जलवायु परिवर्तन का पृथ्वी के वायुमंडल की संरचना पर असर बढ़ रहा है, एक नए शोध में यह बात सामने आई है.चीन के नानजिंग विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय शोध दल ने यह शोध किया है जिसमें पाया गया है कि ट्रोपोपॉज समतापमंडल की सीमा को लगभग 50-60 मीटर (लगभग 165-195 फीट) प्रति दशक तक धकेल रहा है. पृथ्वी की सतह के पास बढ़ते तापमान की वजह से ही निचले वातावरण का विस्तार हो रहा है. नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फियरिक रिसर्च (NCAR) के वैज्ञानिक और इस शोध के सह-लेखक बिल रैंडल ने कहा, "यह वायुमंडलीय संरचना में बदलाव का स्पष्ट संकेत है. यह साबित करता है कि ग्रीनहाउस गैसों से हमारे वातावरण में फेरबदल हो रहे हैं."
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वातावरण में ट्रोपोस्फेयर को स्ट्रैटोस्फेयर से अलग करने वाले ट्रोपोपॉज की पृथ्वी की सतह से दूरी पोल्स पर 5 मील और भूमध्य रेखा से 10 मील होती है, यह मौसम पर आधारित होती है. आमतौर पर ट्रोपोपॉज कामर्शियल पायलट्स के लिए महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि वे टर्बूलेंस से बचने के लिए निचले स्ट्रैटोस्फेयर पर उड़ान भरते हैं. ट्रोपोपॉज की उंचाई लगातार बढ़ने का समाज या पारिस्थितिकी तंत्र पर तो खास असर नहीं पड़ा, लेकिन यह इस बात का सबूत जरूर है कि ग्रीनहाउस गैस का असर कितना गहरा हो रहा है.
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वैज्ञानिकों के पिछले शोधों में भी यह तथ्य सामने आया था कि ट्रोपोपॉज की पृथ्वी से उंचाई बढ़ रही है. ऐसा केवल जलवायु परिवर्तन के कारण ही नहीं बल्कि ओजोन डेप्लेशन के कारण समतापमंडल के ठंडा होने के कारण भी हुआ. रैंडल व उनके अन्य सह-लेखकों ने नए डेटा के आधार पर यह पता लगाने की कोशिश की कि ट्रोपोपॉज लगातार पथ्वी से कितना ऊंचा उठ रहा है, क्योंकि इस पर अब समतापमंडल के तापमान का कोई खास असर नहीं हो रहा है.
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