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This Article is From Nov 07, 2014

खुफिया जांच के दायरे में आई पाकिस्तान समर्थक पूर्व अमेरिकी राजनयिक

खुफिया जांच के दायरे में आई पाकिस्तान समर्थक पूर्व अमेरिकी राजनयिक
अमेरिकी राजनयिक रॉबिन राफेल (दायें) की फाइल फोटो
वाशिंगटन:

पाकिस्तान की ओर झुकाव के लिए पहचानी जाने वाली वरिष्ठ अमेरिकी राजनयिक रॉबिन राफेल को संघीय खुफिया जांच के दायरे में लाया गया है।

मीडिया में आई खबरों के अनुसार, फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (एफबीआई) ने राफेल के आवास और विदेश मंत्रालय में उनके ऑफिस की तलाशी ली और उन्हें सील कर दिया।

छापेमारी के दौरान वह विदेश मंत्रालय में अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान के लिए विशेष प्रतिनिधि कार्यालय में पाकिस्तान से जुड़े मामलों की सलाहाकार के पद पर थीं। पिछले सप्ताह विदेश मंत्रालय के साथ उनका अनुबंध खत्म हो गया।

यह स्पष्ट नहीं है कि क्या जांच के निशाने पर वे खुद हैं। यह भी जानकारी नहीं है कि एजेंट ढूंढ़ क्या रहे हैं? विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता जेन साकी ने कहा, 'हम कानून प्रवर्तन से जुड़े इस मामले से वाकिफ हैं। विदेश मंत्रालय हमारे कानून प्रवर्तन के सहकर्मियों को सहयोग कर रहा है।' उन्होंने कहा, 'राफेल अब मंत्रालय की सदस्य नहीं हैं।'

वर्ष 1993 में, उन्हें दक्षिण एवं मध्य एशियाई मामलों के लिए विदेश मंत्रालय में अमेरिका की पहली सहायक मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था। बाद में वे ट्यूनीशिया में अमेरिका की राजदूत भी बनीं। 2000 के दशक में उन्होंने दक्षिणी एशिया पर अपनी विशेषज्ञता से जुड़े कई आधिकारिक पद संभाले।

राफेल की नियुक्ति ब्रिटेन और भारत में भी की गई थी। इस संदर्भ में सबसे पहले खबर देने वाले द वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार, अमेरिका के अधिकारियों ने यह बात स्वीकार की है कि एफबीआई ने 21 अक्तूबर को राफेल के घर पर तलाशी ली लेकिन वे इस तलाशी के बारे में जानकारी नहीं देंगे।

एजेंटों ने उनके घर से बैग और बक्से हटाए लेकिन यह साफ नहीं है कि वहां से या उनके कार्यालय से किस चीज की जब्ती की गई। अखबार ने कहा कि विदेश मंत्रालय में राफेल के ऑफिस में अंधेरा छाया रहा और वहां ताला लगा रहा।

अपनी सेवानिवृत्ति के बाद और विदेश मंत्रालय में लौटने से पहले राफेल ने वाशिंगटन की सरकार से संबंध विकसित करने के लिए काम करने वाली कंपनी कैसिडी एंड असोसिएट्स में एक लॉबिस्ट के तौर पर काम किया था।

संघीय प्रकाशन प्रपत्रों के अनुसार, उन्होंने पाकिस्तान, एक्वेटोरियल गिनी और इराक के कुर्दिस्तान क्षेत्र की सरकारों का प्रतिनिधित्व किया था।

अखबार ने कहा, 'विदेश मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों की संलिप्तता वाले जासूसी के मामले तुलनात्मक रूप से दुर्लभ होते हैं।' कश्मीर पर अपने रूख और पाकिस्तान की ओर झुकाव के कारण राफेल भारत में बेहद अलोकप्रिय थीं।

भारत के पूर्व विदेश सचिव के. श्रीनिवासन ने अपनी किताब 'डिप्लोमेटिक चैनल्स' में लिखा था कि रॉ ने राफेल की एक टेलीफोन बातचीत की जासूसी की थी, जिसमें इस बात की पुष्टि हुई कि अमेरिका संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान द्वारा कश्मीर पर भारत के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव का समर्थन नहीं करेगा और इसलिए वह इसे आगे ले जाने में असफल रहेगा।

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