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This Article is From Mar 08, 2022

यूक्रेन ने अब तक रूसी सैनिकों को क्यों और कैसे रोक रखा है: 5 बड़े कारण

Ukraine-Russia war: 2014 में जब रूस ने क्रीमिया पर कब्जा कर लिया और रूस समर्थक अलगाववादियों ने देश के पूर्वी हिस्सों पर कब्जा कर लिया, तब से यूक्रेन ने पश्चिमी मदद से अपने सशस्त्र बलों को काफी हद तक मजबूत किया है.

यूक्रेन पर रूस के हमले (Russia Invasion of Ukraine) के लगभग दो सप्ताह बाद भी यूक्रेनी सैनिक बलों (Ukrainian Forces) ने रूसी सेना (Russian Troops) को आगे बढ़ने से रोक रखा है. यूक्रेन की इस कामयाबी की पश्चिमी देश प्रशंसा कर रहे हैं. विश्लेषकों का कहना है कि संख्यात्मक रूप से रूस की सेना यूक्रेन से कई गुना बेहतर है, बावजूद इसके रूस के खिलाफ यूक्रेन ने राष्ट्रीय एकता की भावना, दुश्मन से लड़ने की अच्छी तैयारी और रूसी गलतियों के कारण उन्हें आगे बढ़ने नहीं दे रही.

हालांकि, भविष्य अस्पष्ट बना हुआ है. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने बार-बार कहा है कि वह अपने और अपने लक्ष्यों के बीच कुछ भी आड़े आने नहीं देंगे. एक वरिष्ठ फ्रांसीसी सैन्य सूत्र ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा, "वे (रूसी) मूल रूप से बहुत तेजी से आगे नहीं बढ़ रहे हैं. किसी बिंदु पर उन्हें फिर से संगठित करना होगा लेकिन यह उनकी विफलता का संकेत नहीं है."

ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ऐसे क्या कारण और तरीके हैं, जिसकी वजह से यूक्रेन ने रूसी सैनिकों की प्रगति को रोक रखा है?

तैयारी:
2014 में जब रूस ने क्रीमिया पर कब्जा कर लिया और रूस समर्थक अलगाववादियों ने देश के पूर्वी हिस्सों पर कब्जा कर लिया, तब से यूक्रेन ने पश्चिमी मदद से अपने सशस्त्र बलों को काफी हद तक मजबूत किया है. साल 2016 में नाटो और कीव ने यूक्रेनी विशेष बलों के लिए एक प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया था, जो अब 2,000 की संख्या में हैं और नागरिक स्वयंसेवकों की मदद करने में सक्षम हैं.

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जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय के सहायक एसोसिएट प्रोफेसर डगलस लंदन ने कहा, "यूक्रेनवासियों ने पिछले आठ साल रूसी कब्जे का विरोध करने के लिए योजना बनाने, प्रशिक्षण देने और खुद को उपकरणों से लैस करने में बिताए हैं." यह समझते हुए कि युद्ध के मैदान में अमेरिका और नाटो उसके बचाव में नहीं आएंगे, यूक्रेन ने ऐसी रणनीति बनाई जिससे "मास्को खून बहाने पर केंद्रित हो गया है, ताकि कीव पर कब्जे की रणनीति को अस्थिर बनाया जा सके."

स्थानीय ज्ञान:
रूस, उस सोवियत-युग पर भरोसा करता है जिसे मॉस्को ने यूएसएसआर के तहत नियंत्रित किया था. इस कोशिश में उसने यूक्रेनी सेना के घरेलू मैदान को कमतर आंक लिया.  इसमें दोनों शामिल हैं- पहला इस भू-भाग का ज्ञान और दूसरा स्थानीय लोगों की क्षमता जो खुद को हमलावर ताकतों के खिलाफ हथियार उठाने में सक्षम हो चुके हैं.

कॉलेज ऑफ इंटरनेशनल सिक्योरिटी अफेयर्स में प्रोफेसर स्पेंसर मेरेडिथ ने कहा, "अनियमित युद्ध के ऐसे परिदृश्य में कमजोर ताकतें अक्सर इलाके की जानकारी, स्थानीय ज्ञान और सामाजिक संपर्कों का लाभ उठाकर अपने विरोधियों पर मजबूत बढ़त बना सकती हैं"

एकजुटता:
राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की के नेतृत्व में, जो अपने जीवन को जोखिम में डालकर लगातार कीव में डटे हुए हैं,  यूक्रेनी लोगों ने प्रतिकूल परिस्थितियों में एकजुट होकर गहरा लचीलापन रुख दिखाया है. हालांकि, रूसी सैनिकों ने राजधानी कीव में भी दस्तक दे दी है. बावजूद इसके आम नागरिकों ने फ्रंटलाइन के लिए स्वेच्छा से काम किया है, और रूसी सैनिकों का डटकर मुकाबला कर रहे हैं. इन लोगों ने अपने परिवारों को देश के पश्चिमी इलाके में या देश की सीमाओं के बाहर सुरक्षित रूप से पहुंचा दिया है.

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ऑनलाइन प्रसारित तस्वीरों में यूक्रेन के आम लोगों को मोलोटोव कॉकटेल बनाते हुए या किसानों को रूसी सैन्य सामानों पर कब्जा करते हुए दिखाया गया है. सेवानिवृत्त फ्रांसीसी कर्नल मिशेल गोया ने कहा, यूक्रेन के पास "प्रादेशिक सैनिकों के तेजी से प्रशिक्षण और हल्के हथियारों के इस्तेमाल से अपनी युद्ध क्षमता को और बढ़ाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा था."

रूस की रणनीतिक त्रुटियां:
सैन्य विश्लेषकों का कहना है कि 24 फरवरी को यूक्रेन पर हमला शुरू करने के बाद रूस ने शुरुआती दिनों में रणनीतिक त्रुटियां कीं. प्रारंभिक चरण में रूस ने बहुत कम जमीनी सैनिकों को भेजा और जमीन और वायु सेना को मिलकर काम करने में विफल रहा. ऐसा प्रतीत होता है कि मास्को को कुछ ही दिनों में यूक्रेन में सैन्य सफलता हासिल करने की उम्मीद थी.

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अमेरिका में सेंटर फॉर नेवल एनालिसिस में रूस अध्ययन कार्यक्रम के निदेशक माइकल कोफमैन ने कहा, "शुरुआत में उन्हें लगा कि वे राजधानी कीव में बहुत जल्दी इकाइयों को पेश कर सकते हैं... लेकिन बहुत जल्दी उन्हें गलती का एहसास हो गया."

मनोवैज्ञानिक भय:
रूस ने हाल के हफ्तों में यूक्रेन सीमा पर करीब दस हज़ार से ज्यादा सैनिकों को तैनात करके दुनिया भर में खतरे की घंटी बजा दी है लेकिन यह संभव है कि कुछ लोगों को इस बात का अंदाजा पहले से ही था कि उन्हें पड़ोसी देश में युद्ध के लिए भेजा जा सकता है, जिसके निवासी साथी स्लाव हैं और जहां कई लोग अपनी मातृभाषा रूसी बोलते हैं.

इस मनोबल के बावजूद रूसी सैनिकों को मनोवैज्ञानिक भय सताता रहा है क्योंकि  भारी संख्या में रूसी सैनिक भी हताहत हुए हैं.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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