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This Article is From Mar 20, 2013

अमेरिकी प्रस्ताव में श्रीलंका से विश्वसनीय जांच का आह्वान

वाशिंगटन: संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के सत्र में पेश किए जाने वाले अमेरिका द्वारा तैयार प्रस्ताव के मसौदे में श्रींलका से आह्वान किया गया है कि मानवाधिकार हनन के मामलों में वह स्वतंत्र और विश्वसनीय जांच कराए।

इस प्रस्ताव के मसौदे की एक प्रति भारतीय समाचार एजेंसी पीटीआई के भी पास है। इसमें संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय की रिपोर्ट में की गई अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग को नहीं माना गया है।

श्रीलंका सरकार द्वारा सितंबर 2013 में प्रांतीय परिषद के चुनाव कराने की घोषणा का स्वागत करते हुये मसौदा प्रस्ताव में लंका सरकार से कहा गया है कि वह जनता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करे जिसमें राजनीतिक अधिकारों का हस्तांरण भी शामिल है।

प्रस्ताव के पिछले मसौदे में श्रीलंकाई सरकार द्वारा अधिकारों के हस्तांरण संबंधी प्रतिबद्धता को पूरा करने में असफल रहने पर चिंता जताई गई थी।

इस नए मसौदे में श्रीलंकाई सरकार द्वारा आधारभूत संरचनाओं के पुनर्निर्माण, खनन रोकने और विस्थापितों के पुनर्वास की दिशा में की गई प्रगति की सराहना की गई है।

साथ ही न्याय, सामंजस्य और रोजगार की वापसी के क्षेत्र में रह गए कामों के बारे में जिक्र किया गया है। इसमें स्थानीय लोगों की भागीदारी पर भी जोर दिया गया है।

इस प्रस्ताव के नये मसौदे में श्रीलंका को मानवाधिकार उच्चायुक्त द्वारा की गई सिफारिशों को लागू करने के लिए प्रोत्साहित किया गया :कहा नहीं गया :है। साथ ही सरकार का आह्वान किया गया है कि वह अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों के उल्लंघन के संबंध में स्वतंत्र और विश्वसनीय जांच करे।

मसौदा में उससे लेसन्स लर्न्ट एंड रिकंसिलियेशन कमिशन की रिपोर्ट में की गई सिफारिशों को भी लागू करने के लिए कहा गया है। इसमें श्रीलंका से अपील की गई है कि वह श्रीलंकाई लोगों को न्याय, समानता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए जरूरी कार्रवाई करे।

पिछले मसौदे में जहां श्रीलंका की सरकार को एक तरह से निर्देश दिए गए थे वहीं मौजूदा मसौदे में उसकी जगह श्रीलंका को सहयोग करने और जनता की मांगों पर कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। इसमें न्यायेतर हत्याओं के आरोपों की जांच कराने, उत्तरी श्रीलंका से सेना हटाने, भूमि विवाद निपटारे के निष्पक्ष प्रावधान लागू करने, हिरासत में लेने की नीतियों पर पुनर्विचार करने, स्वतंत्र नागरिक संस्थानों को सशक्त करने, प्रांतों को सत्ता सौंपने के संबंध में राजनीतिक समाधान पर पहुंचना और अभिव्यक्ति की आजादी सुनिश्चित करने का आह्वान किया गया है।

प्रस्ताव के मसौदे में कहा गया है कि नेशनल प्लान ऑफ एक्शन और आयोग की रिपोर्ट में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून और मानवतावादी नियमों के उल्लंघन के गंभीर आरोपों का जिक्र नहीं है। इसमें श्रीलंका में मानवाधिकार उल्लंघन की खबरों पर चिंता जताई गई है जिसमें न्यायेतर हत्याएं, उत्पीड़न, अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन, शांतिपूर्ण सभा करने की मनाही, मानवाधिकारों का बचाव करने वालों, समाज, पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई, न्यायिक स्वतंत्रता को खतरा और धर्म और पंथ के आधार पर होने वाले भेदभाव शामिल हैं।

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