पूरी दुनिया चीन के वन बेल्ट-वन रोड प्रोजेक्ट की चर्चा कर रही है. चीन एक नया सिल्क रूट बनाने जा रहा है. सिल्क रूट यानी सिल्क रोड वो ऐतिहासिक रास्ता रहा है, जिसके रास्ते सदियों तक व्यापार हुआ और जो एशिया के तमाम देशों से गुज़रता हुआ पूर्वी एशियाई देशों कोरिया और जापान तक को यूरोप से लगे भूमध्य सागर के आसपास के इलाकों तक जोड़ता था. ये रास्ता हमेशा से ही चीन की आर्थिक खुशहाली का ज़रिया बना रहा. इस रास्ते की अहमियत इतनी थी कि सवा दो हज़ार साल पहले चीन के हान सम्राट तक ने इस रास्ते की सुरक्षा के लिए भी चीन की दीवार का निर्माण किया था. इसी सिल्क रूट को नए रूप में तैयार करने के लिए चीन ने कमर कस ली है. इसके तहत एशिया के तमाम देशों में काम शुरू भी हो चुका है. कहीं पहाड़ों के नीचे सुरंगें खोदी जा रही हैं, कहीं बड़ी-बड़ी नदियों पर लंबे चौड़े पुल बन रहे हैं. कई लेन के हाइवे बन रहे हैं तो हज़ारों किलोमीटर लंबी रेल लाइन बिछ रही हैं. बड़े-बड़े पावर प्लांट बन रहे हैं और सैकड़ों किलोमीटर लंबी गैस पाइपलाइन बिछाई जा रही हैं. चीन का ये अब तक का सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है, जिसका बजट है दस खरब अमेरिकी डॉलर यानी सात सौ ख़रब रुपये... जो भारत की कुल अर्थव्यवस्था का क़रीब एक तिहाई है... इसी से आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि ये कितनी महत्वाकांक्षी और बड़ी परियोजना है.
14 मई और 15 मई को बीजिंग में इसका औपचारिक तौर पर श्रीगणेश भी हो गया. इसके उद्घाटन के मौके पर चीन समेत 29 देशों के राष्ट्रप्रमुख और 70 अन्य देशों के प्रतिनिधि मौजूद रहे. वन बेल्ट-वन रोड चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग का सपना है, जिसका मकसद बताया गया है एशियाई देशों के साथ चीन का संपर्क और सहयोग बेहतर करना और अफ्रीका व यूरोप को भी एशियाई देशों के साथ क़रीबी से जोड़ना.
इस प्रोजेक्ट के तहत ज़मीन और समुद्री रास्तों से व्यापार मार्गों को बेहतर बनाया जाएगा. कई हाईस्पीड रेल नेटवर्क होंगे, जो यूरोप तक जाएंगे. एशिया और अफ्रीका में कई बंदरगाहों से ये रूट गुज़रेगा और इसके रास्ते में कई फ्री ट्रेड ज़ोन आएंगे. चीन दुनिया के 65 देशों को एक-दूसरे के क़रीब लाएगा और दुनिया की दो तिहाई आबादी को अपनी अर्थव्यवस्था से सीधे जोड़ देगा.
अर्थशास्त्री इसे उस मार्शल प्लान की तर्ज पर देख रहे हैं, जिसने दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका को दुनिया की सुपर पावर बना दिया, लेकिन ये उससे भी बड़ा प्रोजेक्ट है. अगर कीमत के लिहाज़ से देखा जाए तो आज की क़ीमत के हिसाब से अमेरिका का मार्शल प्लान 130 अरब डॉलर का था, जबकि चीन का प्रोजेक्ट इससे कई गुना ज़्यादा बड़ा यानी दस ख़रब डॉलर का है.
शी चिनफिंग ने इसे प्रोजेक्ट ऑफ द सेंचुरी बताया है. एक ऐसी योजना जो उस खाली जगह को भरेगी जो ट्रंप के दौर में अमेरिका फर्स्ट की पॉलिसी के तहत अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से अमेरिका के पैर पीछे खींचने से बन गई है. चीन इसके ज़रिए दुनिया की अर्थव्यवस्था पर अपनी पकड़ और गहरी करने की कोशिश में है. ऐसे समय जब चीन में घरेलू मांग काफ़ी घटी है तो विकास की भूख पूरी करने के लिए उसे दूसरे देशों की ओर तेज़ी से बढ़ना ही होगा और ये प्रोजेक्ट उसके लिए बहुत मददगार साबित हो सकता है. चीन वन बेल्ट-वन रोड के ज़रिए अपने सस्ते और बेहतर उत्पादों को दुनिया के बाज़ारों तक आसानी से पहुंचा पाएगा. उसका लक्ष्य है अगले एक दशक में अपना व्यापार ढाई ख़रब डॉलर और बढ़ा देना. एक तरह से चीन अपने आर्थिक साम्राज्य को ऐसे बढ़ाने जा रहा है जैसा पहले कभी देखा या सुना नहीं गया... लेकिन भारत के लिहाज़ से सबसे ख़ास बात ये है कि भारत इसका हिस्सा नहीं बन रहा... दक्षिण एशिया में भारत और भूटान अकेले देश रह गए हैं जो इसमें शामिल नहीं हुए. भूटान के साथ तो चीन के राजनयिक संबंध भी नहीं हैं, लेकिन भारत इससे क्यों नहीं जुड़ा... भारत ने इसकी वजह साफ़ कर दी है. उसका कहना है कि ये प्रोजेक्ट उसकी संप्रभुता का उल्लंघन करता है...
भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस मुद्दे पर बयान जारी कर कहा है कि कोई भी देश ऐसे प्रोजेक्ट को स्वीकार नहीं कर सकता जो संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की उसकी चिंताओं को नकारता हो.
दरअसल, वन बेल्ट-वन रोड उस चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरिडोर यानी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे से गुज़रता है, जो पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर में पड़ता है. भारत इसे अपना हिस्सा मानता है और इस इलाके में आर्थिक गतिविधियों में चीन के शामिल होने पर ऐतराज़ जताता रहा है. इस इलाके में बुनियादी ढांचे को बेहतर करने के लिए चीन अब तक 46 अरब डॉलर का निवेश भी कर चुका है, जिस पर भारत लगातार ऐतराज़ जताता रहा है.
सवाल ये है कि क्या वन बेल्ट-वन रोड प्रोजेक्ट से बाहर होने से भारत को नुकसान होगा... क्या भारत दुनिया की अर्थव्यवस्था में अलग-थलग पड़ जाएगा. कई जानकार मानते हैं कि ऐसा नहीं है. दुनिया की अर्थव्यवस्था में भारत के अकेले पड़ने का ख़तरा नहीं है, क्योंकि भारत एक ऐसी बड़ा आर्थिक और राजनीतिक ताकत है, जिसे कोई दूसरी ताकत अलग-थलग नहीं कर सकती. अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार सी राजामोहन इंडियन एक्सप्रेस में लिखते हैं कि भारत का एक अहम भौगोलिक स्थान है, जहां से वो चीन के बेल्ट और रोड मुहिम में अहम भूमिका भी निभा सकता है और उसके लिए दिक्कत भी पैदा कर सकता है.
लेकिन भारत की असली चुनौती है क्षेत्रीय अखंडता के अपने दावों को ज़मीन पर भी साबित करने की. बेल्ट रोड मुहिम पर भारत की दलीलों का एक और असर वो बताते हैं. उनका कहना है कि इससे भारत, पाकिस्तान और चीन के संदर्भ में जम्मू-कश्मीर का मुद्दा केंद्र में आ गया है. इस मुद्दे को हमेशा भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय मुद्दे के तौर पर ही देखा जाता रहा, लेकिन चीन हमेशा से इसमें भी एक भूमिका निभाता रहा है. दरअसल, सच्चाई ये है कि चीन कश्मीर में तीसरी ताक़त है.
लद्दाख के एक बड़े इलाके पर चीन का कब्ज़ा है. उसके पश्चिम में पाकिस्तान ने अपने कब्ज़े का एक बड़ा हिस्सा 1962 की भारत-चीन लड़ाई के बाद चीन के सुपुर्द कर दिया है. कराकोरम हाइवे कश्मीर में चीन का पहला trans-border infrastructure project है जो साठ के दशक का है. तब से ही पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर में चीन का दखल बढ़ता गया है. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर के साथ जुड़ने से कश्मीर विवाद में चीन की भूमिका और बढ़ गई है.
This Article is From May 16, 2017
प्राइम टाइम इंट्रो : क्या वन बेल्ट-वन रोड प्रोजेक्ट से बाहर होने से भारत को नुकसान होगा?
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:मई 16, 2017 21:56 pm IST
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Published On मई 16, 2017 21:55 pm IST
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Last Updated On मई 16, 2017 21:56 pm IST
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