
- कनाडा ने कहा कि वह सितंबर में UN महासभा में फिलिस्तीन को मान्यता देगा. UK और फ्रांस ने पहले ऐलान किया था.
- कनाडा ने फिलिस्तीनी प्राधिकरण से हमास के बिना 2026 में आम चुनाव कराने और विसैन्यीकरण की शर्त रखी है.
- फ्रांस, ब्रिटेन और कनाडा के फैसलों पर इजरायल ने कड़ी प्रतिक्रिया दी और इसे हमास को समर्थन देने वाला बताया है.
फ्रांस, ब्रिटेन और अब कनाडा… एक के बाद एक पश्चिमी शक्तियां फिलिस्तीन को एक देश के रूप में आधिकारिक तौर पर मान्यता देने का ऐलान कर रही हैं. कनाडा के प्रधान मंत्री मार्क कार्नी ने कहा है कि कनाडा सितंबर में फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने की योजना बना रहा है. उन्होंने कहा, "कनाडा सितंबर 2025 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 80वें सत्र में फिलिस्तीन राज्य को मान्यता देने का इरादा रखता है." कार्नी ने कदम के लिए एक शर्त भी रखी है और वो है फिलिस्तीन में लोकतांत्रिक सुधारों की. इसमें फिलिस्तीनी प्राधिकरण द्वारा अगले साल हमास के बिना अपने यहां चुनाव कराना भी शामिल है.
फ्रांस और ब्रिटेन के फैसले की तरह ही कनाडा के इस ऐलान पर भी इजरायल बिफर पड़ा है. उसने इसे हमास उग्रवादियों को शह देने वाला बताया है.
वहीं पीएम कार्नी ने कहा कि इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के लिए दो-राज्य समाधान (टू-स्टेट सॉल्यूशन) की उम्मीदों को बनाए रखने के लिए यह कदम आवश्यक है. उन्होंने कहा कि एक लंबे समय से चला आ रहा यह कनाडाई लक्ष्य "हमारी आंखों के सामने खत्म हो रहा है."
कनाडा ने यह फैसला क्यों लिया?
कार्नी ने कहा कि गाजा में नागरिकों की बढ़ती पीड़ा के कारण "शांति का समर्थन करने के लिए मिलकर अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई करने में देरी की कोई गुंजाइश नहीं है." पत्रकारों ने जब यह पूछा कि क्या ऐसा कोई परिदृश्य है जहां कनाडा संयुक्त राष्ट्र की बैठक से पहले अपना रुख बदल सकता है, कार्नी ने कहा: "एक परिदृश्य है (लेकिन) संभवतः उसकी मैं कल्पना नहीं कर सकता."
उन्होंने कनाडा की विदेश नीति में इस नाटकीय बदलाव के पीछे कब्जे वाले वेस्ट बैंक में इजरायली बस्तियों के विस्तार, गाजा में बिगड़ती मानवीय स्थिति और हमास द्वारा इजरायल पर 7 अक्टूबर 2023 के हमलों का हवाला दिया. कार्नी ने बुधवार को संवाददाताओं से कहा, "गाजा में मानवीय पीड़ा का स्तर असहनीय है और यह तेजी से बिगड़ रहा है."
कनाडा की शर्त
कार्नी ने राष्ट्रपति महमूद अब्बास के नेतृत्व वाले निकाय का जिक्र करते हुए कहा कि कनाडा का यह फैसला फिलिस्तीनी प्राधिकरण की बहुत जरूरी सुधारों के प्रति प्रतिबद्धता पर आधारित है. यह फिलिस्तीनी प्राधिकरण इजरायल के कब्जे वाले वेस्ट बैंक के कुछ हिस्सों में नागरिक सरकार चलाता है. कार्नी ने कहा कि फिलिस्तीन को मान्यता देने की उनकी शर्त यही है कि अब्बास 2026 में आम चुनाव कराएं, जिसमें हमास की कोई भूमिका नहीं हो. साथ ही वह फिलिस्तीनी राज्य को विसैन्यीकृत (सैन्य बलों और सैन्य उपकरणों को हटाना या कम करना) करने की प्रतिज्ञा लें.
फिलिस्तीनी प्राधिकरण अब्बास के नेतृत्व वाली फतह पार्टी के माध्यम से वेस्ट बैंक के कुछ हिस्सों को नियंत्रित करता है. जबकि गाजा में हमास का कंट्रोल है. 2006 के बाद से किसी भी क्षेत्र में चुनाव नहीं हुआ है.
इजरायल पर बढ़ रहा दबाव, ट्रंप ने भी कनाडा के फैसले के खिलाफ
एक दिन पहले ब्रिटेन की सरकार ने इजरायल से कहा था कि वह गाजा में लोगों की बदतर हालत को सुधारने के लिए ठोस कदम उठाए और लंबे समय तक चलने वाली शांति के लिए गंभीरता से काम करे. अगर ऐसा नहीं होता है, तो ब्रिटेन सितंबर में फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दे सकता है, ताकि दो देशों वाले समाधान (टू-स्टेट सॉल्यूशन) की संभावना को बचाया जा सके. वहीं फ्रांस ने पिछले हफ्ते घोषणा की थी कि वह सितंबर में आधिकारिक तौर पर फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देगा.
यानी कनाडा, फ्रांस और ब्रिटेन एक साथ दिख रहे हैं और इजरायल साफ तौर पर परेशान दिख रहा है. ओटावा (कनाडा की राजधानी) में इजरायली दूतावास ने कहा, "जवाबदेह सरकार, कामकाजी संस्थानों या परोपकारी नेतृत्व की अनुपस्थिति में फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देना, 7 अक्टूबर, 2023 को हमास द्वारा की गई राक्षसी बर्बरता को पुरस्कृत करना और वैध बनाना है."
वहीं फिलिस्तीनी प्राधिकरण के अब्बास ने "ऐतिहासिक" निर्णय के रूप में घोषणा का स्वागत किया, जबकि फ्रांस ने कहा कि देश "क्षेत्र में शांति की संभावना को पुनर्जीवित करने के लिए" मिलकर काम करेंगे.
कनाडा की यह योजना ब्रिटिश प्रधान मंत्री कीर स्टार्मर द्वारा की घोषणा से एक कदम आगे है. क्योंकि ब्रिटेन ने कहा था कि अगर इजरायल ने सीजफायर नहीं किया तो वह फिलिस्तीन को मान्यता देंगे. लेकिन कनाडा ने फिलिस्तीन में लोकतांत्रिक सिस्टम को मजबूत करने की शर्त रखी है.
फिलिस्तीन को मान्यता देने का क्या मतलब है?
इस सवाल का जवाब फिलिस्तीन की मौजूदा स्थिति में छिपी है. फ़िलिस्तीन एक ऐसा देश है जिसका अस्तित्व है भी और नहीं भी. इसको दुनिया के बहुतायत देश मान्यता देते हैं, विदेशों में इसके राजनयिक मिशन हैं और इसके पास ओलंपिक सहित खेल प्रतियोगिताओं में प्रतिस्पर्धा करने वाली टीमें हैं. लेकिन फिर भी इजरायल के साथ लंबे समय से चल रहे विवाद के कारण, इसकी कोई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहमत सीमा नहीं है, कोई राजधानी नहीं है और कोई सेना नहीं है.
यानी आज इसकी स्थिति एक आधी देश की है. ऐसे में जब 3 महाशक्तियां इसे एक देश के रूप में मान्यता देंगी तो भले यह कदम प्रतीकात्मक होगा लेकिन यह फिलिस्तीन के लिए के एक मजबूत नैतिक समर्थन होगा, यह अपने आप में एक मजबूत राजनीतिक बयान होगा. भले जमीनी तौर पर बहुत कम बदलाव आए लेकिन इसका मैसेज मजबूत होगा. यह मैसेज ही इजरायल और वहां के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के लिए परेशानी का सबब बन सकता है.
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