बचपन में कट गई थी टांग, बन गया था अपराधी, अब देखिए, क्या करता है यह युवक...

बचपन में कट गई थी टांग, बन गया था अपराधी, अब देखिए, क्या करता है यह युवक...

नई दिल्ली:

ढेरों मुसीबतें झेलने और गलत रास्ते पर चलना शुरू कर देने के बावजूद मुंबई के इस विकलांग युवक ने दृढ़ इच्छाशक्ति और साहस के बूते न सिर्फ अपनी ज़िन्दगी का रुख पलट डाला, बल्कि अपने जैसे सैकड़ों-हज़ारों-लाखों लोगों के प्रेरणा का स्रोत बनकर दिखाया। इस युवक की कहानी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक पर 'ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे' ने अपने पेज पर प्रकाशित की है।

छह साल की उम्र में पांव गंवाने के बाद माहौल और हालात से दुःखी इस युवक ने 15 साल की उम्र में घर छोड़ दिया, अपराधी बन गया, और जब उसकी ज़िन्दगी इतने 'अंधेरे' दौर में पहुंच गई कि उसके खिलाफ देखते ही गोली मार देने का (शूट एट साइट) आदेश जारी हो गया, तब एक रोशनी की किरण इसकी ज़िन्दगी में आई, और इसकी ज़िन्दगी बदलकर रख दी।

सिर्फ एक शख्स ने जो कारनामा हमारी कहानी के नायक युवक की ज़िन्दगी में कर दिखाया, वह सचमुच लाखों-करोड़ों के लिए प्रेरणा बन सकता है, सो, आइए, आप भी पढ़िए इस युवक की कहानी, उसी की ज़ुबानी, जिसके अंत में वह कहता है - एक ही आदमी काफी होता है, ज़िन्दगी बदल डालने के लिए...

फेसबुक पर हमारे नायक की कहानी, उसी की ज़ुबानी
फेसबुक पोस्ट में इस युवक ने लिखा, "मैं स्कूल जा रहा था, जब एक ट्रक मेरे पांव पर से गुज़र गया... मुझे तुरंत अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टर ने कहा कि अगर हमारे पास 25,000 रुपये होते, तो मेरी टांग को बचाया जा सकता था... मैं गरीब परिवार से था, सो वह तो मुमकिन ही नहीं था... टांग काटने के लिए छह ऑपरेशन किए गए, और जब मुझे अस्पताल से छुट्टी मिली, मुझे एहसास हुआ कि ज़िन्दगी में मुश्किलात बनी ही रहेंगी... छह साल की मासूम उम्र में ही मुझे 'लंगड़ा' कहकर पुकारा जाने लगा... अगर मैं दूसरे बच्चों के साथ फुटबॉल खेलने जाता भी था, तो मुझे मैदान में भी घुसने नहीं दिया जाता था, और वे कहते थे कि मेरी वजह से मैदान और बॉल को नुकसान पहुंचेगा... मेरे अपने पिता मुझे बोझ समझते थे, क्योंकि सबसे बड़ा बच्चा होने के नाते मुझे घर चलाने के लिए पैसे से मदद करनी चाहिए थी, लेकिन... वह मुझे बहुत मारते थे, और आखिरकार 15 साल की उम्र में मैं घर से भाग गया, ताकि पैसा कमाकर अपने पैरों पर खड़ा हो सकूं..."

"बस, लोगों को मार-पीटकर पैसा कमाना शुरू कर दिया..."
"मैंने बचपन से ही गली में घूमते गैंग देखे थे, सो, मैंने तय किया कि खुद को बचाए रखने और जल्दी पैसा कमाने के लिए मैं भी किसी गैंग में शामिल हो जाऊंगा... मैंने चाकू रखना शुरू कर दिया, और लोगों को मार-पीटकर पैसा कमाना शुरू कर दिया... मैं तीन बार जेल भी गया... मेरी ज़िन्दगी का वह अंधेरा पहलू था, लेकिन मैं कुछ और जानता ही नहीं था - कोई कमाई नहीं थी, और लगातार मज़ाक उड़ाया जाता था... वर्ष 1994 में तो मुझे 'देखते ही गोली मार देने' के आदेश जारी कर दिए थे... इससे पहले उन्होंने मेरे पिता को जेल में डाल दिया था, और मेरी मां को भी पीटा था... एक रात जब मैं किसी जगह छिपा हुआ था, छह-फुट लंबे एक आदमी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा... मैं उसे पुलिस वाला समझकर अपना चाकू फेंकने ही वाला था, उसने कहा, 'मेरे बच्चे, जीसस तुमसे प्यार करते हैं, और उन्होंने तुम्हारे लिए कुछ शानदार सोचा है...' वह घंटों मेरा हाथ थामे रहा, मुझसे बातें करता रहा, और समझाता रहा कि ज़िन्दगी यहीं खत्म नहीं हुई है - ऐसा कभी मेरे पिता ने भी नहीं किया था... मैंने कहा, अगर भगवान है तो उससे कहो कि वह मुझे इस नर्क से निकाल दें... बस, उसी वक्त से वह मेरे गाइड बन गए... उन्होंने परेशान युवकों के लिए बनाई गई एक जगह पर मेरा दाखिला करवा दिया, मुझे चर्च ले जाने लगे, बाइबल से उपदेश पढ़कर सुनाने लगे, और मुझे सुधारने की कोशिश की... मैं दो साल तक एनजीओ में रहा, और उन्हीं के जरिये मुझे जयपुर फुट भी हासिल हुआ... और वह वक्त था, जब मुझे भरोसा हुआ कि मैं अपने सपनों को हासिल कर सकता हूं... उन लोगों ने मेरे लिए पुलिस तक से बात की, उन्हें समझाया कि मैं अभी 18 साल का भी नहीं हूं, लेकिन सुधर चुका हूं... और उन्होंने मुझे अंतिम चेतावनी देकर छोड़ दिया..."

"मैं देर रात तक काम करता रहा..."
"इसी दौरान, मुझे ख़बर दी गई कि मेरे पिता का देहांत हो गया है... मैं उस समय तक तय कर चुका था कि मैं अपने भाई-बहनों और मां की ज़िम्मेदारी उठाना चाहता हूं, सो, मैं हर रोज़ दिनभर एनजीओ में काम करता था, शाम चार बजे से सात बजे तक स्कूल जाया करता था, और सात बजे से रात 11 बजे तक मैकडॉनाल्ड में काम करता था... शनिवार-रविवार को मोज़े (जुराबें) बेचता था, और एक-एक पैसा जमा करता था... दो साल तक ऐसे ही चलता रहा, और फिर एक दिन एनजीओ में मेरे बॉस ने मुझे बताया कि वह मुझे तरक्की देना चाहते हैं, और मुझे पुर्तगाल में एक लीडरशिप प्रोग्राम में शामिल होना है... मैं खुशी-खुशी मान गया, और ज़्यादा पैसे कमाने लगा... मुझे एक खूबसूरत लड़की मिली, मैंने उससे शादी की, लेकिन मेरे बेटे को जन्म देने के दौरान ब्रेन हैमरेज की वजह से मैंने उसे खो दिया... बस, तभी से मैं समाजसेवा में पूरी तरह रम गया..."

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"यही है मेरी कहानी का संदेश"
"अब पिछले 13 साल से मैं मैराथन में भाग ले रहा हूं... कई पहाड़ों पर चढ़ चुका हूं... विकलांगों की टीम में क्रिकेट भी खेल चुका हूं... गली में घूमने वाले बच्चों के लिए कई प्रोजेक्ट शुरू किए हैं... बाढ़ प्रभावित परिवारों की मदद के लिए लद्दाख तक बाइक चलाकर ले गया हूं... सिर्फ उस एक शख्स की वजह से, जिसने मेरी परवाह की, मेरी ज़िन्दगी को बदलने की कोशिश की... मेरी कहानी का यही संदेश है - एक ही आदमी काफी होता है, ज़िन्दगी बदल डालने के लिए..."

 

"I was on my way to school one morning when a truck ran over my leg. I was rushed to the hospital, but the doctor said...

Posted by Humans of Bombay on Monday, 8 February 2016