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नए मोड़ पर गाजा: ट्रंप की शांति पहल और भारत की भूमिका

डॉ. मनीष दाभाडे
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 03, 2025 16:48 pm IST
    • Published On अक्टूबर 03, 2025 16:46 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 03, 2025 16:48 pm IST
नए मोड़ पर गाजा: ट्रंप की शांति पहल और भारत की भूमिका

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से 29 सितंबर 2025 को पेश 20 सूत्रीय गाजा शांति-योजना मध्य-पूर्व की राजनीति में एक नया और अप्रत्याशित मोड़ लेकर आई है. इस योजना को तत्काल युद्धविराम, बंधकों की अदला-बदली, गाजा के पुनर्निर्माण और दीर्घकालीन रूप से फिलस्तीनी राज्य की संभावना से जोड़ा गया है. इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे इजराइल ने सिद्धांत के तौर पर स्वीकार कर लिया, अरब देशों ने स्वागत किया और दुनिया के कई प्रभावशाली नेताओं ने समर्थन दिया. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट कर इसे 'इजराइली और फिलिस्तीनी जनता के लिए शांति, सुरक्षा और विकास का व्यावहारिक मार्ग' कहा है. इतने विविध पक्षों का एक साथ खड़ा होना अपने आप में इस जटिल संघर्ष में असामान्य और आशाजनक है.

ट्रंप की योजना कितनी महत्वपूर्ण है

इस योजना का महत्व केवल इसके बिंदुओं में नहीं बल्कि इसके निहितार्थों में है. दशकों से गाजा हिंसा, अविश्वास और असमान शक्ति समीकरण का प्रतीक रहा है. पहले की अमेरिकी पहलों में अक्सर या तो सुरक्षा पर जोर रहा या मानवीय मदद की बातें की गईं, लेकिन दोनों को जोड़ने का प्रयास नहीं हुआ. ट्रंप की इस रूपरेखा में राहत, पुनर्निर्माण और सुरक्षा को एक साथ रखा गया है. इजराइल के लिए यह एक ऐसा मार्ग प्रस्तुत करता है जिसमें उसे युद्ध को रोकने का अवसर मिलता है, परंतु सुरक्षा की गारंटी भी मिलती है. फिलस्तीनियों के लिए यह योजना गाजा को फिर से खड़ा करने, अंतरराष्ट्रीय सहयोग से सहायता प्राप्त करने और भविष्य में राज्य बनने की दिशा में कदम उठाने का वादा करती है.

गाजा पर इजराइली हमले के बाद वहां से उठता धुंआ.

गाजा पर इजराइली हमले के बाद वहां से उठता धुंआ.

ट्रंप ने इसे 'बेहद न्यायपूर्ण प्रस्ताव' बताते हुए कहा कि यह सभ्यता के लिए 'महान दिन' सिद्ध हो सकता है. नेतन्याहू ने इसे गाजा युद्ध को समाप्त करने और शांति को आगे बढ़ाने का निर्णायक कदम बताया. मोदी ने इस प्रस्ताव दोनों पक्षों के लिए लाभकारी बताया. यह समवेत स्वर संकेत करता है कि वॉशिंगटन, नई दिल्ली, रियाद, काहिरा और ब्रुसेल्स जैसे विविध शक्ति-केंद्र एक ही कूटनीतिक भाषा बोल रहे हैं. यह स्वयं में दुर्लभ है.

इस योजना की संभावनाएं भी उल्लेखनीय हैं. सबसे पहले, यह युद्ध की भयावहता को रोक सकती है. यदि लागू होती है तो इजराइली हवाई हमले और जमीनी कार्रवाइयां रुकेंगी और गाजावासियों को राहत मिलेगी. मानवीय दृष्टि से यह कदम जीवनरक्षक सिद्ध होगा. दूसरी बात, यह गाजा को स्थायी युद्धक्षेत्र बनने से रोककर एक राजनीतिक प्रक्रिया में फिर से जोड़ता है. अंतरराष्ट्रीय संरक्षण और तकनीकी प्रशासन की व्यवस्था तब तक की जाएगी जब तक कि सक्षम फिलस्तीनी संस्थाएं खड़ी न हो जाएं. तीसरी संभावना क्षेत्रीय सहयोग की है. मिस्र, जॉर्डन, सऊदी अरब और कतर जैसे देश इस पहल के पक्षधर हैं. उनका समर्थन वित्तीय मदद, पुनर्निर्माण और सुरक्षा बलों के प्रशिक्षण में निर्णायक भूमिका निभाएगा. चौथी बात, इस योजना में स्पष्ट रूप से फिलस्तीनी आकांक्षाओं का उल्लेख है. यह कहता है कि राज्य की दिशा में बढ़ना दूर का लक्ष्य नहीं, बल्कि स्थिरता के बाद संभव कदम है. यह पहल भारत, यूरोपीय संघ और व्यापक अंतरराष्ट्रीय समुदाय की अपेक्षाओं से मेल खाती है.

ट्रंप की योजना की चुनौतियां कितनी हैं

फिर भी चुनौतियां गंभीर हैं. सबसे बड़ी चुनौती हमास की सहमति है. यदि वह इस योजना को मानता है तो उसे हथियार छोड़ने और सत्ता से पीछे हटने जैसे मूलभूत कदम उठाने होंगे. यह उसके अस्तित्व की बुनियाद को ही हिला देगा. भले ही कतर और मिस्र के दबाव में कुछ संशोधन हों, असल समस्या यही है कि हमास अपने अस्त्र-शस्त्र और वैधता दोनों को खोने से डरता है. यदि वह ना मानें तो पूरी योजना धराशायी हो जाएगी.

दूसरी चुनौती विश्वास का अभाव है. इजराइल चाहता है कि गाजा का पूर्ण निरस्त्रीकरण सख्त निगरानी में हो. हमास को भय है कि निहत्था होने पर वह असुरक्षित रह जाएगा. अंतरराष्ट्रीय पुलिस बल की बात तो है, लेकिन कौन से देश अपने सैनिक गाजा भेजेंगे और किन नियमों के तहत, यह स्पष्ट नहीं. इजराइल के भीतर भी राजनीति जटिल है. नेतन्याहू ने हालांकि योजना को समर्थन दिया है, लेकिन उनकी गठबंधन सरकार के अति-राष्ट्रवादी सहयोगी इसे अस्वीकार्य मानते हैं. उनके लिए यह युद्ध विराम हमास को जीवनदान देना है और राज्य की परिकल्पना उनकी वैचारिक सीमाओं से बाहर है.

डोनाल्ड ट्रंप के प्रस्ताव को इजराइल ने सैद्धांतिक तौर पर स्वीकार कर लिया है.

डोनाल्ड ट्रंप के प्रस्ताव को इजराइल ने सैद्धांतिक तौर पर स्वीकार कर लिया है.

तीसरी कठिनाई क्रियान्वयन की है. गाजा का पुनर्निर्माण अरबों डॉलर की मांग करता है और अंतरराष्ट्रीय दानदाता अक्सर वादे पूरे नहीं करते. यदि गाजा की जनता को केवल आश्वासन और खंडहर ही मिले तो निराशा और असंतोष फिर बढ़ेगा. चौथी चुनौती समय की है. ट्रंप ने अल्पावधि में युद्धविराम और बंधकों की अदला-बदली जैसी शर्तें रखी हैं, लेकिन ऐसी जटिल वार्ताएं कृत्रिम समय सीमा में मुश्किल से फिट हो पाती हैं. समय सीमा टूटने पर अविश्वास और आरोप-प्रत्यारोप से पूरी प्रक्रिया ढह सकती है.

भारत के लिए क्या हैं मायने

भारत का समर्थन इस संदर्भ में विशेष महत्व रखता है. मोदी का वक्तव्य संतुलित था- उन्होंने कहा कि यह योजना दोनों पक्षों के लिए लाभकारी है. यह भारत की दोहरी नीति को दर्शाता है: एक ओर इजराइल के साथ सुरक्षा और प्रौद्योगिकी सहयोग, दूसरी ओर फिलस्तीन के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन. भारत के लिए इसके निहितार्थ तीन स्तरों पर हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, यह भारत की जिम्मेदार शक्ति की छवि को मजबूत करता है, जो पश्चिम और इस्लामी दुनिया दोनों के साथ चल सकती है. क्षेत्रीय स्तर पर, यह खाड़ी देशों को आश्वस्त करता है कि भारत फिलिस्तीनियों की गरिमा के लिए संवेदनशील है. घरेलू स्तर पर, यह संदेश संतुलन का है, एक ओर गाजा के कष्टों के प्रति सहानुभूति और दूसरी ओर आतंकवाद के खिलाफ सख्ती यदि यह योजना सफल होती है तो भारत गाजा के पुनर्निर्माण में तकनीकी सहायता और विकास सहयोग की भूमिका निभा सकता है. यदि विफल होती है तो भी भारत ने एक ईमानदार शांति प्रयास का समर्थन कर अपनी स्थिति मजबूत की होगी.

यह सत्य है कि गाजा संघर्ष शांति योजनाओं का कब्रिस्तान रहा है. हर नई पहल आशा जगाती है और फिर अविश्वास और राजनीति में बिखर जाती है. ट्रंप की योजना भी इसी खतरे से घिरी है. लेकिन इसे सिरे से खारिज करना भूल होगी. अंतरराष्ट्रीय समर्थन की चौड़ाई, गाजा में मानवीय संकट की गहराई और इजराइली-फिलस्तीनी थकान की तीव्रता, सभी मिलकर इस बार कुछ अलग हालात पैदा कर रहे हैं.

हमास-इजरायल युद्ध के लंबा खिंच जाने और नाकेबंदी की वजह से गाजा में मानवीय संकट रोज-ब-रोज गहराता जा रहा है.

हमास-इजरायल युद्ध के लंबा खिंच जाने और नाकेबंदी की वजह से गाजा में मानवीय संकट रोज-ब-रोज गहराता जा रहा है.

मोदी का समर्थन इसी 'सावधानीपूर्ण आशावाद' को व्यक्त करता है. यह योजना हर समस्या का हल नहीं करेगी, पर यह हिंसा रोक सकती है, पुनर्निर्माण शुरू कर सकती है और दो-राष्ट्र समाधान के दरवाजे फिर खोल सकती है. यही इसे सार्थक बनाता है. यदि इजराइल और हमास जोखिम उठाकर इसे अपनाते हैं और यदि दुनिया अपनी प्रतिबद्धता बनाए रखती है, तो यह योजना मध्य-पूर्व के इतिहास में एक दुर्लभ मोड़ बन सकती है. यदि नहीं, तो यह भी अन्य विफल प्रयासों की तरह एक और खोया हुआ अवसर बनकर रह जाएगी.

डिस्क्लेमर: लेखक द इंडियन फ्यूचर्स थिंक टैंक के संस्थापक और दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.

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