डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर ग्रीनलैंड को लेकर सुर्खियों में हैं. इस बार उनकी बातों में ग्रीनलैंड पर अमेरिका के कब्जे की संभावना की बात हो रही है, शायद बलपूर्वक या आर्थिक दबाव के जरिए. यह किसी बड़ी कल्पना के सीन की तरह लग सकता है, लेकिन इतिहास गवाह है कि अमेरिका ने अतीत में ऐसा किया है. 1867 में अमेरिका ने रूस से अलास्का खरीदा था. सिर्फ 7.2 मिलियन डॉलर में रूस ने अमेरिका को अलास्का बेच दिया! पर क्या आप जानते हैं कि ये सौदा सिर्फ एक 'डील' नहीं थी? इसमें राजनीति, शक्ति का संतुलन और एक देश की महत्वाकांक्षा की कहानी छिपी हुई है. ये कहानी है रूस की बेचैनी, अमेरिका की चालाकी और अलास्का के लोगों के संघर्ष की. आइए, आपको 1867 के उस ऐतिहासिक दिन तक लेकर चलते हैं, जब 'सिवार्ड्स फॉली' नाम की ये डील हुई थी.
रूस का फैसला – 'अलास्का बेचना ही सही!'
रूसी साम्राज्य फर के व्यापार, रूढ़िवादी ईसाई धर्म के प्रसार और नए इलाकों से मिलने वाले टैक्स और संसाधनों के लालच में साइबेरिया तक पहुंच गया. 18वीं सदी में, पीटर द ग्रेट ने, जिसने रूस की पहली नौसेना बनाई थी, ये जानने की कोशिश की, कि एशियाई भूभाग पूर्व में कितनी दूर तक फैला हुआ है. रूस के पूर्वी हिस्से में एक नई जमीन खोजी गई – अलास्का. साल 1741 में, विटस बेरिंग नाम के रूसी नाविक ने अपनी जहाज़ी यात्रा के दौरान इस क्षेत्र को खोजा. ये इलाका अपने ऊबड़-खाबड़ पहाड़ों, घने जंगलों, और बर्फीली घाटियों के लिए जाना गया. रूस ने इसे तुरंत अपनी संपत्ति घोषित कर दिया, क्यों? क्योंकि अलास्का के प्राकृतिक संसाधनों का कोई मुकाबला नहीं था. फर की बात करें, तो वो उस समय का 'सफेद सोना' कहलाता था. समुद्री ऊदबिलाव (Sea Otters) की खालें इतनी महंगी बिकती थीं कि रूस के व्यापारियों ने इसे सोने की तरह बेचा. रूस ने अलास्का के तटों पर छोटे-छोटे कॉलोनियां बसानी शुरू कर दीं, लेकिन इस सबके बीच, रूस ने वहां के मूल निवासियों – इनुइट और अन्य समुदायों – को नज़रअंदाज़ कर दिया. उनके संसाधन छीन लिए गए, और उनकी पारंपरिक ज़िंदगी पर असर पड़ा. अब कहानी मोड़ लेती है. 19वीं सदी तक, रूस के लिए अलास्का संभालना मुश्किल होने लगा. क्यों?
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इसके तीन कारण थे:
- भौगोलिक दूरी : रूस और अलास्का के बीच हजारों किलोमीटर का फासला था. उस समय की तकनीक के हिसाब से इतनी दूर के इलाके को नियंत्रित करना रूस के लिए महंगा और मुश्किल था.
- फर व्यापार की गिरावट : समुद्री ऊदबिलाव का शिकार इतनी तेजी से हुआ कि उनकी संख्या घटने लगी. फर व्यापार, जो रूस की कमाई का मुख्य स्रोत था, ठप होने लगा.
- राजनीतिक तनाव: 1853 से 1856 के बीच रूस ने क्राइमिया युद्ध लड़ा. इस युद्ध ने रूस की आर्थिक स्थिति को हिला कर रख दिया. खजाना खाली हो गया. सेना कमजोर हो गई और रूस को लगा कि अब उसे ऐसे इलाकों से पीछा छुड़ाना होगा, जिनका इस्तेमाल करना मुश्किल हो.
अब कहानी में आगे बढ़ते हैं. अलास्का पर ब्रिटेन की भी नजर थी. ब्रिटेन उस समय कनाडा पर शासन कर रहा था और अगर रूस कमजोर पड़ता, तो ब्रिटेन अलास्का पर कब्जा कर सकता था. रूस ने सोचा – 'दुश्मन के हाथ ये इलाका जाने से बेहतर है, इसे बेच दिया जाए.' पर बेचें तो किसे? ग्रेट ब्रिटेन को बेचना सीधा अपने दुश्मन को ताकतवर बनाने जैसा था. ऐसे में रूस ने अपने एक संभावित साथी, अमेरिका की तरफ देखा. 1860 के दशक तक, रूस ने अमेरिका से संपर्क करना शुरू किया. उस वक्त अमेरिका अपनी सीमाएं बढ़ाने के सपने देख रहा था. रूस ने अमेरिका को अलास्का बेचने का प्रस्ताव दिया, लेकिन ये सब इतनी आसानी से नहीं हुआ. रूस के इस फैसले के पीछे एक रणनीति थी. उन्हें पता था कि अमेरिका और ब्रिटेन के बीच पहले से तनाव था. अगर अमेरिका अलास्का ले लेता, तो रूस को एक आर्थिक राहत तो मिलेगी ही, साथ ही ब्रिटेन को कमजोर करने का अप्रत्यक्ष मौका भी मिलेगा. अब सोचिए, एक तरफ रूस को आर्थिक संकट से जूझना था और दूसरी तरफ उसने एक चालाकी भरा फैसला लिया. अलास्का, जो कभी उसका सबसे बड़ा व्यापारिक क्षेत्र था, अब उसके लिए बोझ बन गया था.
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तो ये था वो किस्सा जब रूस ने सोचा – 'अलास्का बेचना ही सही!' लेकिन ये सौदा कैसे हुआ? अमेरिकी नेता विलियम एच. सिवार्ड ने इसे कैसे खींचा और इसे 'मूर्खता' क्यों कहा गया? चलिए ये भी जानते हैं.
अमेरिका का सपना – 'अलास्का हमारा हो!'
अब कहानी में आता है ट्विस्ट! रूस ने अलास्का बेचने का इरादा तो कर लिया, पर सवाल था कि अमेरिका इसे खरीदेगा कैसे? उस वक्त अमेरिका में ज्यादातर लोग सोच भी नहीं सकते थे कि इतने ठंडे, बर्फ से ढके इलाके का क्या करेंगे. लेकिन, अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट, विलियम एच. सिवार्ड (William H. Seward) का सपना बड़ा था. सिवार्ड ने सोचा, 'अलास्का सिर्फ बर्फ नहीं है. ये अमेरिका के भविष्य के लिए बेहद अहम हो सकता है.' उन्होंने रूस के इस ऑफर को गंभीरता से लिया, पर बात इतनी आसान नहीं थी. उस समय अमेरिका गृहयुद्ध से बाहर आया ही था. देश की आर्थिक हालत खस्ता थी और जनता को यह सौदा पूरी तरह बेकार लग रहा था, लेकिन सिवार्ड हार मानने वालों में से नहीं थे. उन्होंने रूस के राजदूत एडुअर्ड डी स्टोकल से बातचीत शुरू की.
रूस ने 1867 में प्रस्ताव रखा – 7.2 मिलियन डॉलर में अलास्का ले लो. अब ये रकम सुनकर सोचिए, आज के हिसाब से यह लगभग 12 करोड़ डॉलर बनती है. कहानी दिलचस्प तब हो जाती है जब 30 मार्च 1867 की आधी रात को ये ऐतिहासिक सौदा पक्का हुआ. हां, आप सही सुन रहे हैं – आधी रात! सिवार्ड और रूस के राजदूत स्टोकल के बीच घंटों बातचीत चली. आखिरकार, 'ट्रीटी ऑफ सेशन' पर दस्तखत हुए और अमेरिका ने अलास्का खरीद लिया, लेकिन मजा तो अब शुरू होता है. जब ये खबर अमेरिका की जनता तक पहुंची, तो हंगामा मच गया. अखबारों में इसे 'Seward's Folly' (सिवार्ड की मूर्खता) और 'Icebox Deal' (बर्फ का डिब्बा) कहा गया, लोग मजाक उड़ाने लगे. सवाल पूछे गए: 'अरे, इस बर्फीली जमीन का क्या करेंगे?', 'क्या वहां सिर्फ पोलर बीयर और सील्स पालेंगे?' कांग्रेस में भी बहस हुई. कई सांसदों ने इसे बर्बादी का सौदा बताया, लेकिन सिवार्ड अडिग थे. उनका मानना था कि यह जमीन अमेरिका के लिए वरदान साबित होगी.
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31 मार्च 1867 को अलास्का आधिकारिक तौर पर अमेरिका का हिस्सा बन गया. लेकिन उस समय किसी को अंदाजा नहीं था कि यह बर्फीली जमीन, प्राकृतिक संसाधनों का खजाना है. 1896 में अलास्का में सोने की खोज हुई. क्लोंडाइक गोल्ड रश ने इसे पूरी दुनिया के लिए चर्चा का विषय बना दिया. बाद में पता चला कि अलास्का में तेल और प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार हैं. यह क्षेत्र अमेरिका की रक्षा और व्यापार के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण साबित हुआ. सालों बाद, जब अलास्का ने अमेरिका की अर्थव्यवस्था में योगदान देना शुरू किया, तब वही लोग, जो सिवार्ड को मूर्ख कहते थे, उनकी तारीफ करने लगे. आज, अलास्का सिर्फ अमेरिका का सबसे बड़ा राज्य ही नहीं, बल्कि सबसे समृद्ध क्षेत्रों में से एक है.
ये था वो किस्सा, जब सिवार्ड की 'मूर्खता' इतिहास में दूरदर्शिता बन गई, लेकिन सवाल ये है – अलास्का के साथ कनाडा का क्या हुआ? सीमा विवाद ने कैसे तूल पकड़ा? चलिए, अब ये जानते हैं!
कनाडा और अलास्का का बॉर्डर विवाद
अब तक की कहानी तो आपने समझ ही ली – रूस ने अलास्का बेच दिया और सिवार्ड ने इसे अमेरिका की झोली में डाल दिया, लेकिन असली हंगामा अब शुरू होता है, क्योंकि जैसे ही अलास्का का अमेरिका का हिस्सा बनना तय हुआ, कनाडा और अमेरिका के बीच नक्शे की लड़ाई छिड़ गई. अलास्का और कनाडा के बीच एक लंबा बॉर्डर है, लेकिन 1867 में उस बॉर्डर की सटीक जगह तय नहीं थी. ज़मीन का एक बड़ा हिस्सा खाली पड़ा था और नक्शों में हर कोई अपनी-अपनी दावेदारी कर रहा था. कनाडा ने कहा, "अरे भाई, ये जमीन तो हमारी है! ये तो हमारे इलाकों के पास पड़ती है." अमेरिका ने पलटकर जवाब दिया, "हमने अलास्का खरीदा है, और ये इलाका अब हमारा है. तुम अपनी हद में रहो!"
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मामला था 'Alaskan Panhandle' का – यानी वह पतला सा इलाका जो अलास्का को कनाडा से अलग करता है. यहां बड़े-बड़े पहाड़, गहरी घाटियां, और समंदर के किनारे बसे गांव थे. ये इलाका बेहद रणनीतिक और आर्थिक रूप से अहम था. कनाडा ने दावा किया कि बॉर्डर को समंदर के किनारे तक आना चाहिए. अमेरिका बोला, "नहीं, बॉर्डर पहाड़ों के ऊपर से गुजरेगा!" अब ये विवाद चलता रहा. कनाडा को गुस्सा था कि उनकी सीमा इतनी सटीक क्यों नहीं है और अमेरिका को यह यकीन था कि अलास्का के साथ यह इलाका भी उनकी मिल्कियत है. कई बार दोनों पक्षों ने बातचीत की कोशिश की, लेकिन हर बार बात अटक जाती. कनाडा और अमेरिका के बीच इस विवाद ने लगभग 30 साल तक तनाव बनाए रखा.
आखिरकार, 1903 में यह मामला 'Alaskan Boundary Tribunal' के पास गया. इसमें छह लोग शामिल थे – तीन अमेरिका से, दो कनाडा से, और एक ब्रिटेन से. कनाडा को लगा था कि ब्रिटेन उनका समर्थन करेगा, लेकिन यहां कहानी ने फिर मोड़ लिया. ब्रिटेन ने अमेरिका का साथ दिया. अमेरिका का तर्क था कि रूस के पुराने नक्शे और समझौते उनकी दावेदारी को सही ठहराते हैं. ब्रिटेन ने भी इसे मान लिया. नतीजा – विवादित क्षेत्र अमेरिका को मिल गया. अब सोचिए, कनाडा की हालत क्या होगी? उनके लिए यह फैसला मानना बहुत मुश्किल था. कनाडा को लगा कि ब्रिटेन ने उन्हें धोखा दिया. उस वक्त कनाडा पूरी तरह स्वतंत्र देश नहीं था और ब्रिटेन के अधीन था. कनाडा के लोग यह कहने लगे, "अरे, हमें हमारी जमीन चाहिए थी, लेकिन ब्रिटेन ने हमें बेच दिया!"
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इस फैसले के बाद, अलास्का और कनाडा के बीच 1,538 मील लंबी सीमा तय हुई. यह दुनिया की सबसे लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमाओं में से एक है. आज यह सीमा एक शांतिपूर्ण रिश्ते की मिसाल है, लेकिन उस वक्त यह विवाद दोनों देशों के बीच तनाव का बड़ा कारण बना था. दुनिया के नक्शे में हर लाइन के पीछे एक कहानी होती है. अलास्का और कनाडा के बीच खिंची इस लाइन के पीछे 30 साल का तनाव, बातचीत, और गुस्सा छिपा है, लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती. अगला सवाल यह है – आखिर अलास्का का इतना महत्व क्यों है? वो क्या चीज़ है जो इसे अमेरिका के लिए इतना खास बनाती है? चलिए, अब जानते हैं अलास्का के अनमोल खजाने का किस्सा!
अलास्का का अनमोल खज़ाना
अब तक हमने जाना कि कैसे अलास्का रूस के हाथ से फिसला, अमेरिका के हाथ आया, और फिर कनाडा के साथ नक्शों पर तकरार मची. लेकिन अब असली सवाल उठता है – आखिर अलास्का इतना खास क्यों है? क्यों रूस इसे "बेकार बर्फीली ज़मीन" मानकर बेच बैठा, और अमेरिका ने इसे "खजाना" समझकर झट से खरीद लिया? अलास्का सिर्फ बर्फ की जमीन नहीं है. ये एक ऐसा इलाका है जो प्राकृतिक संसाधनों से भरा पड़ा है. 19वीं सदी में जब सोने की खोज शुरू हुई, तो अलास्का ने अमीरों के सपने पूरे कर दिए. अलास्का के पास अमेरिका के सबसे बड़े तेल और गैस के भंडार हैं. आज भी ये देश की ऊर्जा जरूरतों में बड़ी भूमिका निभाता है. अलास्का के समुद्रों में मछलियों की इतनी भरमार है कि यहां की फिशिंग इंडस्ट्री दुनिया भर में मशहूर है. अलास्का के घने जंगलों में अनगिनत पेड़ हैं, जो लकड़ी के लिए अमूल्य हैं.
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अब सुनिए सोने की खोज का किस्सा. 1896 में, 'Klondike Gold Rush' नाम की सोने की होड़ ने अलास्का को सुर्खियों में ला दिया. हजारों लोग इस बर्फीली जमीन पर भागे-भागे आए, बस एक ही उम्मीद में – "सोना मिलेगा, अमीर बनेंगे!" कई लोग तो इस ख्वाब में अपनी पूरी जमा पूंजी खर्च करके यहां पहुंचे. लेकिन हकीकत यह थी कि सोने की तलाश आसान नहीं थी. बर्फीले पहाड़, जानलेवा ठंड, और भूख-प्यास से जूझते हजारों लोग, इन सबके बावजूद उन्होंने यहां सोने की चमक ढूंढ ही ली.
1950 के दशक में, अलास्का ने एक और बड़ा रहस्य खोला – तेल के विशाल भंडार. जब प्रूडो बे (Prudhoe Bay) में तेल का सबसे बड़ा भंडार खोजा गया, तो अमेरिका की ऊर्जा क्रांति को जैसे पंख लग गए. अलास्का से मिलने वाला तेल न केवल देश की जरूरतों को पूरा करता है, बल्कि इसे एक्सपोर्ट भी किया जाता है. यहीं से अमेरिका को समझ में आया कि 1867 में खरीदा गया ये इलाका उनके लिए "बर्फ का ताज" है.
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अगर आप सोच रहे हैं कि अलास्का सिर्फ तेल और सोने के लिए खास है, तो ऐसा नहीं है. यहां की प्राकृतिक सुंदरता भी किसी खजाने से कम नहीं है. अलास्का में हजारों ग्लेशियर हैं, जिनमें से कई तो पूरे शहर जितने बड़े हैं. यहां की रातें आपको वो अद्भुत रोशनी दिखाती हैं, जिसे देखने दुनिया भर के लोग खिंचे चले आते हैं. यहां के जंगलों में भालू, भेड़िए, और मूस जैसे जानवर घूमते हैं. यह जंगली जीवन फोटोग्राफी के दीवानों के लिए स्वर्ग है. इसीलिए अमेरिका ने इस "बर्फीले इलाके" को इतने शौक से खरीदा था. रूस ने इसे अपनी गलती समझकर छोड़ दिया, लेकिन अमेरिका ने इसे अपने भविष्य का हिस्सा बना लिया.
अलास्का के मूल निवासी और उनकी दास्तां
लेकिन रूस और अमेरिका इस सौदे का दूसरा पहलू भी है. अलास्का में पहले से रह रहे मूल निवासी – इनुइट, युपिक, अथाबास्कन और अन्य समुदाय – को इस डील में किसी ने पूछा तक नहीं. जब रूस आया, तो उसने इनके प्राकृतिक संसाधन छीन लिए और जब अमेरिका ने अलास्का खरीदा, तो इन लोगों को नागरिकता तक पाने में दशकों लग गए. 1971 में जाकर अमेरिकी सरकार ने इन्हें 44 मिलियन एकड़ जमीन और 1 बिलियन डॉलर का मुआवजा दिया, लेकिन उनकी संस्कृति और परंपराओं को जो नुकसान हुआ, उसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती.
ये थी अलास्का की कहानी – एक ऐसी डील, जो शुरुआत में बेवकूफी लगती थी, लेकिन समय ने साबित किया कि ये अमेरिका का सबसे बड़ा दांव था.
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