- बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बेगम खालिदा जिया का 80 वर्ष की उम्र में निधन
- खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान 17 साल बाद लौटे हैं. बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी में सक्रिय भूमिका निभा रहें
- खालिदा जिया के निधन से तारिक रहमान और BNP को बांग्लादेश की अवाम से सहानुभूति वोट मिल सकता है
बांग्लादेश की पहली महिला प्रधान मंत्री बेगम खालिदा जिया की ढाका के एवरकेयर अस्पताल में लंबी बीमारी से मृत्यु हो गई है. खालिदा 80 वर्ष की थीं. उनकी पार्टी द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की अध्यक्ष ने मंगलवार, 30 दिसंबर की सुबह 6 बजे अंतिम सांस ली. खालिद जिया का गुजरना बांग्लादेश की राजनीति की राजनीति में बड़ा मोड़ लेकर आता है. शेख हसीना के तख्तापलट के बाद फरवरी 2026 में पहली बार आम चुनाव होने जा रहे हैं. कई दशकों में ऐसा पहली बार होगा जब बांग्लादेश के राजनीतिक अखाड़े में दो बेगमों की लड़ाई नहीं होगी. कई लोगों का मानना था कि खालिद जिया अगले साल चुनाव जीतकर एक बार फिर अपने देश का नेतृत्व करेंगी. सवाल है कि चुनाव से ठीक पहले खालिद जिया के जाने से चुनाव परिणाम पर क्या असर पड़ सकता है.
17 साल के वनवास के बाद लौटे बेटे को सहानुभूति वोट
खालिदा जिया के बेटे और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान 17 साल बाद वापस बांग्लादेश आए हैं और आते ही उन्होंने पार्टी में जान फूंक दी है. उनकी यह वापसी न केवल BNP, बल्कि देश की राजनीति के लिए भी अहम मानी जा रही है. खालिदा जिया के निधन के पहले ही तारिक की वापसी को BNP के लिए एक टर्निंग प्वाइंट माना जा रहा था. ऐसे में खालिदा जिया के गुजरने के बाद तारिक और उनके पक्ष में सहानुभूति वोट भी आ सकता है.
खालिदा जिया 36 दिनों से हॉस्पिटल में थी, उनकी तबीयत बहुत खराब थी. इसके बावजूद उन्होंने कल यानी 29 दिसंबरो बोगरा-7 सीट से अपना नामांकन दाखिल किया था. साथ ही तीन उम्मीदवारों को स्टैंडबाय पर रखा गया था. यानी साफ है कि पार्टी को कहीं न कहीं उम्मीद थी कि खालिदा पूरी तरह स्वस्थ्य होकर वापस लौटेंगी और पार्टी ही नहीं देश का भी नेतृत्व करेंगी. अब यह जिम्मेदारी उनके बेट तारिक रहमान पर होगी.
जमात और बेलगाम न हो जाए
शेख हसीना की अवामी लीग इस बार के चुनाव में बैन है और ऐसे में भारत के लिए सबसे अच्छी खबर यही रहेगी कि BNP चुनाव जीत जाए. अगर आप खालिदा जिया के शासनकाल की बात करें, तो उस समय बांग्लादेश और भारत के बीच काफी तनावपूर्ण माहौल था. हालांकि, अब हालात बदल चुके हैं और विश्व पटल पर वैश्विक राजनीति में भारत की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो गई है. तारिक रहमान ने 17 साल बाद अपनी वापसी के साथ ही कहा कि वह एक ऐसा बांग्लादेश बनाना चाहते हैं, जहां मुस्लिम, हिंदू, बौद्ध और ईसाई सब सुरक्षित हों. उन्होंने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील भी की. वहीं दूसरी तरफ जमात हमेशा से ही भारत विरोधी कट्टरपंथी विचारधारा के साथ आगे बढ़ता रहा है. यही कारण है कि यूनुस की अंतरिम सरकार में जमात-ए-इस्लामी से बैन हटा दिया गया, और देश में कट्टरपंथी भावनाओं से प्रेरित हिंसा में काफी तेजी से बढ़ोतरी देखने को मिली है.
तारिक की वापसी से जमात-ए-इस्लामी को एक झटका जरूर लगा है. ऐसे में खालिदा जिया के निधन के बाद अगर बांग्लादेश की अवाम की सहानुभूति तारिक और BNP की ओर जाती है तो जमात काबू में रह सकता है. हालांकि एक सच्चाई यह भी है कि हसीना की सरकार गिराने के बाद बांग्लादेश में युवाओं का झुकाव कट्टरपंथी जमात की तरफ देखने को मिला है. हसीना की सरकार गिराने में छात्र आंदोलन का भी बड़ा योगदान रहा है. देश के आंदोलनकारी युवाओं ने मिलकर नेशनल सिटीजन पार्टी (एनसीपी) बनाई और इस पार्टी ने जमात से हाथ मिला लिया है. इन सबके बीच इकबाल मंच के प्रवक्ता शरीफ उस्मान हादी की हत्या ने कट्टरपंथी विचारधारा को और मजबूती दी है.
अब सबकी नजर 12 फरवरी को होने जा रहे चुनाव और उसके पहले लगभग 40 दिन के वक्त में कैसा चुनावी माहौल बनाया जाता है, इसपर होगी.
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