दुनिया भर में कोरोनावायरस महामारी (Coronavirus Pandemic) के दौरान विश्व स्वास्थ्य संगठन ( WHO) की बड़ी भूमिका रही. वैक्सीन (Vaccine) से लेकर अहम कोविड (Covid 19) रोकथाम नियमों की घोषणा तक सभी को WHO के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस अदहानोम गेब्रेयेसस (Tedros Adhanom Ghebreyesus) के बयान का इंतज़ार रहता. लेकिन अब टेड्रोस अपने ही देश में सरकार की तरफ से समस्याओं का सामना कर रहे हैं. टेड्रोस WHO के महानिदेशक के पद पर बैठने वाले पहले अफ्रीकी हैं. 2017 में उनके चुनाव की प्रक्रिया भी ऐतिहासिक थी. इस दौरान गुप्त मतदान हुआ था, जिसमें WHO के 70 साल के इतिहास में पहली बार सभी सदस्य देशों को मतदान का समान अधिकार दिया गया था. इससे पहले कार्यकारी बोर्ड के मतदान के जरिए इस पद पर नियुक्ति होती थी. टेड्रोस को दो-तिहाई बहुमत से जीत मिली.
उनकी नियुक्ति के बाद उनके देश इथोपिया (Ethiopia) में जश्न मनाया गया था, लेकिन अब जब कोरोना महामारी की कई लहरों का सामना कर चुके टेड्रोस दूसरे कार्यकाल के लिए WHO की कमान संभालने के इच्छुक है, तो इथियोपिया में उनके खिलाफ माहौल है और सरकार ने उन पर देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करके कदाचार का आरोप लगाया है.
द कन्वर्सेशन में मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी में ग्लोबल हैल्थ और मानवीय मामलों के प्रोफेसर मुकेश कपिला के लेख के अनुसार बहरहाल, ट्रेडोस को पुन: चुने जाने के लिए इथियोपिया के समर्थन की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उन्होंने पहले कार्यकाल में शानदार काम किया है और कोई उम्मीदवार उनका विरोध नहीं कर रहा.
Tedros से नाराजगी क्यों?
इस विवाद की जड़ है टिग्रे (Tigray) नरसंहार में. टिग्रे में पिछले साल गृह युद्ध हुआ था. इस दौरान टिग्रे में आम नागरिकों के खिलाफ जातीय हमले किए गए थे और दवाओं एवं खाद्य सामग्रियों की आपूर्ति रोक दी गई थी.
“Humanitarian access is non-negotiable” the defacto blockade on #Tigray should end. #Ethiopia https://t.co/WNTfWP0tI7
— Tedros Adhanom Ghebreyesus (@DrTedros) January 28, 2022
टिग्रे के नरसंहार में टेड्रोस के परिवार और उनके मित्रों को भी इस संघर्ष में निशाना बनाया गया था. टेड्रोस इथोपिया में ‘टिग्रे पीपल्स लिबरेशन फ्रंट' के प्रभुत्व वाले पूर्व प्रशासन के एक अहम सदस्य थे. ‘टिग्रे पीपल्स लिबरेशन फ्रंट' मौजूदा प्रधानमंत्री अबी अहमद की विरोधी पार्टी है. ऐसे में जब टेड्रोस ने इस इलाके की मानवीय स्तिथि पर सवाल उठाए तो इथोपिया सरकार के कुछ स्थानीय लोग उनसे नाराज़ हो गए.
आवाज उठाई जाए या चुप रहा जाए?
संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी के निर्वाचित प्रमुख के खिलाफ नाराजगी और उन्हें अपमानित किया जाना चिंताजनक व्यापक समस्याओं को उठाता है. अंतरराष्ट्रीय संगठनों के नेता सदस्य देशों को जब सर्वमान्य नियमों एवं कानूनों का उल्लंघन करते देखते हैं, तो क्या उन्हें बोलना चाहिए या चुप रहना चाहिए?
Press Statement from the External Affairs Office of the Government of Tigray on Current Developments: 25 January 2022 @TigrayEAO pic.twitter.com/bjbXXRD7JV
— Kindeya Gebrehiwot, PhD, Prof (@ProfKindeya) January 25, 2022
डब्ल्यूएचओ एक बहुपक्षीय विकास एजेंसी है लेकिन स्वास्थ्य के क्षेत्र में इसका कार्य काफी हद तक मानवीय है. कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के कारण इसका महत्व और बढ़ गया है.
टेड्रोस की दुविधा से सभी मानवतावादी भली भांति परिचित हैं. यदि वे पीड़ितों के साथ हुए दुर्व्यवहार या उत्पीड़न के खिलाफ बोलते हैं, तो सरकारें उनकी निंदा करती हैं और यदि वे पीड़ितों के लिए आवाज नहीं उठाते, तो मानवाधिकार समर्थक उनकी निंदा करते हैं.
बदल रहे पुराने नियम
इथोपिया, यमन और म्यांमा जैसे क्षेत्रों में मानवतावादियों की भूमिका तेजी से सिकुड़ रही है. पुराने नियम और उससे जुड़ी शिष्टता अब काम नहीं करतीं.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, मानवाधिकार परिषद, अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय या अफ्रीकी संघ जैसे ढांचों और संस्थानों की एक बहुपक्षीय प्रणाली का रक्षा कवच उनकी अवहेलना करने वाले शक्तिशाली देशों की भूराजनीति के कारण कमजोर हो गया है.
आजकल मानवतावादी इथियोपिया में तभी काम कर सकते हैं, यदि वे राष्ट्रीय प्राधिकारियों की इच्छा के अनुसार चलते हैं. नए नियम हैं- ‘‘बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत बोला.''
इस बात को भी पचाया जा सकता था, यदि ऐसा करने पर अकाल से पीड़ित और बीमार लोगों को मदद मिलती, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा.
कम होता प्रभाव
सहायता कर्मी पहले कठिन परिस्थितियों में अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस समिति (आईसीआरसी), इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेड क्रॉस (आईएफआरसी) और रेड क्रिसेंट सोसाइटीज समेत रेड क्रॉस रेड क्रिसेंट मूवमेंट से प्रेरणा लेते थे, लेकिन अब उनका सामूहिक प्रभाव दुनियाभर में सिकुड़ रहा है. संयुक्त राष्ट्र की कुछ एजेंसियों के कुछ साहसी नेताओं के इथियोपिया में स्थिति के खिलाफ आवाज उठाने के बावहूद आईसीआरसी और आईएफआरसी इस मामले पर आश्चर्यजनक रूप से मौन हैं.
टेड्रोस की दया भावना और उनकी अंतररात्मा ने उन्हें निडर होकर मानवता के लिए आवाज उठाने की ताकत दी. जिम्मेदार पदों पर बैठे अन्य नेताओं को भी ऐसा करना चाहिए. इस तरह दीर्घकाल में वे संभवत: कई लोगों की जान बचा सकते हैं.
लेकिन किस बात को ऊंची आवाज में उठाया जाना चाहिए और किस बात को निजी तौर पर धीरे से फुसफुसाना चाहिए? उन्हें भूखे और बीमार लोगों के लिए संसाधनों की मांग करने की अनुमति है, लेकिन उन्हें पीड़ा देने वाली अमानवीयता को चुनौती देने की इजाजत नहीं है, क्योंकि इससे ‘‘तटस्थता'' और ‘‘निष्पक्षता'' के आधारभूत मानवीय सिद्धांतों का उल्लंघन होता है.
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