
- अमेरिका ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 6 अगस्त 1945 को हिरोशिमा पर पहला परमाणु बम गिराया था, 140000 लोग मरे.
- तीन दिन बाद अमेरिका ने नागासाकी पर दूसरा परमाणु बम गिराया, जिससे लगभग 74,000 लोगों की मौत हुई थी.
- परमाणु विस्फोट से उत्पन्न तापमान लगभग 7,000 डिग्री सेल्सियस था, जिसने 3 KM क्षेत्र को पूरी तरह नष्ट कर दिया.
6 अगस्त को दुनिया में पहले परमाणु बम के हमले को ठीक 80 साल गुजर जाएंगे. दूसरे विश्व युद्ध के बीच अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम से हमला किया था. पहला परमाणु बम 6 अगस्त, 1945 को हिरोशिमा में गिरा जिसमें लगभग 140,000 लोग मारे गए. इसके तीन दिन बाद दूसरा बम नागासाकी में गिरा जिसमें 74,000 लोग मारे गए. चलिए आपको इंसानियत को दहला देने वाले विनाशकारी हमले के से जुड़े फैक्ट आपको बताते हैं.
लिटिल बॉय और फैट मैन– वो दो परमाणु बम
पहले परमाणु बम का नाम "लिटिल बॉय" था जिसे अमेरिका के बम गिराने वाले प्लेन एनोला गे की मदद से जापान के पश्चिमी शहर हिरोशिमा पर गिराया गया था. तारीख थी 6 अगस्त 1945. यह बम 15,000 टन टीएनटी के बराबर फोर्स के साथ जमीन से लगभग 600 मीटर की उंचाई पर फटा. इस हमले से हजारों लोगों की तुरंत मृत्यु हो गई, जबकि हजारों लोगों ने अगले कुछ सप्ताहों, महीनों और वर्षों में चोटों या बीमारी के कारण दम तोड़ दिया.

परमाणु बम गिरते आ गया ‘काल'
रेड क्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समिति (ICRC) के अनुसार बम फटते ही हिरोशिमा में लोगों ने जो पहली चीज देखी वो "आग का तीव्र गोला" था. जहां विस्फोट हुआ, वहां का तापमान अनुमानित 7,000 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया. इससे लगभग तीन किलोमीटर के दायरे में सब कुछ जलकर खाक हो गया.
कोइची वाडा नागासाकी हमले के समय 18 साल के थे. उन्होंने बमबारी के बारे में कहा, "मुझे याद है कि छोटे बच्चों के जले हुए शव काली चट्टानों की तरह हाइपोसेंटर एरिया (ग्राउंड जीरो जहां बम गिरा) के आसपास पड़े हुए थे."

ICRC विशेषज्ञों का कहना है कि जिन्होंने वो धमाका देखा भी, रोशनी की तीव्र चमक के कारण उनमें अस्थायी या स्थायी अंधापन और उसके बाद मोतियाबिंद जैसी संबंधित क्षति के मामले सामने आए हैं. विस्फोट से उत्पन्न गर्मी के बवंडर ने आगे हजारों आग भी भड़का दी, जिसने ज्यादातर लकड़ी वाले शहर के बड़े हिस्से को तबाह कर दिया. आग के तूफान ने हवा में मौजूद सभी उपलब्ध ऑक्सीजन को खत्म कर दिया, जिसके कारण दम घुटने से अधिक मौतें हुईं.
जो बच गए उन्हें रेडिएशन ने तबाह किया
जो लोग दोनों विस्फोटों और उससे पैदा हुए आग के तूफान से बच भी गए, उनमें से कईयों को न्यूक्लियर रेडिएशन से जुड़ी बीमारी हो गई. पहले तो उल्टी, सिरदर्द, मतली, दस्त, रक्तस्राव और बालों का झड़ना हुआ. लेकिन कुछ ही हफ्तों या महीनों के भीतर ये रेडिशन की बीमारी कई लोगों के लिए जानलेवा हो गई.
जीवित बचे लोगों को "हिबाकुशा" के नाम से जाना जाता है. उन्होंने दीर्घकालिक प्रभावों का अनुभव किया, जिसमें थायरॉइड कैंसर और ल्यूकेमिया के बढ़ते जोखिम शामिल हैं, और हिरोशिमा और नागासाकी दोनों में कैंसर की दर में वृद्धि देखी गई है. जापानी-यूएस रेडिएशन इफेक्ट्स रिसर्च फाउंडेशन की स्टडी के अनुसार दोनों शहरों के 50,000 रेडिएशन पीड़ितों में से लगभग 100 की ल्यूकेमिया से मृत्यु हो गई और 850 रेडिएशन से हुए कैंसर से पीड़ित हुए. हालांकि इस रिसर्च फाउंडेशन को सर्वाइवर बच्चों में जन्म से होने वाली गंभीर बिमारियों में "महत्वपूर्ण वृद्धि" का कोई सबूत नहीं मिला.

आज तक जख्मी है जापान
इन दो परमाणु बम विस्फोटों ने जापान को हिलाकर रख दिया. 15 अगस्त, 1945 को जापान ने अमेरिका के सामने सरेंडर कर दिया, जिससे द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया. इतिहासकारों के बीच इस बात पर बहस की है कि क्या परमाणु हमले ने अंततः जंग को समाप्त करके और जमीनी आक्रमण को रोककर लोगों की जान बचाई. लेकिन उन गुणा-भाग का जापान के जीवित बचे लोगों के लिए कोई मतलब नहीं था, जिनमें से कई दशकों तक शारीरिक और मनोवैज्ञानिक आघात से जूझते रहे. साथ ही वो एक कलंक से भी जूझते रहे- हिबाकुशा होने से जुड़ा कलंक.
लोगों को लगा कि उनसे शादी करने पर उन्हें भी रेडिएशन से जुड़ी बीमारी हो जाएगी. उनको जापान में अलग-थलग किया गया, विशेष रूप से शादी के लिए जल्दी कोई राजी नहीं होता था. परमाणु हमले के सर्वाइवर और उनके समर्थक परमाणु हथियारों का विरोध करने वाली सबसे ऊंची और सबसे शक्तिशाली आवाजों में से कुछ बन गए हैं. पिछले साल, हिबाकुशा के जमीनी स्तर के आंदोलन, जापानी परमाणु-विरोधी समूह निहोन हिडानक्यो ने नोबेल शांति पुरस्कार जीता था.

2019 में, पोप फ्रांसिस ने हिरोशिमा और नागासाकी में कई हिबाकुशा से मुलाकात की. उन्होंने "अकथनीय आतंक" की निंदा की और परमाणु हथियारों के उन्मूलन की आवाज उठाई. 2016 में, बराक ओबामा हिरोशिमा का दौरा करने वाले पहले मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति बने. उन्होंने हमले के लिए कोई माफी नहीं मांगी, लेकिन जीवित बचे लोगों को गले लगाया और परमाणु हथियारों से मुक्त दुनिया का आह्वान किया.
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