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जघन्य अपराध में नाबालिग के खिलाफ बालिग की तरह मुकदमा कैसे चले, हाईकोर्ट ने बता दिया

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग के खिलाफ नृशंस मामलों में मुकदमा चलाने का तरीका क्या होगा, इसके बारे में आदेश दे दिया है.

जघन्य अपराध में नाबालिग के खिलाफ बालिग की तरह मुकदमा कैसे चले, हाईकोर्ट ने बता दिया
प्रयागराज:

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने किशोर न्याय एक्ट (Juvenile Justice act) से जुड़े मामले पर सुनवाई करते हुए अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board) और जुवेनाइल कोर्ट के उन आदेशों को रद्द कर दिया है जिसमें एक 17 साल के किशोर पर हत्या सहित जघन्य अपराधों के लिए बालिग (Adult) के रूप में मुकदमा चलाने का निर्देश दिया गया था. कोर्ट ने किशोरों के प्रारंभिक मूल्यांकन (Preliminary Assessment) के मनमाने तरीके का हवाला देते हुए उत्तर प्रदेश के सभी जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड और बाल न्यायालयों के लिए 11 अनिवार्य गाइडलाइंस जारी की है जिनका पालन तब तक करना होगा जब तक कि विधायिका अपने स्वयं की गाइडलाइंस तैयार नहीं कर लेती.

हाईकोर्ट ने बताया आईक्यू टेस्ट जरूरी 

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि जघन्य अपराधों (Heinous Crime) में किशोर पर बालिग की तरह मुकदमा चलाने के लिए आईक्यू और ईक्यू टेस्ट भी कराया जाना जरूरी है. इसके साथ ही कोर्ट ने अपराध के मामले में बच्चों की उम्र निर्धारण के लिए ''प्रारंभिक मूल्यांकन'' के लिए विस्तृत और अनिवार्य दिशानिर्देश जारी किए है. कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किशोर न्याय बोर्ड (JJ Board) किसी बच्चे को बालिग (वयस्क) की तरह मुकदमा चलाने के लिए केवल आंतरिक भावना पर निर्भर नहीं रह सकता बल्कि मानसिक और भावनात्मक परिपक्वता का वैज्ञानिक और कठोर मूल्यांकन भी आवश्यक है.

जस्टिस सिद्धार्थ की पीठ का आदेश 

यह आदेश जस्टिस सिद्धार्थ की सिंगल बेंच ने प्रयागराज निवासी एक किशोर की क्रिमिनल रिवीजन याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है. मामले के अनुसार किशोर के खिलाफ प्रयागराज के जॉर्ज टाउन थाने में 2019 में आईपीसी की धारा 147, 148, 149, 323, 302 और 120-बी में मामला दर्ज हुआ था. इस मामले में किशोर ने 30 नवंबर 2023 को प्रयागराज के सत्र न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश, पॉक्सो एक्ट और 4 दिसंबर 2020 को किशोर न्याय बोर्ड, प्रयागराज द्वारा पारित आदेश को रद्द करने की मांग करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में क्रिमिनल रिवीजन याचिका दाखिल की थी.


जानिए क्या था मामला 

किशोर न्याय बोर्ड ने पुनरीक्षणकर्ता किशोर की उम्र 17 साल, 6 महीने और 27 दिन निर्धारित करने के बाद किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 15 के अनुसार उसका प्रारंभिक मूल्यांकन करने का निर्देश दिया था. बोर्ड के समक्ष पुनरीक्षणकर्ता से सात प्रश्न पूछे गए थे और यह माना गया कि पुनरीक्षणकर्ता अपने द्वारा किए गए हत्या और अन्य अपराधों के परिणामों को समझने में सक्षम है और डीपीओ की रिपोर्ट के अनुसार वह पर्याप्त रूप से परिपक्व है. उसे पहले के दो अपराधों में भी संलिप्त पाया गया था और इसलिए उसे किशोर न्याय बोर्ड द्वारा एक वयस्क के रूप में मुकदमा चलाने के लिए उत्तरदायी ठहराया गया था. 

कोर्ट की बड़ी टिप्पणी 

बाल न्यायालय के समक्ष अपील करने के बाद भी पुनरीक्षणकर्ता को बाल न्यायालय ने भी उसे दोषी ठहराया और बाल न्यायालय द्वारा 30 नवंबर 2023 के आदेश द्वारा उसकी अपील खारिज कर दी गई. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि बाल न्यायालय ने मनोवैज्ञानिक की रिपोर्ट पर विचार किया है लेकिन उसकी सत्यता पर विचार नहीं किया है. किशोर ने इन दोनों आदेशों को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए फैसले को रद्द करने की हाईकोर्ट से मांग की थी. हाईकोर्ट ने पक्षों को सुनने के बाद पाया कि किशोर न्याय बोर्ड और अपीलीय न्यायालय की ओर से उम्र निर्धारण के लिए किया गया प्रारंभिक मूल्यांकन कानून के अनुसार नहीं है और अविश्वसनीय है. इस पर हाईकोर्ट ने किशोरों के उम्र निर्धारण के लिए जेजे बोर्ड और अपीलीय न्यायालयों के लिए दिशानिर्देश जारी किए है। कोर्ट ने कहा कि बच्चों की उम्र का निर्धारण करने के लिए बच्चे की बौद्धिक क्षमता (IQ) और भावनात्मक बुद्धिमत्ता (EQ) को निर्धारित करने के लिए मनोवैज्ञानिक परीक्षण अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए.

आईक्यू टेस्ट में इन उपकरणों का हो सकता है इस्तेमाल 

मनोवैज्ञानिक परीक्षण के लिए मानकीकृत उपकरणों जैसे बिनेट कामत टेस्ट (BKT), विनैलैंड सोशल मैच्योरिटी स्केल (VSMS), भाटिया बैटरी इंटेलिजेंस आदि का उपयोग किया जाना चाहिए। इसके साथ ही रिपोर्ट में उपयोग की गई कार्यप्रणाली का जिक्र होना चाहिए। मनोवैज्ञानिक की रिपोर्ट में बच्चे की शारीरिक और मानसिक क्षमता, अपराध के परिणामों को समझने की उसकी योग्यता और बौद्धिक विकलांगता या मानसिक बीमारी है तो इसके बारे में स्पष्ट निष्कर्ष दर्ज किए जाने चाहिए। बोर्ड को प्रारंभिक मूल्यांकन के लिए प्रशिक्षित और अनुभवी मनोवैज्ञानिकों या मनो-सामाजिक कार्यकर्ताओं की सहायता लेना अनिवार्य है। 

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 15(1) के अंतर्गत किसी बच्चे का प्रारंभिक मूल्यांकन करते समय सभी किशोर न्याय बोर्डों/बाल न्यायालयों द्वारा इन दिशानिर्देशों का पालन किया जाएगा और यह उनके आदेशों में परिलक्षित होना चाहिए. कोर्ट ने किशोर की क्रिमिनल रिवीजन याचिका को स्वीकार करते हुए जेजे बोर्ड और बाल न्यायालय द्वारा पारित आदेश को रद्द कर दिया और कहा कि दोनों आदेश आक्षेपित आदेश विधि के अनुरूप नहीं है इसलिए वर्तमान विधि का उल्लंघन करने वाले बच्चे का प्रारंभिक मूल्यांकन जेजे बोर्ड द्वारा नए सिरे से किया जाना आवश्यक है जैसा कि जेजे अधिनियम, 2015 की धारा 15(1) के अंतर्गत होता है. 

याचिकाकर्ता किशोर का मूल्यांकन सभी मापदंडों/दिशा निर्देशों के आधार पर किया जाएगा। हाईकोर्ट ने इन दिशा निर्देशों का पालन न करने के कारण जेजे बोर्ड और बाल न्यायालय के आदेशों को रद्द कर दिया और मामले को नए सिरे से मूल्यांकन के लिए जेजे बोर्ड के पास वापस भेज दिया. कोर्ट ने इस आदेश की कॉपी राज्य के सभी जेजे बोर्डों/बाल न्यायालयों (J.J.Boards/Children's court) को दो हफ्ते के अंदर रजिस्ट्रार (अनुपालन) द्वारा आवश्यक अनुपालन के लिए भेजे जाने का भी आदेश दिया है.

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