज उसके खिलाफ लामबंद होकर खड़ा हो गया। ट्रस्ट का कहना है कि पहले वे ससुराल वालों से बात करके विवाह तोड़ने की राय देंगे और अगर नहीं मानते है तो क़ानून का रास्ता अपनाएंगे।
शांता देवी का परिवार गरीब है, पिता मकान बनाने में कारीगर का काम करते हैं और जब शांता 11 महीने की बच्ची थी तो उसकी शादी कर बड़ी बहन के साथ कर दी गई थी, लेकिन शांता को इसका कुछ पता नहीं चला। इसके बाद परिवार जोधपुर आ गया, शांता अब बीए सेकेंड ईयर की स्टूडेंट है। तीन साल पहले उसको शादी के बार में पता चला। लड़का उससे 9 साल बड़ा है और कम पढ़ा-लिखा भी। फिर शांता ने मां-बाप को समझाया कि वह शादी ठुकराना चाहती है, मां बाप ने उसकी बात मान ली, लेकिन अब जाति पंचायत आड़े आ रही है। कह रही है 16 लाख रुपये जमा करवाओ, तभी शादी टूट सकेगी।
पंचायत ने बाल-विवाह मानने से इनकार कर देने पर बिरादरी से बाहर करने व हुक्का-पानी बंद करने का तालिबानी फरमान सुना दिया है, लेकिन शांता इस बाल-विवाह की बेड़ियों से आजाद होकर अपनी मर्जी से अपना जीवनसाथी चुनकर शिक्षक बनना चाहती है, जिससे वह समाज को नई दिशा प्रदान कर सके।
इस लड़ाई में शांता देवी का परिवार उसका साथ दे रहा है, जिसके लिए समाज के पंचों ने पूरे परिवार का सामाजिक बहिष्कार करते हुए 16 लाख रुपये का अर्थदंड लगाने का फरमान जारी किया है, अन्यथा शांता देवी को ससुराल भेजने के लिए जबरन धमकाया जा रहा है।
शांता देवी जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय में बीए द्वितीय वर्ष में अध्ययनरत है। वही उसका पति सांवलराम कम पढ़ा लिखा है। वहीं इसी परिवार में शांता देवी की बड़ी बहन का विवाह हो चुका है, जिसके साथ भी ससुराल में अत्याचार किया जा रहा है तथा उसकी बहन को भी ससुराल से बेदखल करने की धमकी दी जा रही है।
बाल-विवाह निरस्त कराने के लिए पीड़िता व उसके परिजनों ने सारथी ट्रस्ट की मैनेजिंग ट्रस्टी कृति भारती से सम्पर्क कर अपनी व्यथा सुनाई। पीड़िता के पिता पदमाराम मेघवाल ने अपनी बेटी शांतादेवी की खुशी के लिए यह विवाह निरस्त करवाने की हिम्मत की, जिस पर पूरा समाज उसके खिलाफ लामबंद होकर खड़ा हो गया। ट्रस्ट का कहना है कि पहले वे ससुराल वालों से बात करके विवाह तोड़ने की राय देंगे और अगर नहीं मानते है तो क़ानून का रास्ता अपनाएंगे।
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