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This Article is From Oct 15, 2016

शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन सीमित करने पर किगाली में हुआ ऐतिहासिक समझौता

शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन सीमित करने पर किगाली में हुआ ऐतिहासिक समझौता
रवांडा: जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने के लिए भारत सहित करीब 200 देशों ने जलवायु पर असर डालने वाले एचएफसी का इस्तेमाल कम करने के मुद्दों पर गहन चर्चाओं के बाद शनिवार को यहां इस बारे में कानूनी रूप से बाध्य एक ऐतिहासिक समझौता किया. एचएफसी यानि हाइड्रोफ्लोरो कार्बन ग्रीन-हाउस प्रभाव पैदा कर वायुमंडल का ताप बढ़ाने के मामले में कार्बन डाइऑक्साइड से हजार गुना खतरनाक है. दुनिया भर से जुटे वार्ताकारों एवं नीति नियंताओं ने यहां शुक्रवार सुबह से रात तक बैठकें कीं.

इन वार्ताओं में एचएफसी के इस्तेमाल को कम करने के लिए मांट्रियल संधि में संशोधन के प्रस्ताव पर मतभेद दूर कर संबंधित किगाली संशोधन पर सहमति बनी. मांट्रियल प्रोटोकॉल में संशोधन के लिए यहां 197 देशों ने नया समझौता किया. यह प्रोटोकॉल उन तत्वों से संबंधित है जिनके कारण ओजोन की परत कमजोर हो रही है. इसके कमजोर पड़ते रहने से सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में 0.5 डिग्री सेल्सियत तक की वृद्धि हो सकती है.

समझौते से इस पर रोक लगने की उम्मीद है. देशों द्वारा मंजूर किए गए संशोधन के अनुसार विकसित देश एचएफसी के इस्तेमाल को पहले कम करेंगे जिसके बाद चीन और कई दूसरे देश ऐसा करेंगे. इसके बाद भारत और दक्षिण एवं पश्चिम एशिया के नौ दूसरे देशों की बारी आएगी. कुल मिलाकर समझौते के तहत 2045 तक एचएफसी के इस्तेमाल में 85 प्रतिशत की कमी करने की उम्मीद है. संशोधन एक जनवरी, 2019 से कार्यान्वित होगा लेकिन उसके लिए जरूरी है कि देशों या मांट्रियाल प्रोटोकॉल पक्ष रहे क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण संगठनों की ओर से कम से कम 20 अनुमोदन या स्वीकृति मिले.

यहां सम्मेलन के उच्च स्तरीय खंड में हिस्सा लेने वाले पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे ने कहा, "हमने अपने विकास, औद्योगिक हित और साथ ही देश के हित की परवाह की." संशोधन के तहत एचएफसी के उत्पादन एवं इस्तेमाल को रोकने और फिर घटाने की खातिर देशों के लिए तीन अलग अलग कार्यक्रम तय किए गए हैं. अमेरिका और यूरोप के नेतृत्व में विकसित देश 2011-13 की आधार रेखा पर 2036 तक एचएफसी के इस्तेमाल में 85 प्रतिशत की कमी लाएंगे. दुनिया में एचएफसी का सबसे बड़ा उत्पादक देश चीन 2020-22 की आधार रेखा पर 2045 तक इसके इस्तेमाल में 80 प्रतिशत की कमी करेगा.

भारत 2024-26 की आधार रेखा पर एचएफसी के इस्तेमाल में 85 प्रतिशत की कमी करेगा. विकसित देश इसके लिए विकासशील देशों को और ज्यादा वित्तीय मदद उपलब्ध कराने पर भी सहमत हुए. पेरिस में जलवायु परिवर्तन को लेकर हुए समझौते के उलट मांट्रियल प्रोटोकॉल संशोधन कानूनी रूप से बाध्यकारी है. भारतीय जलवायु विशेषज्ञों ने समझौते पर सहमति बनाने में भारत द्वारा निभायी गयी भूमिका की सराहना की है.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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