वैश्विक विदेशी मुद्रा भंडार रिकॉर्ड तेजी से गिर रहा है. भारत से लेकर चेक गणराज्य तक के केंद्रीय बैंक अपनी मुद्रा का समर्थन करने के लिए हस्तक्षेप कर रहे हैं. ब्लूमबर्ग में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, वह वर्ष 2003 से इसका डाटा एकत्र कर रहा है और यह अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है. इस साल वैश्विक विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर या 7.8 फीसदी की गिरावट के साथ 12 ट्रिलियन डॉलर हो गया है. गिरावट का सबसे बड़ा कारण डॉलर का येन और यूरो जैसी मुद्राओं के मुकाबले दो दशक के उच्च स्तर पर पहुंच जाना है. डॉलर की तेजी ने सभी देशों के केंद्रीय बैंक को दबाव में ला दिया है.
उदाहरण के तौर पर भारत का ही विदेशी मुद्रा भंडार इस साल 96 अरब डॉलर घटकर 538 अरब डॉलर हो गया है. भारत के केंद्रीय बैंक ने कहा कि इस वित्तीय वर्ष के दौरान संपत्ति के मूल्यांकन में 67 प्रतिशत की गिरावट आई है. इस साल डॉलर के मुकाबले रुपये में लगभग 9 प्रतिशत की गिरावट आई है और पिछले महीने यह रिकॉर्ड स्तर पर था. भारतीय केंद्रीय बैंक को रुपये की गिरावट रोकने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा.
इसी तरह 1998 के बाद पहली बार जापान ने 20 बिलियन डॉलर खर्च कर येन को संभाला. इससे उसके रिजर्व का लगभग 19 प्रतिशत तक कम हुआ. चेक गणराज्य का भी फरवरी से अब तक 19 प्रतिशत रिजर्व कम हुआ है. आमतौर पर सभी देशों के केंद्रीय बैंक विदेशी पूंजी आने पर डॉलर खरीदते हैं और खराब समय आने पर इसे कम कर अपनी मुद्रा को ताकत देते हैं, मगर इस बार मामला गंभीर दिख रहा है.
डच बैंक एजी के मुख्य अंतरराष्ट्रीय रणनीतिकार एलन रस्किन ने बताया कि एशिया के कुछ देशों के पास अभी भी विदेशी मुद्रा भंडार काफी है. वह अपनी मुद्रा की गिरावट रोकने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार को और कम कर सकते हैं. भारत के पास अभी भी वर्ष 2017 की तुलना में 49 प्रतिशत ज्यादा विदेशी मुद्रा भंडार है और यह नौ महीने के आयात के भुगतान के लिए पर्याप्त है. शुक्रवार को इंडोनेशिया, मलेशिया, चीन और थाइलैंड अपने नवीनतम विदेशी मुद्रा भंडार के आंकड़े जारी करेंगे. हालांकि, अन्य देशों के विदेशी मुद्रा भंडार जल्द समाप्त हो रहे हैं. ब्लूमबर्ग के आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल 42 फीसदी की गिरावट के बाद पाकिस्तान का 14 अरब डॉलर का भंडार तीन महीने के आयात को भी कवर करने के लिए पर्याप्त नहीं है.
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