- सहारनपुर जिले के मिरगपुर गांव में पिछले सात सौ सालों से शराब, सिगरेट और तंबाकू का उपयोग वर्जित है
- मिरगपुर की यह नशामुक्त परंपरा बाबा फकीरा दास द्वारा शुरू की गई थी और आज तक बीस पीढ़ियां इसे निभा रही हैं
- गांव की लगभग 50 दुकानों में नशीले पदार्थों की बिक्री नहीं होती, यहां का वातावरण पूरी तरह नशामुक्त बना हुआ है
जहां एक ओर देश के कई हिस्सों में शराबबंदी एक बड़ा चुनावी मुद्दा है, वहीं उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले का एक गांव मिरगपुर पिछले 700 सालों से नशे से कोसों दूर है. इस गांव की परंपरा इतनी अनूठी है कि यहां न सिर्फ़ शराब, सिगरेट या तंबाकू, बल्कि लहसुन और प्याज तक का इस्तेमाल वर्जित है. इस असाधारण निष्ठा ने गांव को गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में जगह दिलाई है.
नशामुक्ति का 700 साल पुराना आशीर्वाद
मिरगपुर गाँव की यह परंपरा करीब 700 साल पहले शुरू हुई, जब बाबा फकीरा दास यहां आए थे. महंत कालू दास, पुजारी मिरगपुर, बताते हैं, "हमारे यहां 700 साल से कोई नशा नहीं करता. लहसुन-प्याज तक वर्जित है. बाबा फकीरा दास ने यही परंपरा दी थी, जो आज भी चल रही है." बाबा फकीरा दास ने पांच भाइयों के परिवार को नशामुक्त जीवन का आशीर्वाद दिया था, और तब से लेकर आज तक, 20 पीढ़ियां इस परंपरा को निभा रही हैं.

दुकानों पर नहीं बिकता कोई नशीला पदार्थ
मिरगपुर गांव की आबादी अब 10 हज़ार से ज़्यादा हो चुकी है, लेकिन यहां की जीवनशैली में कोई बदलाव नहीं आया है. गांव में करीब 50 दुकानें हैं, लेकिन किसी पर भी नशीला पदार्थ नहीं बिकता. जय कुमार, दुकानदार मिरगपुर, बताते हैं, "हमारी किसी दुकान पर न बीड़ी मिलती है, न सिगरेट. जो यहां पहली बार आता है, उसे पहले दिन ही पता चल जाता है कि ये गांव नशामुक्त है."
युवा पीढ़ी भी निभा रही है परंपरा
इस गांव के सबसे खास बात यह है कि युवा पीढ़ी भी अपने बुज़ुर्गों की इस सीख को पूरी ईमानदारी से निभा रही है. सुखपाल, निवासी मिरगपुर, कहते हैं, "हमारे बुज़ुर्गों ने जो नियम बनाए, हम उसी को निभा रहे हैं. किसी को नशे में नहीं देखा यहां." यहां के नौजवान शहरों में जाकर भी नशे से दूर रहते हैं, जो इस परंपरा के गहरे संस्कारों को दर्शाता है.

लहसुन-प्याज के बिना भी स्वादिष्ट भोजन
सिर्फ नशा ही नहीं, गांव की महिलाओं ने भी दशकों से लहसुन और प्याज को हाथ नहीं लगाया है. राजकली (100 वर्ष), निवासी मिरगपुर, बताती हैं, "75 साल पहले शादी हुई थी, तब से लहसुन-प्याज नहीं खाया. अब तो उसके बिना भी स्वाद लगता है." पाली देवी, निवासी मिरगपुर, कहती हैं, "हमारे गांव में बिना लहसुन-प्याज के ही सब्ज़ियां बनती हैं, और बहुत स्वादिष्ट भी होती हैं." यह कोई पंचायत का आदेश नहीं, बल्कि एक गहरी परंपरा है जो हर घर और हर बच्चे के संस्कार में बसी है. गांव का हर घर नशामुक्त जीवन का प्रतीक बन चुका है.
मिरगपुर: नशामुक्त भारत की मिसाल
मिरगपुर गांव की इस अद्भुत निष्ठा और 700 साल पुरानी परंपरा ने ही इसे गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में जगह दिलाई है. मनोहर दास महंत के अनुसार, "ये गांव देश के लिए मिसाल है. अगर हर गांव ऐसा बन जाए, तो नशा खुद ही मिट जाएगा."
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