- खालिदा जिया के निधन और तारिक रहमान की वापसी से BNP को चुनावी बढ़त मिलती दिख रही है.
- BNP-जमात गठबंधन और इस्लामी दलों की मजबूती से सत्ता समीकरण बदल रहे हैं.
- भारत निष्पक्ष, समावेशी चुनाव चाहता है, अल्पसंख्यक हिंसा पर चिंता बनी हुई है.
बांग्लादेश की राजनीति में एक युग का अंत हो गया है. देश की पहली महिला प्रधानमंत्री और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी यानी BNP की मजबूत स्तंभ रहीं बेगम खालिदा जिया का मंगलवार (30.12.2025) को ढाका में निधन हो गया. उनके निधन के साथ ही बांग्लादेश की राजनीति में सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया लगभग पूरी होती दिख रही है. खालिदा जिया का राजनीतिक जीवन केवल सत्ता तक सीमित नहीं रहा. उन्होंने अपने पति और देश के पूर्व राष्ट्रपति जियाउर रहमान की हत्या के बाद BNP को न केवल संभाला, बल्कि उसे और मजबूत किया. उन्हें राष्ट्रपति हुसैन मुहम्मद इरशाद की तानाशाही को शांतिपूर्ण तरीके से खत्म करने और 1991 के चुनावों के माध्यम से बांग्लादेश में लोकतंत्र की वापसी सुनिश्चित करने के लिए शेख हसीना के साथ हाथ मिलाने के लिए याद किया जाएगा. इसके बाद 1991 में हुए चुनावों में जीत हासिल कर बांग्लादेश को दोबारा लोकतंत्र की राह पर लौटाया.
हालांकि BNP के शासनकाल में भारत के साथ रिश्ते कभी सहज नहीं रहे. इसकी मुख्य वजह BNP के पाकिस्तान और जमात-ए-इस्लामी के साथ गहरे और वैचारिक संबंध रहे हैं. यह संबंध केवल रणनीतिक नहीं, बल्कि 1971 के मुक्ति संग्राम से जुड़े मूल विचारों से जुड़े हैं.
देखा जाए तो क्रिसमस के दिन (25.12.2025 को) तारिक रहमान की ढाका वापसी, और अब उनकी मां, बेगम खालिदा जिया के निधन ने BNP को अगले साल फरवरी में होने वाले बांग्लादेश के आगामी आम चुनावों को जीतने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में ला दिया है. हालांकि, इसके लिए प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया आउटलेट्स के बनाए गए मीडिया प्रचार से प्रभावित नहीं होना होगा क्योंकि उनमें से अधिकतर यूनुस शासन से पूरी तरह से नियंत्रित और प्रबंधित हैं.
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BNP और पाकिस्तान- पुराने रिश्ते और नई राजनीति
1972 में अपनाए गए बांग्लादेश के संविधान की चार बुनियादी स्तंभ थे. लोकतंत्र. धर्मनिरपेक्षता. समाजवाद और राष्ट्रवाद. शेख मुजीबुर रहमान ने धर्म आधारित राजनीति पर प्रतिबंध लगाया था और जमात-ए-इस्लामी के प्रमुख गुलाम आजम की नागरिकता भी रद्द कर दी थी. गुलाम आजम पर मुक्ति संग्राम के दौरान अल्पसंख्यकों, महिलाओं और बुद्धिजीवियों के खिलाफ गंभीर अपराधों के आरोप थे.
लेकिन शेख मुजीब की हत्या के बाद सत्ता में आए राष्ट्रपति जियाउर रहमान के दौर में यह सब पलट दिया गया. धर्म आधारित दलों पर लगी रोक हटाई गई. संविधान से धर्मनिरपेक्षता शब्द हटाकर यह जोड़ा गया कि अल्लाह पर पूर्ण आस्था ही राज्य की नीति का आधार होगी. इसी दौर में राजनीतिक इस्लाम को वैधानिक मान्यता मिली.
1978 में गुलाम आजम पाकिस्तानी पासपोर्ट पर ढाका लौटे. बाद में एक विशेष नागरिकता कानून के जरिए 1994 में, जब खालिदा जिया प्रधानमंत्री थीं, उन्हें फिर से बांग्लादेशी नागरिकता मिली.
The BNP Chairperson and former Prime Minister, Begum Khaleda Zia, passed away today at 6:00 a.m., shortly after the Fajr prayer. Inna lillahi wa inna ilayhi raji‘un. We pray for the forgiveness of her soul and request everyone to offer prayers for her departed soul. pic.twitter.com/KY2948UPD5
— Bangladesh Nationalist Party-BNP (@bdbnp78) December 30, 2025
BNP और जमात-ए-इस्लामी- 25 साल पुराना गठबंधन
BNP और जमात-ए-इस्लामी पिछले 25 वर्षों से राजनीतिक सहयोगी रहे हैं. यह गठबंधन 2001 में औपचारिक रूप से सत्ता में आया. आज BNP के भीतर एक उदार धड़ा भी मौजूद है. यह धड़ा समय पर चुनाव, अवामी लीग पर प्रतिबंध का विरोध और सभी दलों की भागीदारी का समर्थन करता है. इसी दबाव के चलते यूनुस शासन को फरवरी 2026 में चुनाव की तारीख घोषित करनी पड़ी.
लेकिन यह उदार धड़ा कमजोर है. BNP का असली नियंत्रण जमात समर्थक गुट के हाथ में है. अनुमान है कि पार्टी के आधे से अधिक सदस्य जमात के करीब हैं.
तारिक रहमान की राजनीति भी इसी जमात समर्थक धड़े से जुड़ी रही है. वे 1980 के दशक से सक्रिय रहे, लेकिन 2001 से 2006 के बीच अपनी मां के शासनकाल में उनका प्रभाव सबसे अधिक रहा. इस दौरान हावा भवन सत्ता का वास्तविक केंद्र माना जाता था, जिसे अनौपचारिक प्रधानमंत्री कार्यालय कहा जाता था.
1971 के बाद बदला संविधान और राजनीतिक इस्लाम की वापसी
चटगांव हथियार कांड और शेख हसीना की रैली पर हुए ग्रेनेड हमले में तारिक रहमान की भूमिका पर अदालतों में विस्तार से सुनवाई हो चुकी है. इन मामलों में पाकिस्तान की भूमिका और ISI से जुड़े संपर्कों का भी जिक्र हुआ है.
2001 से 2006 के बीच बांग्लादेश में पाकिस्तान की गतिविधियां 1971 के बाद सबसे अधिक मानी जाती हैं.
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तारिक रहमान- लंदन निर्वासन और 2024 का सत्ता परिवर्तन अभियान
2008 से 2025 तक लंदन में निर्वासन के दौरान भी तारिक रहमान का जमात और पाकिस्तान से संपर्क बना रहा. जुलाई और अगस्त 2024 में हुए सत्ता परिवर्तन अभियान में उनकी भूमिका को लेकर भी सवाल उठे. यही वजह है कि अगर फरवरी 2026 के चुनाव अवामी लीग की भागीदारी के बिना हुए, तो BNP और जमात के बीच मुकाबला केवल औपचारिक रह जाएगा.
जमात का 10 दलों का इस्लामी गठबंधन
इस बीच जमात-ए-इस्लामी ने सभी इस्लामी दलों को मिलाकर 10 दलों का गठबंधन बना लिया है. इसमें हाल ही में नेशनल सिटिजन्स पार्टी यानी NCP भी शामिल हुई है, जिसे छात्र आंदोलन से जुड़े नेताओं ने बनाया था. यह इस्लामी झुकाव की खुली स्वीकारोक्ति मानी जा रही है.
सर्वे में इस्लामी खेमे को बढ़त के संकेत
अमेरिकी संस्था इंटरनेशनल रिपब्लिकन इंस्टीट्यूट के सर्वे के अनुसार BNP को 33 प्रतिशत और जमात को 29 प्रतिशत समर्थन मिल सकता है. अगर इस्लामी आंदोलन बांग्लादेश और NCP के वोट जोड़ दिए जाएं, तो इस्लामी खेमे को स्पष्ट बढ़त मिलती है.
सर्वे यह भी संकेत देता है कि चुनाव के बाद जमात के नेतृत्व वाली सरकार बन सकती है. ऐसे में BNP के जमात समर्थक नेताओं को सत्ता में जगह मिलेगी. एक अन्य फार्मूले के मुताबिक, अगर BNP को ज्यादा सीटें मिलती हैं, तो मोहम्मद यूनुस राष्ट्रपति और तारिक रहमान प्रधानमंत्री बन सकते हैं, जबकि जमात प्रमुख उप प्रधानमंत्री होंगे.
इन दोनों ही स्थितियों में पाकिस्तान को बांग्लादेश में फिर से 1971 से पहले जैसा प्रभाव स्थापित करने का अवसर मिल सकता है.

अवामी लीग के बिना चुनावी मुकाबला कितना निष्पक्ष
भारत लगातार इस बात पर जोर देता रहा है कि बांग्लादेश में स्वतंत्र, निष्पक्ष और समावेशी चुनाव हों. अवामी लीग, जातीय पार्टी और अन्य दलों को बराबरी का अवसर मिले. ऐसा नहीं होने पर चुनाव की वैधता पर सवाल उठेंगे और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा जारी रहेगी.
अल्पसंख्यकों पर हिंसा और तारिक रहमान की चुप्पी
तारिक रहमान ने अब तक 18 महीनों से जारी अल्पसंख्यक हिंसा या दीपु चंद्र दास की नृशंस हत्या पर कोई बयान नहीं दिया है. अल्पसंख्यक समुदाय 2001 के बाद हुए अत्याचारों को आज भी नहीं भूला है.

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शेख हसीना की प्रतिक्रिया
शेख हसीना ने खालिदा जिया के निधन को अपूरणीय क्षति बताया है. खालिदा जिया की असली विरासत तभी सम्मान पाएगी, जब बांग्लादेश में एक नई तटस्थ केयरटेकर सरकार बने और सभी दलों की भागीदारी के साथ विश्वसनीय चुनाव हों.
लेखिका- वीना सीकरी
(लेखिका बांग्लादेश में भारत की उच्चायुक्त रह चुकी हैं. फिलहाल, वह साउथ एशिया विमेंस नेटवर्क की फाउंडिंग ट्रस्टी और कन्वीनर हैं.)
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