यूक्रेन (Ukraine) के खारकीव (Kharkiv) में रूस की भारी बमबारी (Russian Bombing) जारी है. खारकीव नेशनल मेडिकल यूनीवर्सिटी (Kharkiv National Medical Univercity) के हॉस्टलों के बंकर (Bunker) करीब 1250 भारतीय स्टूडेंट फंसे हुए हैं. एक हॉस्टल के बंकर में NDTV ने बात की डॉ करण पाल सिंह संधू से और उन्होंने हमारी इस हॉस्टल के मौजूद कई भारतीय स्टूडेंट्स (Indian Students) से बात करवाई. डॉ करण पाल ने बताया, "इस हॉस्टल में करीब 550 स्टूडेंट्स हमारे सामने एक हॉस्टल है जहां 300 हैं और एक और है वहां 400 हैं. आज खारकीव से 3 ट्रेन निकली हैं. आज 5 दिन बाद हमारे भी 30-40 स्टूडेंट हॉस्टल से निकले. हम आज और स्टूडेंट निकालने वाले थे लेकिन फिर बाहर बहुत ज्यादा बमबारी होने लगी. हमारे कुछ स्टूडेंट जो स्टेशन पर हैं. हमने उनसे कहा था कहा था कि ट्रेन पकड़ने की कोशिश करें लेकिन वहां से बाहर ना निकलें."
डॉ करण इस हॉस्टल में और बाहर मौजूद भारतीय स्टूडेंट्स के खाने-पीने का इंतज़ाम कर रहे हैं. उन्होंने भारतीय स्टूडेंट्स के लिए खारकीव से अतिरिक्त बॉगियों की मांग की. उन्होंने कहा, "हमने पहले भारत सरकार से कहा था कि हमें रूस के बॉर्डर के ज़रिए निकाला जाए. लेकिन अगर वो नहीं हो पा रहा है तो हमें सरकार ट्रेन में कुछ एक्स्ट्रा बॉगी दिलवा दे तो हमारे लिए सही रहेगा. अब इतनी बमबारी है कि धीरे-धीरे खाने पीने की दिक्कत भी होने वाली है. कल तक हम खाने का इंतज़ाम कर रहे थे लेकिन अब मुश्किल होगा."
डॉ करण पाल सिंह ने अपना फोन बंकर में मौजूद पंजाब (Punjab) के गुरुदासपुर के छात्र वसुदेव शर्मा को दिया, जिन्होंने हमें बंकर में नीचे ले जाकर दिखाया कि भारतीय स्टूडेंट्स बंकर में किन हालात में रह रहे है.
खारकीव में आज दिन में पारा करीब 2 डिग्री था जो रात को -6 से -7 तक पहुंच जाता है. गुरुदासपुर के छात्र वसुदेव शर्मा ने ज़मीन से कई फुट नीचे बने बंकर में ठंडी ज़मीन पर मुश्किल हालात में बैठे करीब 550 छात्रों की हालत दिखाई. उन्होंने बताया, "पांच दिन से सारे स्टूडेंट ऐसे ही रह रहे हैं. यहां सात कमरे हैं. जहां अलग -अलग कमरे में स्टूडेंट्स रह रहे हैं. कहीं इंटरनेट कनेक्टिविटी है, कहीं नहीं है."
बंकर में भारतीय स्टूडेंट्स के लिए खाने में उपमा बना था. जो कुछ बाल्टियों में रखा गया था. हमने पूछा तो वसुदेव ने बताया कि आज हमने कोशिश की है कि खाने का इंतजाम हो पाए. वसुदेव ने खाने की बाल्टियां खोल कर दिखाईं. उन्होंने बताया कि बैकअप के लिए ब्रैड्स हैं. कल बिरयानी थी और कभी चपाती बनी थी."
"भारी टेंशन और जान का नुकसान"
वसुदेव ने यूक्रेन में गुजारा अपना अच्छा समय याद करते हुए कहा, "यह बहुत प्यारा देश है. मैंने कभी सोचा नहीं था कि यहां ऐसा हो सकता है. मुझे पिछले 5 साल में कोई दिक्कत नहीं हुई. हमारी एजेंसी अभी भी हैल्प कर रही है. लेकिन दिमाग में बहुत टेंशन है. पता नहीं कब बम गिर जाए. इवैकुएशन का कुछ समझ नहीं आ रहा."
वसुदेव ने बताया, "एंबेसी कह रही है कि हम यूक्रेन पार करके दूसरी तरफ आ जाएं. यहां पर यूक्रेन से रूस का बॉर्डर करीब 50-60 किलोमीटर दूर होगा. रूस का जो एयरपोर्ट बेलगोरेद है वो यहां से करीब 130 किमी है.यूक्रेन से निकलने के लिए वो हमारे लिए ज़्यादा ठीक रहेगा. आज भी आपने देखा होगा कि बॉम्बिंग में एक स्टूडेंट की मौत हो गई. वो पढ़ने में बहुत आगे था. उसका नुकसान ये लोग कभी पूरा नहीं कर सकते. ऐसे नुकसान और ना हों इसलिए इवैकुएशन जल्दी से जल्दी करवाया जाए प्लीज़, यही मेरी अपील है."
बंकर में सुरक्षा कारणों से लाइट अधिकतर ऑफ ही रहती है. वसुदेव ने बताया क बातचीत से पहले थोड़ी देर के लिए ही लाइट ऑन की गई है.
"बढ़ रहे अटैक, लेकिन हमारी मदद किसी ने नहीं की"
बंकर में जलंधर पंजाब के अनिकेत शर्मा से बात हुई. यहां हम 24 फरवरी को आ गए थे. तभी से हमारी कन्सल्टेंसी हमारी मदद कर रही है लेकिन हमारी एम्बेसी हमारे लिए कुछ भी नहीं कर रही. यहां 500 से ज़्यादा स्टूडेंट्स हैं. हमने बहुत अर्जियां डाली थीं. लेकिन हमारी किसी ने मदद नहीं की. सोशल मीडिया का प्रयोग किया. हमारे पेरेंट्स ने भी कोशिश की. लेकिन अभी तक सरकार ने हमारे लिए कुछ नहीं किया.
आज हमारे साथ का एक स्टूडेंट भी मारा गया. इतनी बमबारी में बच्चों को खुद जाना पड़ रहा है. वो सही नहीं है. अगर किसी को कुछ हो गया तो कौन ज़िम्मेदार होगा? जब तक हमें सपोर्ट नहीं मिलेगी तो क्या करेंगे? धीरे-धीरे हमारा खाना भी खत्म हो रहा है. अटैक हर दिन बढ़ रहे हैं.
"इवैकुएशन नहीं केवल ट्रांसफर"
बंकर में पंजाब के पठानकोट से यूक्रेन की खारकीव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में 4thईयर की स्टूडेंट रूही पंडित से भी बात हुई.
उन्होंने कहा, " यहां पर पर्सनल हाईजीन की दिक्कत है लेकिन अभी तक खाना-पानी का इंतजाम किया जा रहा है. जहां तक हमारी सुरक्षा की बात है, वो एंबेसी की जिम्मेदारी है. जहां तक बात है उनकी एडवायज़री की वो कह रहे हैं कि वो इवैकुएशन कर रहे है, लेकिन वो इवैकुएशन नहीं है वो केवल ट्रांसफर है जो वो स्टूडेंट्स को कह रहे हैं कि आप यहां बॉर्डर पर आ जाइए हम आपको इंडिया ट्रांसफर कर देंगे. उसमें स्टूडेंट्स की सेफ्टी की कोई जिम्मेदारी नहीं है. ना ही ये इंश्योर किया जा रहा है कि स्टूडेंट्स वहां सुरक्षा से पहुंचें या उन्हें कोई गाड़ियां मिलें."
चीन अपने स्टूडेंट्स को कैसे निकाल रहा?
रूसी ने बताया कि चीन ने अपने 6000 स्टूडेंट्स को बोला है कि हम आपको इवैकुएट करेंगे. हम आपको गाड़ियां देंगे. एक दूतावास का आदमी आपके साथ रहेगा और एक पुलिसकर्मचारी आपके साथ होगा जो आपकी सुरक्षा सुनिश्चित करेगा. उनको छोटे-छोटे ग्रुप्स में बांटा गया है. हमारी एंबेसी क्या कर रही है? उच्च अधिकारियों से ये मेरा सवाल है कि यहां आज एक मौत हुई है, उसके बाद भी दूतावास को एक फैसला लेने में इतना समय लग रहा है?"
आज खारकीव में रूसी बमबारी में मारे गए स्टूडेंट नवीन के बारे में बताते हुए रूही का गला रुंध गया. उन्होंने कहा, "वो काफी बहुत अच्छे स्टूडेंट थे. अभी पिछले साल ही उन्होंने यहां का एक लाइसेंस एक्ज़ाम बहुत अच्छे नंबरों से पास किया था. वो बहुत अच्चे डॉक्टर बनने वाले थे लेकिन उन्हें केवल इसलिए अपनी जान गंवानी पड़ी क्योंकि हमारा दूतावास सही समय पर कदम नहीं उठा पाई. "
रूही ने दूतावास पर नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा, "जब हम बंकर से बाहर जाएंगे तो हमारी ज़िम्मेदारी किसकी है हमें नहीं पता. हमें दूतावास ने पूरी तरह से अपने हाल पर छोड़ दिया है.
"सरकार और दूतावास की कुछ लापरवाहियां..."
जतिन सेहगल, जो खारकीव मेडिकल यूनिवर्सिटी में दूसरे साल के मेडिकल के स्टूडेंट हैं. जतिन पंजाब के जालंधर से खारकीव में मेडिकल की पढ़ाई करने आए थे. वह कहते हैं, "कुछ दूतावास की लापरवाहियों, और कुछ सरकार की लापरवाहियों की वजह से हम यहां पर फंसे हुए हैं. इंडियन एंबेसी जो एडवायज़री जारी कर रही है वो हमारे लिए कागज़ का टुकड़ा है. अगर मैं आपको इंडिया के हिसाब से समझाऊं तो अगर हम श्रीनगर में हैं तो इवैकुएशन कन्याकुमारी में हो रहा है. यह हमारे लिए किसी काम का नहीं है."
जतिन यूक्रेन से भारतीय स्टूडेंट्स को निकालने के तरीके कुछ नाराज़ दिखे. उन्होंने कहा "जहां कुछ हो नहीं रहा वहां से आप बच्चों को निकाल कर मीडिया में वाह-वाही बटोर रहे हो. यूक्रेन में अधिकतर भारतीय खारकीव में हैं. हमने अथॉरिटीज़ को मैसेज किया, लैटर लिखा, हमारे पेरेंट्स ने रूसी एंबेसी के बाहर विदेश मंत्रालय के बाहर प्रोटेस्ट भी किया लेकिन मेरे पेरेंट्स को वहां से धक्के मार कर निकाल दिया गया कि आप यहां पर कुछ नहीं कर सकते. "
जतिन सवाल पूछते हैं, "यहां सुरक्षित तो हैं, लेकिन कब तक? यहां इतनी बमबारी हो रही है कि एक मिसाइल गिरेगी और सब ख़त्म हो जाएगा. यहां नागरिकों को भी टार्गेट किया जा रहा है. आज सुबह हमारे एक साथी पर भी यहां बमबारी हुई. यहां इतने सारे बच्चे हैं. हमारे सर दूसरे बंकर में बच्चों की भी मदद कर रहे हैं, लेकिन वो भी इंसान हैं, उनके हाथ भी खड़े होंगे."
"युद्ध के केंद्र खारकीव में भारतीयों की मुश्किलें"
मुंबई से नितीश मिश्रा भी खारकीव के बंकर में फंसे हुए हैं. वह मेडिकल के दूसरे ईयर के स्टूडेंट हैं. उन्होंने बताया, यहां करीब 3 हॉस्टल हैं, तीनों हॉस्टल के बच्चों को मिला कर करीब 1300 -1400 स्टूडेंट्स हैं. काफी स्टूडेंट्स ने मैट्रो में शरण ली हुई है और कुछ अपार्टमेंट के बेसमेंट में हैं. कुल मिला कर खारकीव में 3000-4000 भारतीय स्टूडेंट्स हैं.
यहां इवैकुएशन चार देशों के बॉर्डर पर चल रही है. रोमानिया, हंगरी, स्लोवाकिया और पोलैंड. लेकिन ये सारी जगह पश्चिमी सीमा पर हैं. ये उनके लिए ज़्यादा आसान है जो लवीव और पश्चिमी सीमा के पास रह रहे थे. हम पूर्वी यूक्रेन में है. खारकीव में. ये युद्ध का केंद्र बन चुका है. यहां कल रात ही हॉस्टल के पीछे 200 मीटर दूर मिसाइल अटैक हुआ. यहां मार्शल लॉ है. कर्फ्यू लगा हुआ है. यहां से स्थानीय लोग भी भाग रहे हैं. स्टेशन पर एक अलग सी भीड़ है जो भारतीयों को आसानी से भीतर नहीं जाने दे रही है. उनके लिए पहले यूक्रेनी महिलाओं और अपने नागरिकों को बाहर निकालना प्राथमिकता है.
यहां अभी 2 डिग्री तापमान है लेकिन रात में पारा माइनस 5-7 के आस-पास पहुंच जाता है. सोने में दिक्कत होती है. दो-तीन बच्चे साथ में मिलकर एक कंबल का प्रयोग कर रहे हैं.
हम आपके ज़रिए सरकार से ये अपील कर सकें कि हम पश्चिमी सीमा पर नहीं जा सकते, हमारे लिए दिक्कत है. हमारे लिए सबसे सुरक्षित है रूसी बॉर्डर से निकलना तो क्यों ना हमें रूसी बॉर्डर से निकाला जाए, ये हमारे लिए ठीक रहेगा.
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