अमेरिका ने चीन की महात्वाकांक्षी ‘‘वन बेल्ट वन रोड'' (OBOR) परियोजना पर भारत के विरोध का समर्थन करते हुए कहा है कि वह इस पर नई दिल्ली की चिंताओं को साझा करता है. साथ ही, उसने (चीन की) इस पहल के पीछे मौजूद आर्थिक औचित्य पर भी सवाल उठाए हैं. भारत OBOR का विरोध करने वाला विश्व का एकमात्र बड़ा देश है. भारत ने अपनी क्षेत्रीय संप्रभुता को लेकर इस परियोजना का विरोध किया है.
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यह ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा' (CPEC) पकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है, जिसे भारत अपना हिस्सा मानता है. OBOR चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की महत्वाकांक्षी परियोजना है, जिसका मकसद एशियाई देशों,अफ्रीका ,चीन और यूरोप के बीच सड़क संपर्क को बेहतर करना है. दक्षिण और मध्य एशिया के लिए अमेरिका की प्रधान उप विदेश सहायक मंत्री एलिस वेल्स ने एक कार्यक्रम में कहा,‘‘ हम उन परियोजनाओं पर भारत की चिंता को साझा करते हैं, जिनका कोई आर्थिक आधार नहीं है और जिससे उसकी संप्रभुता पर प्रभाव पड़ेगा.''
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उन्होंने कहा कि श्रीलंका एकमात्र ऐसा देश नहीं है जिसने अपनी संप्रभुता छोड़ दी. कर्ज से दबे श्रीलंका ने चीन को 2017 में हंबनटोटा बंदरगाह 99 साल के पट्टे पर आधिकारिक तौर पर सौंप दिया. पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के अरब सागर तट पर ग्वादर बंदरगाह के निर्माण पर वेल्स ने कहा कि इससे भारत की चिंताएं बढ़ी है क्योंकि परियोजना का आर्थिक आधार स्पष्ट नहीं है.
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