बांग्लादेश में आज अंतरिम सरकार (Bangladesh Interiom Government) का गठन हो रहा है. इस अंतरिम सरकार का नेतृत्व नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को सौंपने का फ़ैसला किया गया है. अंतरिम सरकार का कार्यभार संभालने के लिए मोहम्मद यूनुस पेरिस से बांग्लादेश वापस लौट चुके हैं. गुरुवार शाम को बांग्लादेश की अंतिम सरकार का शपथ ग्रहण होने जा रहा है. सरकार के मुखिया के तौर पर मोहम्मद यूनुस के सामने अब कई बड़ी चुनौतियां होंगी. इनमें आंतरिक चुनौतियों के साथ साथ भारत जैसे देश के साथ रिश्ते को आगे बढ़ाने की चुनौती शामिल है.
मोहम्मद यूनुस के सामने 8 सबसे बड़ी चुनौतियां
बांग्लादेश में शांति और स्थिरता की स्थापना
आंतरिक सरकार के मुखिया के तौर पर मोहम्मद यूनुस के सामने सबसे बड़ी चुनौती बांग्लादेश में शांति और स्थिरता लाने की है. क़रीब 5 हफ़्ते से जारी ख़ूनी प्रदर्शनों और सैंकड़ों की मौत का सिलसिला अभी रूका नहीं है. मोहम्मद यूनुस की पहली ज़िम्मेदारी होगी कि वो हिंसक प्रदर्शनों पर क़ाबू पाएं. अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करें. साथ अवामी लीग पार्टी के नेताओं के ख़िलाफ़ जारी हिंसा पर भी रोक लगाएं.
चुनौती नंबर 2
बांग्लादेश में सेना को साथ लेकर चलना पर कठपुतली नहीं दिखना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक होगा. उनको जो ज़िम्मेदारी मिली है उसमें बांग्लादेश की सेना की सहमति हासिल है, लेकिन अहम फ़ैसलों पर सेना को साथ लेकर चलने की भी चुनौती उनके सामने हैं. सेना को अगर ये लगा कि यूनुस उनकी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे तो फिर मामला बिगड़ सकता है. लेकिन उनको सेना की कठपुतली भी नहीं दिखना होगा.
चुनौती नंबर 3
अर्थव्यवस्था को संभालना, खाने पीने की चीज़ों की महंगाई कम करना भी नोबेल पुरस्कार विजेता के सामने बड़ी चुनौती होगी. उनके लिए आर्थिक मोर्चे की ये चुनौती किसी लिहाज से आसान नहीं है. क्योंकि बांग्लादेश में खाने पीने की चीज़ों की महंगाई चरम पर है. बांग्लादेश की जनता की उम्मीद होगी कि यूनुस इस पर फौरी लगाम लगाएं, ताकि जनता राहत महसूस कर सके.
चुनौती नंबर 4
मोहम्मद यूनुस के लिए आंदोलनकारी छात्रों की उम्मीदों पर खरा उतरना भी एक चुनौती है, बेकारी-बेरोज़गारी कम करने की दिशा में फ़ौरी क़दम उठाना होगा. मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार की कमान सौंपे जाने के पीछे एक बड़ी वजह ये है कि आरक्षण के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे छात्रों संगठनों इसकी मांग की. दरअसल ये युवा और छात्र बेरोज़ग़ारी की भारी समस्या से जूझ रहे हैं. उनकी उम्मीद होगी कि मोहम्मद यूनुस जल्द ही इस दिशा में क़दम उठाएं.
चुनौती नंबर 5
लोकतांत्रिक तरीक़े से चुनाव कराना, अवामी लीग जैसी पार्टी को भी साथ लेकर चलना भी आसान नहीं होगा. अंतरिम सरकार की बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी होगी कि वो बांग्लादेश को लोकतांत्रिक तौर पर चुनी हुई सरकार दें. एक ऐसे समय में जब अवामी लीग की नेता शेख हसीना को पीएम पद और देश छोड़ कर भागना पड़ा है, इन परिस्थिति में बांग्लादेश की सेना ने अवामी लीग को किसी भी पॉलिटिकल कंसल्टेशन में शामिल नहीं किया है. ये बात अभी के हालात के लिए तो समझ में आती है लेकिन बांग्लादेश में सच्चे लोकतंत्र की बहाली के लिए अवामी लीग को भी साथ लेकर चलना होगा.
हालांकि मोहम्मद यूनुस हमेशा शेख हसीना के निशाने पर रहे, लेकिन क्योंकि अब अंतरिम सरकार की कमान मोहम्मद यूनुस के हाथों में है तो उनको राजनीतिक प्रक्रिया और भविष्य के चुनाव में अवामी लीग साथ लेकर चलने का जज़्बा और हिम्मत दिखानी होगी. मौजूदा माहौल में ये करना बेशक असंभव लग रहा हो, लेकिन अगर अवामी लीग को साथ लेकर नहीं चला गया तो फिर लोकतंत्र की स्थित उसी तरह की नज़र आएगी जैसे खालिदा ज़िया और बीएनपी के बिना हुए चुनावों में नज़र आ रही थी.
चुनौती नंबर 6
बांग्लादेश को कट्टरपंथियों के हाथों में गिरने से बचाना, आतंकवाद पर क़ाबू रखना भी उनके लिए बड़ी समस्या है. अभी बांग्लादेश में कट्टरपंथ और आतंकवाद के हाथों पड़ता नज़र आ रहा है. बांग्लादेश को जमात-ए-इस्लामी के एजेंडे से बचाने की होगी जो पाकिस्तानी आईएसआई के हाथों की कठपुतली मानी जाती है. यूनुस ऐसा नहीं कर पाए तो बांग्लादेश के हालात और ख़राब हो सकते हैं.
चुनौती नंबर 7
मोहम्मद यूनुस के लिए ये भी अहम है कि भारत जैसे पड़ोसी देश के साथ रिश्ते मज़बूती से आगे बढ़ाए जाए, भारतीय हितों को सुरक्षित भी किया जाए. भारत जैसे पड़ोसी देश के साथ सौहाद्रपूर्ण और सहयोगात्मक संबंध बना कर चलना भी मोहम्मद यूनुस की चुनौतियों में शुमार है. भारत शेख हसीना सरकार का ही साथ साझीदार रहा है- इस तरह की घिसीपिटी बातों को दरकिनार कर उनको भारत-बांग्लादेश के रिश्ते को मज़बूती से आगे बढ़ाना होगा.
बांग्लादेश में भारतीयों की सुरक्षा को सुनिश्चित करना, भारत विरोधी भावना भड़काने वालों और भारत विरोधी गतिविधियां चलाने वालों पर अंकुश लगाना यूनुस की ज़िम्मेदारी होगी. बिना चीन या पाकिस्तान जैसे किसी तीसरे देश के दबाव में आए भारत के निवेश और भारत-बांग्लादेश संयुक्त परियोजना पर आंच न आए ये भी उनको देखना होगा.
चुनौती नंबर 8
अमेरिका जैसे देश की उम्मीदों पर खरा उतरना, मानवाधिकार हनन आदि को रोकना होगा. यूं तो मोहम्मद यूनुस अमेरिका जैसे देश के पसंदीदा रहे हैं. लेकिन यूनुस को अमेरिका जैसे देशों की उम्मीदों पर भी खरा उतरना होगा. शेख हसीना के शासनकाल में मानवाधिकार उल्लंघनों को लेकर अमेरिका काफ़ी मुखर रहा. बदले की भावना के तौर पर मानवाधिकार उल्लंघन जैसी चीज़ों न हों यूनुस को ये सुनिश्चित करना होगा.
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