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'दीपू के साथ दानवों जैसा सलूक...', बांग्लादेश में हत्या के चश्मदीद ने NDTV से बयां की भीड़ की बर्बरता

प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि दीपू के शव को कम से कम एक किलोमीटर तक घसीटकर एक पेड़ से लटका दिया. उन्होंने उसे आग भी लगा दी. शव ज़मीन पर गिर गया. भीड़ में ज़्यादातर मुसलमान थे. हम वहां थे, लेकिन हम एक शब्द भी नहीं बोल सके.

'दीपू के साथ दानवों जैसा सलूक...', बांग्लादेश में हत्या के चश्मदीद ने NDTV से बयां की भीड़ की बर्बरता
  • बांग्लादेश में हिंदू नागरिक दीपू चंद्र दास की जघन्य हत्या ईर्ष्या और झूठे ईशनिंदा आरोपों के कारण हुई
  • बताया गया कि दीपू को मानव संसाधन कार्यालय से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया और फिर भीड़ ने बेरहमी से पीटा
  • चश्मदीद ने एनडीटीवी को बताया कि भीड़ ने दीपू दास के शव को एक किलोमीटर तक घसीटकर पेड़ से लटका दिया और आग लगा दी
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बांग्लादेश/नई दिल्ली:

बांग्लादेश में हिंदू नागरिक दीपू चंद्र दास की जघन्य हत्या के एक चश्मदीद ने एनडीटीवी को दिल दहला देने वाला वो मंजर बयान किया है. संकटग्रस्त इस देश में सुरक्षा कारणों से चश्मदीद ने अपना चेहरा ढ़ककर एनडीटीवी से बात की. बांग्लादेश में मुस्लिम भीड़ लगातार हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमले कर रही है. वहीं मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली कार्यवाहक सरकार इन अपराधियों के खिलाफ कोई खास कार्रवाई नहीं कर रही है.

दीपू दास के साथ काम करने वाले चश्मदीद ने बताया कि एक छोटी बच्ची के पिता की हत्या न केवल हिंदू होने के कारण हुई, बल्कि उनकी मेहनत से ईर्ष्या के कारण भी हुई. उन्होंने बताया कि कुछ लोग जिन्हें नौकरी नहीं मिली, उन्होंने जलन से अफवाहें फैला दी कि दीपू दास ने ईशनिंदा की है.

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चश्मदीद ने कहा, "पहले दीपू दास को मानव संसाधन कार्यालय बुलाया गया. उन्होंने उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया. वहां कारखाने के कर्मचारियों के साथ-साथ कुछ बाहरी लोग भी थे. उन्हें उनके हवाले कर दिया गया. उसके बाद भीड़ उन्हें कारखाने के गेट से बाहर ले गई और जनता के हवाले कर दिया."

उन्होंने बताया, "बाहर इंतजार कर रहे लोगों ने दीपू दास को बेरहमी से पीटा. उन्होंने उसके चेहरे और सीने पर हमले किए. उसे बुरी तरह पीटने के लिए उन्होंने कई लाठियों का इस्तेमाल किया. उसे बहुत खून बह रहा था. यह सब फैक्ट्री के गेट के ठीक बाहर हुआ."

प्रत्यक्षदर्शी ने बताया, “कुछ देर बाद वे शव को कम से कम एक किलोमीटर तक घसीटकर एक पेड़ से लटका दिया. उन्होंने उसे आग भी लगा दी. शव ज़मीन पर गिर गया. भीड़ में ज़्यादातर मुसलमान थे. हम वहां थे, लेकिन हम एक शब्द भी नहीं बोल सके.”

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जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्होंने रोकने की कोशिश की, तो प्रत्यक्षदर्शी ने एनडीटीवी को बताया कि कुछ लोगों ने उन्हें बचाने की कोशिश की, लेकिन हमले के डर से पीछे हट गए. उन्होंने बताया, “वे शैतानों की तरह व्यवहार कर रहे थे.”

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दीपू दास के एक सहकर्मी ने ईशनिंदा का आरोप लगाया था, जिसके बाद उस पर हमला हुआ. हालांकि बाद में अधिकारियों ने कहा कि इस बात के कोई सबूत नहीं मिले कि दीपू दास ने ईशनिंदा की थी.

इधर दीपू के पिता ने भी एनडीटीवी को बताया, "मेरे बेटे को नौकरी मिलने में किस्मत का साथ मिला, क्योंकि लॉटरी निकाली गई थी. वह बीए पास था और प्रमोशन के लिए भी तैयार था. लेकिन जिन लोगों को नौकरी नहीं मिली, उन्होंने उसकी हत्या की साजिश रची. उन्होंने उसे कई बार जान से मारने की धमकी दी थी. वह उन्हें अपनी नौकरी कैसे देता? इन्हीं लोगों ने फिर मैनेजर के पास जाकर शायद उसे रिश्वत दी. उन्होंने अफवाहें फैलाई कि दीपू दास ने ईशनिंदा की है."

वहीं दीपू के गांव वालों ने कहा कि दीपू दास की मौत इस बात की याद दिलाती है कि आज के अस्थिर बांग्लादेश में हिंदुओं को अपने अरमानों को कुचलना होगा, नहीं तो उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ेगी. उन्होंने चिंता व्यक्त की कि दीपू दास की हत्या ने समुदाय में भय का गहरा घाव छोड़ दिया है.

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बांग्लादेश की राजधानी ढाका में हिंदुओं ने एनडीटीवी से विशेष बातचीत में अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों और चिंताओं को बयान किया. उन्होंने कहा कि ये हमले कट्टरपंथी इस्लामवादियों द्वारा किए जा रहे हैं, जिनमें से अधिकांश को जमात-ए-इस्लामी का समर्थन हासिल है.

बता दें कि 29 साल के दीपू चंद्र दास को 18 दिसंबर को कथित झूठे ईशनिंदा आरोपों के बाद भीड़ ने बेरहमी से पीट-पीटकर मार डाला. कट्टरपंथियों ने हत्या के बाद उसके शव को पेड़ से लटकाया और फिर आग लगा दी. इस जघन्य घटना की दुनिया भर में कड़ी निंदा हो रही है.

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