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This Article is From Jun 26, 2019

भीख मांगकर खुश हैं भिखारी, कहा- "सरकार की कोई योजना उनके काम की नहीं, भीख मांगने में है ज्‍यादा मुनाफा"

हनुमान सेतु के सामने बैठकर भिक्षा मांगने वाले सूरज भी इस धंधे में 20 साल से है. वह विकलांग के लिए गाड़ी खींचता है. उसने कहा कि सरकार की कोई भी योजना उसके लिए ठीक नहीं है. उसकी एक दिन की कमाई लगभग 1500 रुपये है.

भीख मांगकर खुश हैं भिखारी, कहा- "सरकार की कोई योजना उनके काम की नहीं, भीख मांगने में है ज्‍यादा मुनाफा"
भिखारी काम में लगने को तैयार नहीं हैं, उन्हें अपना मौजूदा हाल ही पसंद है
लखनऊ:

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में नगर निगम अब भीख मांगने वाले लोगों को रोजगार से जोड़ने की मुहिम चलाने जा रही है, ताकि उनकी आय सुनिश्चित हो सके और जीवन स्तर सुधरे. मगर भिखारी काम में लगने को तैयार नहीं हैं, उन्हें अपना मौजूदा हाल ही पसंद है. हजरतगंज चौराहे पर लगभग 20 साल से भिक्षावृत्ति में लगे आशू ने बताया कि इस धंधे में वह लगभग पांच साल से है. यहां कमाई ठीक-ठाक हो जाती है. हालांकि उसने यह बताने से मना कर दिया कि किसके लिए काम करता है. उसने कहा, "हम लोगों के हफ्तेवार चौराहे बंधे होते हैं. किसी एक जगह पर टिकना मना है. मुझे यही ठीक लगता है, मैं किसी और काम में जाना नहीं चाहता हूं."

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हनुमान सेतु के सामने बैठकर भिक्षा मांगने वाले सूरज भी इस धंधे में 20 साल से है. वह विकलांग के लिए गाड़ी खींचता है. उसने कहा कि सरकार की कोई भी योजना उसके लिए ठीक नहीं है. उसकी एक दिन की कमाई लगभग 1500 रुपये है.

नगर निगम की योजना के बारे में बताने पर उसने कहा, "हम कूड़ा कलेक्शन से कितना पा जाएंगे? यहां पर बैठे-बैठे भरपेट भोजन भी मिलता है. हम शेल्टर हाउस में एक दो बार जा चुके हैं, लेकिन वहां पर काम ज्यादा है. भूखे भी रहना पड़ता है. इससे ठीक यही है."

एक अन्य बुजुर्ग भिखारी रामदुलारे जो इस पेशे में लगभग 40 साल से हैं, बाराबंकी से यहां रोज आते हैं. उन्होंने कहा, "नगर-निगम की सुविधा हमारे लिए नहीं ठीक है. हम तो यहीं पर ज्यादा अच्छा महसूस करते हैं. कम से कम मंगलवार को हमारा धंधा ठीक रहता है. बड़े लोगों के आने पर अच्छा पैसा और खाना मिल जाता है. इसीलिए हम कहीं और जाने वाले नहीं हैं."

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भिक्षावृत्ति से जुड़े जितने भी लोग हैं, उन्होंने अपना स्थानीय पता देने से हालांकि मना कर दिया. वे किसके लिए यह धंधा करते हैं, यह भी बताने से कतराते हैं.

भिखारियों के जीवन पर काम करने वाले एक पत्रकार अभिषेक गौतम ने बताया कि भिक्षावृत्ति से जुड़े लोगों का एक सेंडिकेट चलता है. हर दिन और घंटे में बदल-बदल कर ये लोग मंदिरों और चौराहों पर बैठते हैं. ये अपने जीवन से खुश रहते हैं. अगर बदलाव की कोई बात करो तो मना कर देते हैं.

उन्होंने कहा, "हमने तो पूरी छानबीन भी की है. किसी-किसी भिखारी के पास रेलवे और बस के पास भी मिले हैं. वे अन्य जिलों से हर सप्ताह आकर यहां पर भिक्षा मांगते और पैसा लेकर निकल जाते हैं. इनके पीछे कौन सा गिरोह काम कर रहा है, यह तो ठीक से पता नहीं चल पाया है, लेकिन एक बात तो है कि इसमें जुड़े लोग बड़े स्तर के माफिया और सेंडिकेट हैं, जो व्यापार के नाम पर ऐसा धंधा कर रहे हैं. आपराधिक गिरोह या कुछ आलसी लोगों द्वारा ही इसे स्वेच्छा से चुना जाता है, कुछ लोग मजबूरी के चलते भीख मांगते हैं."

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गौतम ने बातया कि भिक्षावृत्ति की समस्या के समाधान के लिए पहले भी कई बार सरकारी और निजी स्तर पर अनेक प्रयास किए जा चुके हैं. प्रशासनिक स्तर पर इस बारे में सख्ती से कदम उठाने के निर्णय भी लिए गए हैं, लेकिन अब तक प्रदेश में इस समस्या का कोई स्थायी समाधान खोजा ही नहीं जा सका है.

भिक्षावृत्ति से जुड़े लोगों को और उनका जीवन संवारने वाले बदलाव संस्था के मुखिया शरद पटेल का कहना है कि लखनऊ में लगभग 4500 वयस्क भिक्षावृत्ति से जुड़े लोग हैं. शरद व उनके साथियों ने 2014 में भिखारी पुनर्वास अभियान शुरू किया. उन्होंने बताया, "जब मैंने यह काम शुरू किया तो देखा यहां पर 9 बेगर होम बने हैं. यहां कर्मचारी तो है, लेकिन भिखारी नहीं है. समाज कल्याण के लोग इसे संचालित करते हैं. इसमें जो पुलिस के माध्यम से लोग पकड़े जाते हैं और उसे एक साल बाद बॉण्ड भरवाकर उन्हें छोड़ देते हैं. इससे कोई लाभ नहीं है."

शरद ने बताया कि इन्हें काम से जोड़ना अच्छा मुहिम है, लेकिन जबरन यह जोड़ना ठीक नहीं है. दराअसल, इस पेशे में जुड़े लोग धीरे-धीरे नशा और अन्य चीजों की आदी हो जाते हैं. फिर वह इस धंधे से बाहर नहीं निकलना चाहते हैं. इन लोगों को बिना काम किए इतना पैसा मिलता है कि उन्हें अन्य काम में मन नहीं लगाता है. इन्हें जागरुक करने की जरूरत है.

उन्होंने बताया कि उनके व्यवहार और इच्छाशक्ति में बदलाव की जरूरत है. अभी तक 55 लोगों को इस धंधे से मुक्त कराया गया है. अब वह अपने घर भी जाने लगे हैं. इसके लिए तरह-तरह की एक्टिविटी करते हैं, जागरुक करते हैं. नशा छुड़ाने के लिए काम करते हैं.

पटेल ने बताया कि अपने साथियों के संग 200 से अधिक भिखारियों की काउंसिलिंग कराई और भिक्षावृत्ति छुड़वाकर उन्हें स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया. इससे कई भिखारी निजी कामों में, जबकि कुछ मेहनत-मजदूरी में लग गए.

उन्होंने कहा, "हमारा उद्देश्य है कि सभ्य समाज से दूर रहने वाले भिखारियों को मुख्यधारा में लाया जाए. इसके लिए उन्होंने भिक्षावृत्ति की नींव यानी बाल भिक्षुओं को शिक्षित करने का भी बीड़ा उठाया है."

भिक्षावृत्ति से जुड़े पूरे परिवार के पुनर्वास का प्रयास करना चाहिए, भिक्षावृत्ति को मजबूर लोगों को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाना जरूरी है. ऐसे लोगों को स्वरोजगार या जीविका के सम्मानजनक साधन मुहैया कराने के लिए सरकार को आगे आना चाहिए. भिक्षावृत्ति के अभिशाप से को मुक्त करना है तो भिखारियों की ऊर्जा को सही जगह लगाना होगा. सरकारी योजनाओं का उन्हें लाभ देकर या स्वरोजगार का प्रशिक्षण दिलवा कर इनके लिए जीविकोपार्जन के सम्मानजनक रास्ते खोले जा सकते हैं. 

लखनऊ के नगर आयुक्त इंद्रमणि के अनुसार, नगर निगम की मंशा है जो सार्वजनिक चौराहों और मंदिरों में भिक्षा मांग रहे हैं. उन्हें डोर-डोर कूड़ा एकत्र करने के लिए लगाया जाए. नगर निगम ने अपने सभी जोनों में इसके लिए आदेश भी जारी कर दिए हैं.

उन्होंने बताया कि कचरा प्रबंधन का काम करने वाले एजेंसी इकोग्रीन के पास हमेशा कर्मचारियों की कमी है. उनमें कुछ लोगों को जोड़ा जाएगा. साथ ही कूड़ा कलेक्शन के लिए लगाया जाएगा. उसमें से आने वाली आय में से 20 से 30 फीसदी इन्हें ही दिया जाएगा.

दरअसल, भिखारियों को लेकर मुख्यमंत्री बहुत सख्त हुए हैं. उन्होंने शासन को आदेश दिया था. इनके लिए कोई रणनीति बनाकर इन्हें रोड में टहलने से बचाया जाना चाहिए.

गौरतलब है कि भिखारियों को अभी बड़े चौराहे पर गाड़ी सफाई और शीशा साफ करने पर जो आय होती है, वह कूड़ा कलेक्शन से हो पाना संभव नहीं है. बड़े-बड़े रेस्टोरेंटों और मंदिरों के बाहर किसी विशेष अवसर पर उन्हें ज्यादा मुनाफा होता है. ऐसे में नगर आयुक्त ने कहा कि यह बदलाव करना आसान नहीं है. पर कोशिश करने में क्या हर्ज है! इसको सभी अधिकारी अभियान के रूप लेंगे तो निश्चित तौर पर सफलता मिलेगी.

इनपुट: आईएएनएस

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