Peanut Prince of Argentina: कभी-कभी ज़िंदगी हमें वहां ले जाती है, जहां जाने का हमने कभी सपना भी नहीं देखा होता. दुर्गापुर की गलियों में फुटबॉल देखते हुए बड़ा हुआ एक साधारण-सा लड़का जब अर्जेंटीना की धरती पर उतरा, तो उसे खुद नहीं पता था कि आगे उसकी किस्मत किस दिशा में मुड़ने वाली है. पर खेत-खलिहानों से जुड़ा उसका बचपन, मिट्टी की खुशबू से रिश्ता, और मेहनत की अटूट ताकत धीरे-धीरे उसे उस मुकाम तक ले गई, जहां पूरी दुनिया उसे “Peanut Prince of Argentina” के नाम से जानने लगी. यह सिर्फ एक करियर की कहानी नहीं, बल्कि उस भारतीय की दास्तां है जिसने पराये देश की मिट्टी में अपनी पहचान बोई और सालों बाद उसी जमीन से एक विरासत उगा ली.
सिम्मरपाल सिंह बचपन में टीवी पर माराडोना को खेलते देखते थे. उन्हें क्या पता था कि बड़े होकर वे फुटबॉल नहीं, बल्कि अर्जेंटीना की मूंगफली की खेती में अपना नाम इतिहास में दर्ज कर देंगे. आज दुनिया उन्हें “Peanut Prince of Argentina” के नाम से जानती है, लेकिन इस उपाधि के पीछे संघर्ष, जिद, और अद्भुत नवाचार की एक गहरी कहानी छिपी है.
पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में जन्में सिम्मरपाल एक साधारण सिख परिवार से आते हैं. इनकी स्कूलिंग: सेंट जेवियर्स, दुर्गापुर से हुई. ग्रेजुएशन इन्होंने B.Sc Agriculture, गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी से किया और मैनेजमेंट की पढ़ाई IRMA, आनंद (जहां से कृषि विकास की समझ पुख्ता हुई) से पूरी की. NDDB और अमूल में काम करने के बाद वे ओलम इंटरनेशनल से जुड़े और अफ्रीका में कार्यभार संभाला. यहीं से उनकी ग्लोबल यात्रा शुरू हुई, जो बाद में उन्हें लेकर गई, आइवरी कोस्ट, घाना और आखिरकार अर्जेंटीना.

जहां दूसरे रुक गए, वहीं से सिम्मरपाल ने शुरुआत की
साल 2005 में जब सिम्मरपाल अर्जेंटीना पहुंचे, ओलम केवल एक ट्रेडर कंपनी थी. वहां दशकों पुराने किसान और खरीदारों के बीच मजबूत रिश्ते थे, और बाहरी कंपनी को अच्छे किसान आसानी से नहीं मिलते थे. लेकिन सिम्मरपाल ने वही देखा जो किसी ने पहले नहीं देखा- “जब खरीदना कठिन है, तो खुद उगाओ.” यह आइडिया उस समय बेहद जोखिम भरा था. ओलम ने कभी बड़े स्तर पर खेती की ही नहीं थी. लेकिन सिम्मरपाल ने 700 हेक्टेयर भूमि लीज पर लेकर पहला प्रयोग किया और उनका प्रयोग सफल रहा.
कुछ ही वर्षों में यही 700 हेक्टेयर बढ़कर 39,000 हेक्टेयर हो गया. सोयाबीन, मक्का, अलुबियास, चावल समेत कई फसलें जुड़ती गईं. चार बड़े प्रोसेसिंग प्लांट खड़े हुए और देखते ही देखते ओलम अर्जेंटीना के शीर्ष 7 पीनट प्लेयर्स में शामिल हो गया. इस असाधारण उपलब्धि के बाद भारत के तत्कालीन राजदूत रंगराज विश्वनाथन ने उन्हें नाम दिया- “Peanut Prince of Argentina” और तबसे आजतक यह नाम उनके साथ जुड़ा हुआ है.
टर्बन से लेकर तकनीक तक का जादू
अर्जेंटीना में सिख काफी कम संख्या में हैं. सिम्मरपाल की पगड़ी लोगों के बीच उन्हें खास बनाती थी. लोग उनसे धर्म, संस्कृति, और भारत के बारे में सवाल पूछते थे. लेकिन जो चीज़ उन्हें असल में अलग पहचान दिलाती थी, वह थी- उनका कृषि ज्ञान और बड़े पैमाने पर खेती को समझने की क्षमता. उन्होंने वहां आधुनिक तकनीकें लागू कीं- जैसे- सैटेलाइट आधारित निगरानी, मिट्टी परीक्षण, सिंचाई जोखिम प्रबंधन, क्लाइमेट-रेजिलिएंट फार्मिंग और इन सबने अर्जेंटीना की फसल उत्पादकता को एक नया आयाम दिया.

सिम्मरपाल का कृषि दर्शन
ऑर्गेनिक बनाम केमिकल खेती पर जब दुनिया बहस में उलझी थी, सिम्मरपाल ने बहुत व्यावहारिक बात कही- “बढ़ती जनसंख्या के लिए उसी जमीन से ज्यादा उत्पादन निकालना ही असली चुनौती है. वे ऐसे सिस्टम में विश्वास रखते हैं जहां किसान को मुनाफा भी मिले और जमीन की सेहत भी बनी रहे.
बदला भारतीय एग्री-बिजनेस का चेहरा
अर्जेंटीना में दशक भर काम करने के बाद सिम्मरपाल भारत लौटे. यहां उन्होंने- Louis Dreyfus Company में $1 बिलियन ऑपरेशंस संभाले. COFCO International India का नेतृत्व किया. और फिर 2024 में वे अमेरिका की एग्री-इनोवेशन कंपनी Terviva के Chief Operating Officer बन गए. साथ ही वे स्टार्टअप्स-Knocksense, Snackamor में निवेश करते हैं और युवा उद्यमियों को मेंटर भी करते हैं. भारत में वे- CII की नेशनल काउंसिल फॉर एग्रीकल्चर कमिटी और FICCI की सस्टेनेबल एग्रीकल्चर टास्क फोर्स के सक्रिय सदस्य हैं.

अर्जेंटीना में सिख समुदाय के बीच गर्व का नाम
1930 के दशक से अर्जेंटीना में बसे सिखों के लिए सिम्मरपाल एक रोल मॉडल बन गए. 2018 में जब अर्जेंटीना ने आधिकारिक रूप से सिख धर्म को मान्यता दी, तो इस बदलाव में भारतीय समुदाय के योगदान और पहचान को भी अहम भूमिका मिली. वे कहते हैं: “मैं IIT या सिविल सर्विस में जाना चाहता था, पर जिंदगी ने अलग दिशा दिखा दी. मैंने बस मौकों को पकड़ना सीखा.
‘पीनट प्रिंस' की अनोखी विरासत
दुर्गापुर के जिस लड़के ने टीवी पर माराडोना देखे थे, उसी ने अर्जेंटीना की धरती पर ऐसा काम कर दिखाया, जिसने भारतीयों का सर ऊंचा कर दिया. आज सिम्मरपाल सिंह सिर्फ एक कॉर्पोरेट लीडर नहीं, बल्कि एक ऐसी प्रेरणा हैं, जो साबित करती है कि दुनिया में पहचान वही बनाता है जो सीमाओं से बाहर सोचने की हिम्मत रखता है.
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