
- आंध्र प्रदेश न्याय देने के मामले में एक करोड़ से अधिक आबादी वाले राज्यों में दूसरे नंबर पर पहुंच गया है.
- आंध्र प्रदेश जेलों में प्रति कैदी सालाना दो लाख साठ हजार रुपये से अधिक खर्च करता है.
- राज्य की जिला अदालतों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व पचास प्रतिशत से अधिक है जो राष्ट्रीय स्तर पर उच्च है.
आंध्र प्रदेश न्याय देने के मामले में एक करोड़ से अधिक आबादी वाले 18 बड़े और मध्यम राज्यों में दूसरे नंबर पर है. 'इंडिया जस्टिस रिपोर्ट- 2025' में इसकी जानकारी दी गई है. बता दें कि 2022 में आंध्र इस मामले में पांचवें नंबर पर था. कर्नाटक ने इस मामले में पहला नंबर हासिल किया है. रिपोर्ट के मुताबिक, दक्षिणी राज्य 'कारागार' श्रेणी में चौथे नंबर पर और 'कानूनी सहायता' के मामले में पांचवें नंबर पर है.
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इंडिया जस्टिस रिपोर्ट में कौन रहा नंबर-1?
तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) की राष्ट्रीय प्रवक्ता ज्योत्सना तिरुनगरी ने कहा, "हम अपनी रैंकिंग में इस नाटकीय बदलाव से बेहद खुश हैं. हम अगली रैंकिंग में नंबर एक बनने की कोशिश करेंगे." आईजेआर सरकारी सोर्सेज से मिले नए आधिकारिक आंकड़ों को न्याय देने के चार स्तंभों (पुलिस, न्यायपालिका, जेल और कानूनी सहायता) के आंकड़ों के साथ जोड़ता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि हर स्तंभ का विश्लेषण बजट, मानव संसाधन, कार्यभार, विविधता, बुनियादी ढांचे और राज्य के घोषित मानकों और बेंचमार्क के आधार पर किया गया है.

आंध्र में कैदियों पर होता है ज्यादा खर्च
आईजेआर 2025 के मुताबिक, आंध्र प्रदेश में कैदियों पर सबसे ज्यादा खर्च होता है. यहां पर प्रति कैदी 2.6 लाख रुपये हर साल या 733 रुपये प्रतिदिन खर्च होता है. बता दें कि यहां पर जेलों में 7,200 कैदी हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना दोनों राज्यों में जेलों में क्षमता से अधिक भीड़ नहीं है और किसी भी जेल में 250 प्रतिशत से अधिक कैदी नहीं हैं.
कितना फंड देती है आंध्र सरकार?
कानूनी सहायता के तहत, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सरकारें अपने-अपने कानूनी सहायता बजट का 80 प्रतिशत से अधिक योगदान देती हैं. 2022-23 में 100 प्रतिशत निधि उपयोग की सूचना दी गई है. हालांकि, रिपोर्ट में कहा गया है कि आंध्र प्रदेश ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) के फंड का 89 प्रतिशत उपयोग किया, जबकि तेलंगाना ने 61 प्रतिशत उपयोग किया.
लिंग और जाति प्रतिनिधित्व के मामले में, आंध्र प्रदेश में 2016 से अनुसूचित जाति (एससी) अधिकारियों में 10 प्रतिशत से अधिक की कमी दर्ज की गई है, जबकि अनुसूचित जनजाति (एसटी) कांस्टेबलों के बीच रिक्तियां 2019 में छह प्रतिशत से बढ़कर 2022 में 11 प्रतिशत हो गई हैं.
आंध्र की जिला अदालतों में 50 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना दोनों राज्यों की जिला अदालतों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 50 प्रतिशत से अधिक है. आंध्र प्रदेश में राष्ट्रीय स्तर पर पुलिस बल में महिलाओं का अनुपात सबसे अधिक 22 प्रतिशत है. टाटा ट्रस्ट ने इसे शुरु किया था और पहली बार 2019 में इसका प्रकाशन हुआ था.
इनपुट- भाषा के साथ
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