उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं को महाकुंभ की नव्यता, दिव्यता और भव्यता का अहसास कराने की तैयारी में जुटी है. इसी सिलसिले में योगी सरकार ने बड़ा फैसला लिया है. महाकुंभ 2025 को देखते हुए नए जनपद की घोषणा कर दी गई. ऐसे में नया जनपद (जिला) 'महाकुंभ मेला जनपद' नाम से जाना जाएगा. राजस्व ग्रामों और संगम स्थित सम्पूर्ण परेड क्षेत्र का क्षेत्रफल 'महाकुंभ मेला जनपद व मेला क्षेत्र में शामिल होगा.
महाकुंभ मेला जनपद व मेला क्षेत्र में मेलाधिकारी, कुम्भ मेला, प्रयागराज को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा-14 (1) व अन्य सुसंगत धाराओं के अर्न्तगत एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट, जिलाधिकारी एवं अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट नियुक्त किया गया है.
महाकुंभ मेला जनपद में शामिल प्रयागराज जनपद के राजस्व ग्राम (तहसील सदर, सोरांव, फूलपुर और करछना) और सम्पूर्ण परेड क्षेत्र होगा. चार तहसील में कुल 67 क्षेत्र शामिल किए गए हैं.
चार जगहों पर लगने वाले महाकुंभ में सबसे ज्यादा महत्व प्रयागराज को दिए जाने पर उन्होंने कहा है कि जिन चार जगहों पर अमृत कलश छलका, वहां महाकुंभ शुरू हुआ. प्रयागराज की खास बात यह है कि यहां पर जमीन पर्याप्त है और यहां तीन प्रमुख नदियों का संगम होता है. जिसे त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है. उत्तर प्रदेश की धरती पावन है, यहां पर भगवान के अवतार ने जन्म लिया.
महाकुंभ से जुड़ी ये है धार्मिक मान्यता
मान्यता है कि प्राचीन समय में देवों और असुरों के बीच युद्ध हुआ था, इस दौरान समुद्र मंथन से अमृत कलश प्राप्त हुआ था. देवताओं और राक्षसों ने समुद्र मंथन और उससे निकले सभी रत्नों को आपस में बांटने का फैसला किया. समुद्र मंथन में जो सबसे मूल्यवान रत्न निकला, वह अमृत था. ऐसे में उसे पाने के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच लड़ाई हुई. असुरों से अमृत को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने वह पात्र अपने वाहन गरुड़ को दे दिया. असुरों ने जब गरुड़ से वह पात्र छीनने का प्रयास किया, तो उस पात्र मे से अमृत की कुछ बूंदें छलक कर इलाहाबाद, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में गिरीं. यहीं कारण है कि तभी से हर 12 साल के अंतराल पर इन स्थानों पर महाकुंभ मेला आयोजित किया जाता है.
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