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NATO से बाहर होगा ‘बिग ब्रदर’ अमेरिका? ट्रंप के तेवर से यूरोप के डर की अपनी वजह है

NATO-रूस के बीच दो-ध्रुवीय नजर आने वाली लड़ाई आज तीन मोर्चे पर नजर आ रही है. दुश्मन दोस्त दिख रहा है और दोस्त अब सौतेला. सवाल है कि NATO का भविष्य क्या नजर आ रहा है?

NATO से बाहर होगा ‘बिग ब्रदर’ अमेरिका? ट्रंप के तेवर से यूरोप के डर की अपनी वजह है
ट्रंप कुर्सी पर आए और पूरा समीकरण बदल गया…
नई दिल्ली:

50 करोड़ यूरोपीय 30 करोड़ अमेरिकी से गुहार लगा रहे हैं कि 14 करोड़ रूसियों से हमारी रक्षा करो… वो इसलिए नहीं कि हम आर्थिक तौर पर कमजोर हैं. क्योंकि हमें अपने आप पर भरोसा नहीं है. हमें अपनी क्षमता को पहचान कर आगे बढ़ना होगा.”

यह कहना है पोलैंड के पीएम डॉनल्ड टस्क का जो लंदन में सिक्योरिटी समिट में शिरकत करने पहुंचे थे. पोलैंड के पीएम की इस टिप्पणी ने उस कड़वी सच्चाई की ओर इशारा किया है जिसे आज पूरा यूरोप जी रहा है. डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका में राष्ट्रपति के पद पर वापसी क्या कि ऐसा लग रहा है पूरे यूरोप ने अपने 'बिग-ब्रदर' को खो दिया है. अमेरिका अपने यूरोपीय सहयोगियों के सैन्य संगठन, उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) से ज्यादा करीब तो रूस के पास नजर आ रहा है.

दो दिन पहले व्हाइट हाउस में यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की के साथ ट्रंप के तमाशे को पूरी दुनिया ने देखा. जो पहले कभी नहीं हुआ, वो हो रहा था. इस पूरे वाकये ने वेस्ट अलायंस की वो फॉल्टलाइन सबके सामने खोलकर रख दी जो आजतक इस हद तक नजर नहीं आया. पूरा यूरोप ही ट्रंप-जेलेंस्की की इस तू-तू मैं-मैं में जेलेंस्की के साथ नजर आ रहा है. इसे उन्होंने लंदन सिक्योरिटी समिट में दोहराया भी है. NATO-रूस के बीच दो-ध्रुवीय नजर आने वाली लड़ाई आज तीन मोर्चे पर नजर आ रही है जिसमें दुश्मन दोस्त दिख रहा है और दोस्त अब सौतेला. सवाल है कि NATO का भविष्य क्या नजर आ रहा है? पहले प्वाइंटर्स में आपको मौजूदा हालात से रूबरू कराते हैं और फिर NATO क्या है, उससे अपने सवालों के जवाब की शुरुआत करेंगे. 

ट्रंप कुर्सी पर आए और पूरा समीकरण बदल गया…

यूक्रेन और रूस के बीच में पिछले 3 सालों से युद्ध जारी है. यूक्रेन अपने से कहीं ताकतवर पड़ोसी के खिलाफ लड़ाई के लिए लगभग पूरी तरह अमेरिका और यूरोपीय देशों पर निर्भर है. लेकिन 'अमेरिका फर्स्ट' के नारे के साथ अमेरिका में राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप ने यह साफ कर दिया कि वो इस युद्ध को किसी कीमत पर खत्म करने जा रहे हैं.

ट्रंप बिना अपने यूरोपीय सहयोगियों या यूक्रेन को साथ लिए सीधे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बातचीत कर रहे हैं. ट्रंप यूक्रेन से कह रहे हैं कि तुम्हारे युद्ध पर $300-$350 बिलियन खर्च किए हैं और यह फिजुलखर्ची है. ट्रंप वसूली की बात कह रहे हैं. ट्रंप पुतिन को नहीं खुद जेलेंस्की को तानाशाह बता रहे हैं, कह रहे हैं कि जेलेंस्की वर्ल्ड वॉर 3 का खतरा मोल ले रहे हैं. 

दो दिन पहले व्हाइट हाउस में ट्रंप और जेलेंस्की के बीच जो कुछ हुआ वैसा पहले वर्ल्ड डिप्लोमेसी में शायद ही कभी हुआ हो. दो सहयोगी देश पूरी दुनिया के सामने बहस कर रहे थे और तमाशा बना रहे थे. जिस मिनरल डील के लिए दोनों नेता एक साथ बैठे थे, उसपर तो कुछ बात ही नहीं हुई.

व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप और वलोडिमिर जेलेंस्की के बीच जमकर बहस हुई

व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप और वलोडिमिर जेलेंस्की के बीच जमकर बहस हुई
Photo Credit: एएफपी

इस तू-तू मैं-मैं के दो दिन बाद ही लंदन में 18 यूरोपीय देश एक-साथ क्राइसिस मीटिंग के लिए बैठे और यूक्रेन की मदद की कसम दोहराई. ब्रिटेन के प्रधान मंत्री कीर स्टार्मर ने कहा कि ब्रिटेन, फ्रांस "और अन्य" देश युद्ध रोकने की योजना बनाएंगे, जिसे वे फिर वाशिंगटन के सामने रखेंगे. स्टार्मर ने कहा कि यूरोप खुद को "इतिहास के एक चौराहे पर खड़ा पा रहा है.
अब आसान भाषा में आपको बताते हैं कि नाटो संगठन क्या है.

क्राइसिस मीटिंग के लिए लंदन में जमा हुए 18 देश

क्राइसिस मीटिंग के लिए लंदन में जमा हुए 18 देश
Photo Credit: एएफपी

नाटो संगठन क्या है?

NATO यानी उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (North Atlantic Treaty Organisation). असल में दूसरे विश्व युद्ध के समाप्त होने के तुरंत बाद 30-देशों ने रक्षात्मक सैन्य गठबंधन बनाया और उसे नाटो नाम दिया. पश्चिमी यूरोपीय देशों ने उस समय के सोवियत रूस का मुकाबला करने के लिए अमेरिका और कनाडा से हाथ मिलाकर इस संगठन को बनाया.
 इसका मुख्यालय यानी हेडक्वार्टर बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में है. लेकिन इसपर अमेरिका समेत परमाणु हथियार रखने वाले अन्य पश्चिमी देशों (फ्रांस और यूके) का प्रभुत्व है.

लेकिन दूसरी तरफ रूस, और खासकर वहां के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन नाटो को किसी रक्षात्मक गठबंधन के रूप में नहीं देखते हैं. वह इसे रूस की सुरक्षा के लिए खतरा मानते हैं. जब 1991 में सोवियत यूनियन (पहले के रूस) का विघटन हुआ तो नाटो का रूस के पड़ोस में तेजी से विस्तार हुआ. वहां बने देश इसके मेंबर बन गए और इसे रूस ने हमेशा शक की निगाह से देखा. यूक्रेन भी नाटो का मेंबर बनना चाहता है और रूस को यह किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं है.

आप सवाल कर सकते हैं कि आखिर ये देश नाटो का मेंबर क्यों बनना चाहते हैं. इसका जवाब नाटो के "आर्टिकल 5" में छिपा है. इसके अनुसार नाटो के किसी एक मेंबर देश पर हमला सभी पर हमले के बराबर माना जाता है. अगर यूक्रेन नाटो में शामिल हो जाता है तो उसे परमाणु देशों (अमेरिका,यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस) से सुरक्षा की गारंटी मिलेगी.

नाटो पर डोनाल्ड ट्रंप का स्टैंड क्या है?

लंबे समय से नाटो की धूरी अमेरिका के आसपास घूमती रही है, लेकिन अब नाटो के भविष्य के बारे में खुलेआम सवाल पूछे जा रहे हैं. भले ही ट्रंप प्रशासन ने कहा है कि अमेरिका नाटो से बाहर नहीं निकल रहा है और वह यूरोप के साथ रक्षा साझेदारी के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन उसने चेतावनी दी है कि वह "अब निर्भरता को बढ़ावा देने वाले असंतुलित रिश्ते को बर्दाश्त नहीं करेगा."

ट्रंप जोर दे रहे हैं कि नाटो अलायंस में अधिकतर फंडिंग अमेरिका करता है और वह अब इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे. ट्रंप ने लगातार यूरोपीय सहयोगी देशों से कहा है कि वे ज्यादा फंडिंग दे. अपनी चुनावी रैली में तो ट्रंप ने खुलेआम पुतिन को उन देशों पर हमला करने के लिए प्रोत्साहित किया जो नाटो का बिल पेमेंट करने में विफल रहे.

अब जिस तरह से ट्रंप यूक्रेन के साथ सौतेला व्यवहार कर रहे हैं, यूरोपीय देशों को डर है कि क्या सच में रूस के खतरे के खिलाफ अमेरिका उनकी सैन्य मदद करने आएगा. जो अमेरिका आज तक पुतिन को तानाशाह बोलता आ रहा था, वहां का राष्ट्रपति यूक्रेनी राष्ट्रपति को ही तानाशाह बोलने लगा और पुतिन पर चुप्पी साध ली. यूरोपीय देशों पर असुरक्षा की भावना बहुत हावी है. यूरोपीय देशों के आर्थिक संगठन, यूरोपीय यूनियन पर ट्रंप ने यहां तक कहा है कि यह अमेरिका को बर्बाद (स्क्रू करने के लिए) करने के लिए ही बनाया गया है.

नई सरकार में ट्रंप के सबसे खास बने बिलिनेयर एलन मस्क भी बोल चुके हैं कि अमेरिका को यूनाइटेड नेशंस और नाटो से बाहर आ जाना चाहिए.

अगर अमेरिका ने नाटो छोड़ दिया तो क्या होगा?

जर्मनी के होने वाले चांसलर फ्रेडरिक मर्ज ने यूरोप के साथी नेताओं से "जितनी जल्दी हो सके यूरोप को मजबूत करने" की अपील की है ताकि अमेरिका से आजादी मिल सके. उन्हें "मौजूदा स्वरूप में" नाटो की उपयोगिता पर संदेह है.

अगर नाटो में अमेरिका नहीं होता है तो गठबंधन की सैन्य क्षमताओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा खत्म हो जाएगा. यह सदस्य देशों की सामूहिक रक्षा की मौजूदा स्थिति को कमजोर कर सकती है, खासकर रूस जैसे देशों को रोकने में.

यह बड़ी वजह है यूरोपीय देश (जर्मनी के होने वाले चांसलर की बातों को छोड़कर) आखिरी उम्मीद तक अमेरिका को नाटो में बनाए रखने की कोशिश करेंगे. ट्रंप-जेलेंस्की कलह के दो दिन बाद जब लंदन में क्राइसिस मीटिंग हुई भी तो यही फैसला लिया गया कि रूस-यूक्रेन युद्ध में सीजफायर के लिए योजना बनाई जाएगी और उसे अमेरिका के सामने रखा जाएगा. साफ है कि यूरोपीय देश अभी भी अमेरिका की तरफ 'बिग ब्रदर' वाले नजर से देखते हैं और उसकी मदद चाहते हैं. बस परेशानी यह है कि उन्हें साफ नहीं कि बिग ब्रदर उन्हें अब अपना भाई मानता है या नहीं.

यह भी पढ़ें: अमेरिका से खनिज डील यूक्रेन की ‘मजबूरी', ट्रंप को ना-ना करते जेलेंस्की क्यों मान गए?

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