भारत-अमेरिका के प्रगाढ़ होते रिश्तों को लेकर चीन की चिंताएं खारिज करते हुए ‘व्हाइट हाउस’ ने कहा कि इस रिश्ते का मकसद चीन को ‘काबू में करना’ या उसे ‘थामना’ कतई नहीं है।
अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा उप-सलाहकार बेन रोड्स से जब चीन के सरकारी मीडिया की टिप्पणी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, यह गौर करने वाली बात है कि उन्हें (चीन को) इस यात्रा पर टिप्पणी करने के लिए विवश होना पड़ा। चीन की सरकारी संवाद समिति ‘शिन्हुआ’ ने जलवायु परिवर्तन एवं परमाणु ऊर्जा सहयोग जैसे मुद्दों पर मतभेद की वजह से अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की मौजूदा भारत यात्रा को ‘सतही घनिष्ठता’ करार दिया था।
रोड्स ने कहा, मैं अपनी प्रतिक्रिया में कहूंगा कि अमेरिका और भारत एशिया-प्रशांत में जिस तरह से मुद्दे से निपटते हैं वह इस मायने में एक ही जैसा है कि कोई भी चीन को काबू में नहीं कर रहा या न ही उसके साथ कोई टकराव की कोशिश कर रहा है। उन्होंने कहा, अलग-अलग क्षेत्रों में चीन से अमेरिका और भारत दोनों के संबंध बहुत घनिष्ठ हैं।
बहरहाल, रोड्स ने पुष्टि की कि ओबामा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हुई द्विपक्षीय वार्ता में चीन पर चर्चा की गई थी।
राष्ट्रपति ओबामा के शीर्ष सहयोगी रोड्स ने कहा, चीन के बाबत मेरा मानना है कि वह संकेत - यह एक गलत रुख नहीं है, बल्कि ऐसी चीज है, जिसमें हमारे साथ दो बहुत बड़े देश हैं, जो एशिया में नियमों पर आधारित व्यापार करने के तौर-तरीकों के प्रति प्रतिबद्ध हैं। मेरा मानना है कि यह एक स्थिरता प्रदान करने वाला बल होगा।
रोड्स ने कहा, अमेरिका-भारत संबंध कुछ ऐसा है, जिसका इंतजार लोगों को कई वर्षों से था और यह संबंध एक अलग स्तर पर ले जाया जाना चाहिए क्योंकि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई एवं इस क्षेत्र में आर्थिक वृद्धि के मामले में हमारे हित गहराई से जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा, लोकतांत्रिक देश होने के कारण हमारे मूल्य मिलते हैं। अविश्वास की पुरानी आदत से मुक्ति पाना मुश्किल होता है और इसमें कुछ अविश्वास हमारी खुद की प्रणालियों में निहित है। साफ-साफ कहें तो हर देश की जो प्राथमिकताएं हैं उसमें संबंधों को सुधारने के लिए समय और शक्ति लगाना निश्चित रूप से बड़ा कठिन काम है।
रोड्स ने कहा, मुझे लगता है कि यहां यह हुआ है कि प्रधानमंत्री मोदी ने सत्ता संभाली और एक सोचा समझा फैसला कर कहा कि मेरे लिए अमेरिकी संबंध एक प्राथमिकता है। इसके बाद दोनों नेताओं ने वाशिंगटन में मुलाकात की और काफी व्यापक चर्चा की। तो उन्हें लगा कि वे जिस दिशा में बढ़ना चाहते हैं, उस दिशा में उनके विचार मिलते हैं।
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