बांग्लादेश में दीपू चंद्र दास की हत्या के बाद हालात बिगड़े हुए हैं. दहशतगर्दों के आतंक की वजह से अल्पसंख्यक समुदाय सहमा हुआ है. जिस जगह दीपू दास रहते थे, वहां हिंदुओं में बेबसी भरी दहशत का साया है. एनडीटीवी ने दीपू दास के गांव में और उनके घर जाकर खुद अपनी आंखों से हालात का जायजा लिया.
दीपू दास को 18 दिसंबर को भीड़ ने मयमन सिंह शहर में पीट-पीटकर मार दिया था और बीच रास्ते में एक पेड़ से बांधकर जला दिया था. दीपू मयमनसिंह की जिस फैक्ट्री में काम करते थे, वह उनके घर से करीब डेढ़ घंटे की दूरी पर है. दीपू टिन से बने घर में अपने माता-पिता, भाई-बहन और पत्नी-बच्ची के साथ रहते थे. बच्ची इतनी मासूम है कि उसे इल्म तक नहीं है कि उसके पिता के साथ क्या हुआ है. एनडीटीवी ने दीपू के घर में जाकर उनके परिवार वालों से बात की.
एनडीटीवी से बात करते हुए गांव वालों ने कहा कि दीपू दास की मौत ने दिखा दिया है कि बांग्लादेश में इस वक्त हिंदुओं के लिए बहुत बुरे हालात हैं. वह खुलकर नहीं जी सकते. अपनी मर्जी से काम नहीं कर सकते. माहौल ऐसा है कि हिंदुओं को अपनी एंबिशन पर लगाम लगानी होगी, वरना जान से हाथ धोना पड़ेगा.
हिंदू समुदाय के एक स्थानीय नेता ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि दीपू दास की हत्या के बाद से समुदाय में डर का माहौल है. एक अन्य बुजुर्ग ने बताया कि दीपू दास एक अच्छा इंसान था. इस इलाके में उसके जैसा कोई दूसरा नहीं था.
लोगों ने बताया कि जब दीपू के साथ मारपीट की जा रही थी, उसे पीट-पीटकर मारा जा रहा था और जब उसे बीच रास्ते में पेड़ से बांधकर आग लगाई जा रही थी, उस वक्त पुलिस वहां मौजूद थी. लेकिन भीड़ की दहशत इतनी थी कि पुलिसवाले भी भाग गए थे. उन्होंने दीपू को बचाने की भी कोशिश नहीं की थी.
परिवार वालों ने एनडीटीवी को बताया कि दीपू पर जो इल्जाम लगाया जा रहा है कि उसने मुसलमानों के लिए आलोचना की थी, ईशनिंदा की थी, वह बिल्कुल झूठी बात है. असल बात दीपू की नौकरी और प्रमोशन को लेकर थी. उसके साथ काम करने वाले लोग उसकी नौकरी और प्रमोशन से चिढ़ते थे. उन्होंने ही मैनेजर को भड़काया था और ईशनिंदा की अफवाह फैलाई थी.
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