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This Article is From Feb 01, 2021

म्‍यांमार की 'आयरन लेडी' सू की: पिता की कर दी गई थी हत्‍या, जेल में गुजार चुकी हैं कई साल..

भारत से सू की का गहरा नाता है, लोकतांत्रिक मूल्‍यों के प्रति गहरी आस्‍था रखने वाली सू की को नोबल शांति पुरस्‍कार और प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू पुरस्‍कार हासिल हो चुका है.

म्‍यांमार की 'आयरन लेडी' सू की: पिता की कर दी गई थी हत्‍या, जेल में गुजार चुकी हैं कई साल..
सू की को शांति के लिए प्रतिष्ठित नोबेल प्राइज भी मिल चुका है (फाइल फोटो)

75 साल की आंग सान सू की (Aung San Suu Kyi) को म्‍यांमार (Myanmar) की 'आयरन लेडी' का दर्जा हासिल है. बर्मा यानी म्‍यांमार में लोकतंत्र के लिए उन्‍होंने लंबी लड़ाई लड़ी है और इसके लिए जिंदगी के कई वर्ष उन्‍हें जेल में बिताने पड़े हैं. लंबे संघर्ष के बाद ऐसा लगा था कि सू की अपनी इस जंग में कामयाब हो गई हैं लेकिन सैन्‍य शासन की ओर से की गई उनकी गिरफ्तारी में म्‍यांमार के भविष्‍य को लेकर फिर अनिश्चितता की स्थिति बन गई है.19 जून 1945 को रंगून (यंगून) में पैदा हुईं आंग सान सू की को संघर्ष करने का जज्‍बा विरात में मिला. उनके पिता ने आधुनिक बर्मी सेना की स्‍थापना कि और बर्मा (म्‍यांमार) की स्‍वतंत्रता के लिए बातचीत की लेकिन उनकी हत्‍या कर दी गई. पिता की मौत ने लोकतांत्रिक मूल्‍यों के प्रति सू की के जज्‍बे को और मजबूत किया और इसके लिए उन्‍होंने कई वर्षों की यातना सहीं.

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सू की ने 60 के दशक में भारत के नई दिल्‍ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस की पढ़ाई की है. बाद में उन्‍होंने ऑक्‍सफोर्ड से फिलॉसफी, और इकोनोमिक्‍स की मास्‍टर डिग्री हासिल की. वे संयुक्‍त राष्‍टग में भी काम कर चुकी हैं. सू की ने वर्ष 1972 में डॉ. माइकल ऐरिस के विवाह रचाया. विवाह के भी लोकतंत्र के लिए संघर्ष और आगे के अध्‍ययन का उनका 'संघर्ष' जारी रहा. उन्‍होंने ब्रिटेन से पीएचडी की डिग्री भी हासिल की. वर्ष 1988 में परिस्थितियां कुछ ऐसी बनीं कि उन्‍हें बर्मा वापस लौटना पड़ा, इसके बाद शुरू हुई लोकतंत्र के लिए सैन्‍य शासन के खिलाफ उनकी लंबी लड़ाई. म्‍यांमार के सैन्‍य शासकों ने उन्‍हें डिगाने की पूरी कोशिश की लेकिन सू की अलग ही 'लोहे' की बनी थीं. उन्‍होंने जेल में रहना पसंद किया लेकिन अपने सिद्धांतों के साथ समझौता नहीं किया. 

इस दौरान उन्‍होंने कैंसर के कारण अपने पति माइकल की मौत की निजी क्षति का भी सामना किया. वर्ष 2010 में उनका संघर्ष रंग लाया. आंतरिक और वैश्‍विक दबाव के चलते सैन्‍य शासन ने उन्‍हें जेल से रिहा कर दिया और देश में चुनाव कराने का ऐलान किया. सू की सांसद के तौर पर चुनी गईं उनकी पार्टी को भारी बहुमत से जीत हासिल हुई. भारत से सू की का गहरा नाता है, लोकतांत्रिक मूल्‍यों के प्रति गहरी आस्‍था रखने वाली सू की को नोबल शांति पुरस्‍कार और प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू पुरस्‍कार हासिल हो चुका है.
 

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