ज्यादातर लोग आज भी लाइब्रेरी में जाकर किताबें पढ़ना पसंद करते हैं. लाइब्रेरी में अपनी मनपसंद किताब को पढ़ने का सुख ही कुछ और होता है. शांति सुकून के इन पलों में कुछ लोग तो आधी किताब ही पढ़कर चट कर जाते हैं. वहीं कुछ लोग बुक्स इश्यू करवाकर घर लेजाकर आराम से किताब पढ़ने का आनंद लेना पसंद करते हैं. कई बार कुछ लोग बिजी लाइफस्टाइल के चलते उन किताबों को वापस लाइब्रेरी को लौटाना भूल जाते हैं. यूं तो लाइब्रेरी की बुक्स अपने पास रखने की एक समय सीमा होती है. उस तय समय सीमा से लेट होने पर हर एक दिन के हिसाब से फाइन भी लगाया जाता है. हाल ही में एक ऐसा ही मामला सामने आ रहा है, जिसमें एक शख्स जब लाइब्रेरी की किताब लौटाने आया, तो वहां मौजूदा स्टाफ भी हक्का-बक्का रह गया. पढ़ें क्या है पूरा मामला.
दरअसल, एक शख्स ने लाइब्रेरी से इश्यू की एक बुक को लंबे अरसे के बाद जब मौजूदा स्टाफ को सौंपा, तो स्टाफ का रिएक्शन देखने लायक था. मामला अमेरिका में वाशिंगटन के एबरडीन का है. बताया जा रहा है कि, यह किताब 30 मार्च 1942 को एबरडीन टिम्बरलैंड लाइब्रेरी से इश्यू करवाई गई थी, जिसे एक शख्स ने 81 साल बाद लाइब्रेरी को लौटाया, जिसके बाद लाइब्रेरी ने इसकी जानकारी अपने फेसबुक पेज पर साझा की. हैरानी की बात तो यह है कि, इतने लंबे अरसे के बाद भी शख्स ने बुक के सिर्फ 17 पन्ने ही पढ़े.
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सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, ओलंपिया, वाशिंगटन में रहने वाले ब्रैड बिटर ने चार्ल्स नॉरडॉफ और जेम्स नॉर्मन हॉल की किताब 'द बाउंटी ट्रिलॉजी' को पूरे 81 साल बाद एबरडीन टिम्बरलैंड लाइब्रेरी को वापस किया, जिसे मार्च 1942 में इश्यू करवाया गया था. ब्रैड बिटर ने मीडिया आउटलेट को बताया कि, लाइब्रेरी में लौटाने से पहले यह बुक कुछ वर्षों से उनके गैरेज में पड़ी थी. उन्होंने कहा कि, वह उस व्यक्ति को नहीं जानते हैं, जिसने 81 साल पहले किताब को इश्यू करवाया था और कहा कि, वे होक्विम, वाशिंगटन में अपने परिवार के स्टोर पर जाते समय इसे पीछे छोड़ गए होंगे. उन्होंने कहा कि, उन्हें ऐतिहासिक कलाकृतियों को इकट्ठा करना पसंद है और उन्होंने बुक (जो 1932 में प्रकाशित हुई थी) को स्टोर से पीछे छोड़ी गई प्राचीन वस्तुओं के बीच पाया. बिटर ने सीएनएन को बताया, मैंने मान लिया था कि लाइब्रेरी शायद इसे वापस लेने में दिलचस्पी नहीं लेगी, लेकिन जब उन्होंने किताब लौटाई तो लाइब्रेरी स्टाफ सन्न रह गया.
बुक को वापस पाने के बाद लाइब्रेरी के अधिकारियों ने हिसाब लगाया की इस बुक की लेट फीस कितनी होगी. ऐसे में1942 के रेट के हिसाब से रविवार और अन्य छुट्टियों को छोड़कर हर दिन के 2 सेंट यानि की $484 (लगभग 40 हजार रुपये) बन रहा है. हालांकि, लाइब्रेरी ने बीते सालों कोविड19 महामारी के दौरान लेट फीस को पूरी तरह खत्म कर दिया था. लाइब्रेरियन यह जानकर हैरान थे कि, बुक ले जाने वाले शख्स ने बुक के अंदर कवर पर लिखा था कि, यदि मुझे पैसे भी दिए जाते तो भी मैं इस किताब को नहीं पढ़ता. लाइब्रेरी ने इसकी जानकारी फेसबुक पेज पर साझा करते हुए लिखा, इस कहानी से क्या शिक्षा मिलती है? यदि आपके पास इश्यू की गई कोई किताब धूल खा रही है, तो उसे लाइब्रेरी में वापस कर दें. हम इसे तोहफा समझकर लेंगे और फाइन नहीं मांगेंगे.
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