Mutual Fund में करते हैं निवेश तो जान लें क्या कहता है टैक्स सिस्टम

टैक्स की सटीक जानकारी के अभाव में किसी न किसी कंसलटेंट के चक्कर में फंसना होता है और फिर उनकी फीस भी देनी होती है. इस बचने के लिए मामूली से मेहनत यानि एक आर्टिकल के माध्यम से इसे समझना और आयकर विभाग की साइट पर जाकर उसे कंफर्म कर लेना चाहिए. म्यूचुअल फंड पर टैक्‍स देनदारी इस बात पर डिपेंड करती है कि आपने कितने समय बाद और कितना पैसा स्‍कीम से निकाला है.

Mutual Fund में करते हैं निवेश तो जान लें क्या कहता है टैक्स सिस्टम

म्यूचुअल फंड पर टैक्स के नियम

नई दिल्ली:

Mutual Funds Tax Rules: आज के जमाने में म्‍यूचुअल फंड में निवेश सबसे बढ़िया विकल्प है. लेकिन, कम ही लोगों को म्यूचुअल फंड से होने वाली आय पर टैक्‍स के बारे में सटीक जानकारी होती है. टैक्स की सटीक जानकारी के अभाव में किसी न किसी कंसलटेंट के चक्कर में फंसना होता है और फिर उनकी फीस भी देनी होती है. इस बचने के लिए मामूली से मेहनत यानि एक आर्टिकल के माध्यम से इसे समझना और आयकर विभाग की साइट पर जाकर उसे कंफर्म कर लेना चाहिए. म्यूचुअल फंड पर टैक्‍स देनदारी इस बात पर डिपेंड करती है कि आपने कितने समय बाद और कितना पैसा स्‍कीम से निकाला है. यानि जो पैसा आपने लगाया था उस पर आपको कितना मुनाफा हुआ. मूल रकम को छोड़ने के बाद जो रकम आपको मिल रही है इस पर ध्यान देना चाहिए. इसे ही कैपिटल गैन कहते हैं और इसी पर टैक्स लगता है. 
इसके लिए जरूरी है कि निवेश और यूनिट रिडीम के बाद क्या आपके खाते में आया है उसे समझ लें. 

म्यूचुअल फंड में निवेश पर मिलने वाला रिटर्न टैक्‍स के दायरे में आता है. टैक्स सिस्टम में इसे दो हिस्सों में बांटा गया है. एक शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स (STCG) और दूसरा लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) कहा जाता है. म्यूचुअल फंड के डिविडेंड के मामले में डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स (DDT) भी लगता है और फंड के मुताबिक टीडीएस (टैक्‍स डिडक्‍शन एट सोर्स) कटता है.

Mutual Fund पर STCG, LTCG
म्‍यूचुअल फंड में टैक्‍स की जिम्मेदारी इस बात पर निर्भर करती है कि किस तरह के फंड निवेश किया गया है. म्यूचुअल फंड में इक्विटी, डेट, गोल्‍ड आदि प्रकार होते हैं. साथ ही जब आपने खरीदा था तब से लेकर कितने समय तक के लिए आपने निवेश बरकरार रखा. यानि कितने समय के लिए निवेश था. टैक्स का प्रतिशत इसी बात पर निर्भर करता है. अगर किसी ने इक्विटी फंड में शॉर्ट टर्म यानी 12 महीने से कम समय के निवेश किया है तब 15 फीसदी की दर टैक्‍स देना होता है. इसी फंड में यदि किसी ने 12 महीने से ज्‍यादा यानी लॉन्‍ग टर्म निवेश किया है और कैपिटल गेन 1 लाख रुपये से कम हुआ है, तो आपको कोई टैक्‍स नहीं देना होगा. हालांकि, अगर किसी का कैपिटल गेन 1 लाख रुपये से ज्‍यादा है, तो टैक्‍स देनदारी 10 फीसदी होगी. 

यदि किसी ने डेट फंड या अन्‍य दूसरे फंड में शॉर्ट यानी 3 साल से कम से के लिए निवेश करते हैं तब उसे अपने इनकम टैक्‍स स्‍लैब के मुताबिक टैक्‍स देना होगा. गौरतलब है कि यहां पर शॉर्ट टर्म के लिए तीन साल का समय है जबकि इक्विटी फंड में यह समय एक साल के लिए था. 

म्यूचुअल फंड में Indexation का फायदा लेने पर टैक्स का दायरा
म्यूचुअल फंड में Indexation का फायदा लेने पर टैक्स का दायरा बदल जाता है. यदि लॉन्‍ग टर्म यानी 3 साल से ज्‍यादा समय के लिए निवेश कर रहे हैं, तो इंडेक्‍सेशन का फायदा लेने के साथ 20 फीसदी की दर से टैक्‍स देना पड़ता है. गौर करने की बात यह है कि लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर इंडेक्सेशन का लाभ मिलता है. इंडेक्सेशन का अर्थ ऐसे समझिए. इन्वेस्टमेंट के समय के दौरान महंगाई की दर को निवेश के साथ देखकर तय किया जाता है. इसका एक फॉर्मूला होता है और उससे इसकी गणना की जाती है. इसका फायदा यह होता है कि इससे जो आपका कैपिटल गेन रकम में दिख रहा होता है उसमें कटौती हो जाती है. और आपको घटी हुई रकम पर टैक्स चुकाना होता है. एक लाख रुपये से अधिक का लांग टर्म कैपिटल गेन पर 10 फीसदी की दर से टैक्स लगता है और इस पर इंडेक्सेशन का फायदा भी नहीं मिलता है. इसके साथ ही इस पर सेस व सरचार्ज भी लगता है. आम भाषा में समझा दें तो यह मानिए कि इंडेक्सेशन का फायदा लेना आपके हक में है या नहीं यह आपकी म्यूचुअल फंड से कमाई पर निर्भर करता है.

डेट फंड्स क्या है यह भी समझ लीजिए. यानि जिस म्यूचुअल फंड के पोर्टफोलियो में 65 फीसदी से अधिक डेट इंस्ट्रूमेंट्स होते हैं वे डेट फंड्स के दायरे में आते हैं. इस फंड को तीन साल से पहले अगर रिडीम किया तो तो इस पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन होता है और इसे टैक्सेबल इनकम में जोड़कर स्लैब रेट के मुताबिक टैक्स देना होता है. तीन साल के बाद अगर डेट फंड के यूनिट्स की बिक्री की जाती है तो मुनाफा लांग टर्म कैपिटल गेन होता है और इस पर इंडेक्सेशन (नीचे समझाया है) के बाद 20 फीसदी की दर से टैक्स देनदारी बनती है. इसके अलावा इस पर सेस व सरचार्ज भी लगाया जाता है.

DDT की देनदारी 
एक बार फिर बता दें कि म्यूचुअल फंड में निवेश पर दो तरीके से रिटर्न मिलता है. एक डिविडेंड्स के रूप में और दूसरा कैपिटल गेन के रूप में. 
जब कंपनी के पास ज्याद कैश (Surplus Cash) बचता है तो इसे निवेशकों के निवेश के अनुपात में डिविडेंड के रूप में दिया जाता है. म्‍यूचुअल फंड निवेशकों को मिलने वाला डिविडेंड (लाभांश) भी टैक्‍स के दायरे में आता है. पहली बार 2020 बजट के जरिए डिविडेंड से होने वाली आय को निवेशकों की करयुक्त आय में शामिल किया गया था. इसे टैक्‍स स्‍लैब के मुताबिक वसूला जाता है. अभी एक वित्त वर्ष में 10 लाख रुपये तक का डिविडेंड टैक्स-फ्री है. 

म्यूचुअल फंड पर टैक्स लाभ
एक और खास प्रकार का म्यूचुअल फंड होता है. जिसे इक्विटी-लिंक सेविंग स्कीम (ELSS) कहा जाता है. यह एक प्रकार का इक्विटी फंड है और केवल यही म्यूचुअल फंड स्कीम आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत सालाना 1.5 लाख तक टैक्स छूट के योग्य होती है. खास बात यह है कि यह ELSS 3 वर्ष की लॉक-इन अवधि के साथ आती है. इसका मतलब यह हुआ कि इसमें किए गए निवेश को 3 वर्ष से पहले निकाला नहीं जा सकता है. 

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सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स (STT)
म्यूचुअल फंड की यूनिट को रिडीम/बेचने के समय इक्विटी को ध्यान में रखकर बने म्यूचुअल फंड पर 0.001% की दर से सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स (Security Transaction Tax STT) लागू होता है. यह वित्तमंत्रालय लेता है. एक निवेशक को STT का अलग से भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह म्यूचुअल फंड रिटर्न से काट लिया जाता है. डेट फंड के यूनिट्स की खरीद बिक्री पर किसी प्रकार की STT नहीं लगता है.