उत्तराखंड में जंगलों में आग लगने के मामलों में नैनीताल हाईकोर्ट के आदेशों पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है.
- आदेश के मुताबिक वन अधिकारी आग रोकने में विफल रहें तो सस्पेंड
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर अच्छे आदेश को सरकार चुनौती देती है
- सरकार ने कहा, आग लगने के लिए वन अधिकारी कैसे जिम्मेदार?
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नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के जंगलों तथा पहाड़ों पर लगने वाली भीषण आग को रोकने के लिए नैनीताल हाईकोर्ट द्वारी जारी आदेशों पर रोक लगा दी है. इसमें यह आदेश भी शमिल है कि वन अधिकारी आग रोकने में विफल रहेंगे तो उन्हें सस्पेंड मान लिया जाएगा. हालांकि यह रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह आदेश तो अच्छा है लेकिन हर अच्छे आदेश को सरकार चुनौती देती है. गौरतलब है कि जंगलों में आग गर्मियों में 15 फरवरी से 15 जून के बीच लगती है.
सरकार की ओर से वकील एडीएन राव ने कहा कि आग लगने के लिए वन अधिकारी कैसे जिम्मेदार हो सकते हैं ? उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट आदेश था कि यदि 24 घंटे के अंदर आग पर काबू नहीं पाया गया तो डीएफओ को निलंबित मान लिया जाएगा और यदि आग 48 घंटे तक जारी रहती है तो वन सरंक्षक को निलंबित मान लिया जाएगा. इतना ही नहीं यदि आग फिर भी नहीं बुझती और 72 घंटे तक जारी रहती है तो इसके लिए प्रमुख वन संरक्षक को निलंबित कर दिया जाएगा और आग को न रोकने पर उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू कर दी जाएगी.
राज्य सरकार ने कहा कि आदेश मनमाना और अतार्किक है तथा इसमें वन सेवा के नियमों की अनभिज्ञता है. उन्होंने कहा कि डीएफओ तथा उनसे वरिष्ठ अधिकारी आल इंडिया सेवा के लोग होते हैं, उन्हें राज्य सरकार निलंबित नहीं कर सकती. सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश पर सवाल उठाते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने जिम कार्बेट पार्क के चारों और पत्थरों की दीवार बनाने और जंगलों में आग की सूचना देने के लिए लिए 10,000 अग्नि प्रहरियों की भर्ती करने के आदेश दिए हैं. जबकि पार्क का क्षेत्र 1288 वर्ग किमी है. पहले तो इतनी बड़ी दीवार बनाना संभव नहीं है. यदि 400 करोड़ रुपये खर्च करके बना भी दी गई तो यह जंगल को चिड़ियाघर या सफारी में तब्दील कर देगा जिससे जैव विविधता पर असर पड़ेगा. वहीं हर साल 10 फीसदी खर्च उसके रखरखाव पर होगा.
सरकार ने दलील दी कि अग्निसूचकों की भर्ती से राज्य पर 40 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा. सरकार जरूरत के हिसाब से अग्नि प्रहरियों को नियुक्त करती है और उन्हें स्थाई रूप से भर्ती करना सही नहीं है. सरकार ने वन्यकर्मियों की संख्या में काफी बढ़ोतरी की है लेकिन हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि इनकी संख्या में 30 फीसदी की वृद्धि की जाए जो एकदम संभव नहीं है. सरकार का दावा है कि हाईकोर्ट ने बिना उनकी सुनवाई किए 10 नवंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया और 19 दिसंबर 2016 को फैसला सुना दिया.
सरकार की ओर से वकील एडीएन राव ने कहा कि आग लगने के लिए वन अधिकारी कैसे जिम्मेदार हो सकते हैं ? उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट आदेश था कि यदि 24 घंटे के अंदर आग पर काबू नहीं पाया गया तो डीएफओ को निलंबित मान लिया जाएगा और यदि आग 48 घंटे तक जारी रहती है तो वन सरंक्षक को निलंबित मान लिया जाएगा. इतना ही नहीं यदि आग फिर भी नहीं बुझती और 72 घंटे तक जारी रहती है तो इसके लिए प्रमुख वन संरक्षक को निलंबित कर दिया जाएगा और आग को न रोकने पर उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू कर दी जाएगी.
राज्य सरकार ने कहा कि आदेश मनमाना और अतार्किक है तथा इसमें वन सेवा के नियमों की अनभिज्ञता है. उन्होंने कहा कि डीएफओ तथा उनसे वरिष्ठ अधिकारी आल इंडिया सेवा के लोग होते हैं, उन्हें राज्य सरकार निलंबित नहीं कर सकती. सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश पर सवाल उठाते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने जिम कार्बेट पार्क के चारों और पत्थरों की दीवार बनाने और जंगलों में आग की सूचना देने के लिए लिए 10,000 अग्नि प्रहरियों की भर्ती करने के आदेश दिए हैं. जबकि पार्क का क्षेत्र 1288 वर्ग किमी है. पहले तो इतनी बड़ी दीवार बनाना संभव नहीं है. यदि 400 करोड़ रुपये खर्च करके बना भी दी गई तो यह जंगल को चिड़ियाघर या सफारी में तब्दील कर देगा जिससे जैव विविधता पर असर पड़ेगा. वहीं हर साल 10 फीसदी खर्च उसके रखरखाव पर होगा.
सरकार ने दलील दी कि अग्निसूचकों की भर्ती से राज्य पर 40 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा. सरकार जरूरत के हिसाब से अग्नि प्रहरियों को नियुक्त करती है और उन्हें स्थाई रूप से भर्ती करना सही नहीं है. सरकार ने वन्यकर्मियों की संख्या में काफी बढ़ोतरी की है लेकिन हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि इनकी संख्या में 30 फीसदी की वृद्धि की जाए जो एकदम संभव नहीं है. सरकार का दावा है कि हाईकोर्ट ने बिना उनकी सुनवाई किए 10 नवंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया और 19 दिसंबर 2016 को फैसला सुना दिया.
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