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HRA Exemption हासिल करने के लिए माता-पिता को किराया देने वाले इन बातों का रखें ध्यान

HRA Exemption: ज़रूरी है कि घर किराया देने वाले की संपत्ति न हो, और मां या पिता को दिया जाने वाला किराया बैंक के ज़रिये दिया जाए, और किराया वसूल करने वाला (मां या पिता) किराये के रूप में हासिल होने वाली उस रकम पर इन्कम टैक्स अदा करे...

HRA Exemption हासिल करने के लिए माता-पिता को किराया देने वाले इन बातों का रखें ध्यान
अपने ही माता या पिता को घर का किराया देकर Income Tax में HRA Exemption हासिल करने वालों को नीचे लिखी बातों का ध्यान रखना चाहिए...
नई दिल्ली:

हर नौकरीपेशा शख्स कभी न कभी यह कोशिश ज़रूर करता है कि उसकी इन्कम टैक्स लायबिलिटी, यानी आयकर देनदारी किसी तरह कुछ कम हो जाए, और सरकार भी इन्कम टैक्स में बहुत-सी कटौतियां और छूट प्रदान करती है, ताकि करदाताओं की बचत हो सके. इसी तरह की एक छूट है मकान किराया भत्ता (House Rent Allowance) में छूट, जिसे HRA Exemption या HRA Rebate कहा जाता है.

हाउस रेंट एलाउंस (एचआरए - HRA) ऐसा मद है, जो इन्कम टैक्स की बचत करने में किसी भी करदाता को बहुत ज़्यादा मदद दे सकता है, और बहुत-से नौकरीपेशा लोग इसका इस्तेमाल भी करते हैं. इन्कम टैक्स बचाने के लिए कई वेतनभोगी अपने माता या पिता को मकान का प्रतिमाह किराया देते हैं, और फिर उस रकम पर छूट हासिल कर लेते हैं, लेकिन ऐसे लोगों के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद ज़रूरी होता है.

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मां-पिता को किराया देने वाले याद रखें...

इस संदर्भ में सबसे ज़रूरी बात यह है कि जिस मकान का किराया अदा करने या चुकाने का दावा नौकरीपेशा करदाता कर रहा है, वह मकान (यानी संपत्ति) उसके खुद के नाम नहीं होनी चाहिए. कायदे से मकान हमेशा मकान-मालिक (जिसे किराया चुकाया जा रहा है) के नाम ही होना चाहिए. सो, ध्यान रहे, अपनी ही संपत्ति में रहकर अपने माता या पिता को किराया वसूल करने वाला मकान मालिक दिखाना गलत है.

मकान-मालिक भी ITR ज़रूर फ़ाइल करें...

HRA Rebate क्लेम करने वाले, या क्लेम करने जा रहे नौकरीपेशा शख्स के लिए याद रखने लायक दूसरी बात यह है कि माता या पिता, जिसे भी किराया वसूल करता दिखाया गया है, को किराये की रकम को अपनी आय में शुमार कर इन्कम टैक्स रिटर्न दाखिल करना चाहिए. दरअसल, इन्कम टैक्स एक्ट के सेक्शन 10 (13 ए) के अंतर्गत किसी भी वेतनभोगी को HRA Exemption के तहत - उसके मूल वेतन (बेसिक सैलरी) का 50 फ़ीसदी, HRA के मद में मिलने वाली रकम, या चुकाए गए वास्तविक किराये में से मूल वेतन का 10 फ़ीसदी घटाने पर बची रकम में से - सबसे कम वाली रकम पर इन्कम टैक्स से छूट मिलती है. इसलिए बहुत-से नौकरीपेशा लोग अपनी मां या पिता के नाम किराये की रसीदें देकर छूट हासिल कर लेते हैं. ऐसे लोगों के लिए याद रखने वाली सबसे ज़रूरी बात यह है कि माता या पिता को भी इस किराये की रकम को अपनी आमदनी में दिखाना और उस पर टैक्स देना ज़रूरी है.

हमेशा तैयार रखें दस्तावेज़ी सबूत...

एक ज़रूरी बात और भी है - माता या पिता को अदा किए गए किराये का दस्तावेज़ी सबूत हमेशा तैयार रखें. यानी किराये की रसीदें आपके पास ज़रूर होनी चाहिए, और बेहतर होगा कि यह किराया आप हमेशा ऑनलाइन चुकाएं, ताकि आपके और मकान-मालिक के बैंक अकाउंट की स्टेटमेंट भी सबूत के तौर पर पेश की जा सकें.

कितनी दर्ज होगी माता या पिता की आय...?

अगर आप मां-पिता को मकान का किराया देकर HRA Rebate क्लेम कर रहे हैं, तो वही रकम माता या पिता की आय में शामिल हो जाएगी. उदाहरण के लिए, यदि किसी शख्स को ₹50,000 मूल वेतन के साथ-साथ ₹25,000 HRA के मद में मिलते हैं, और वह ₹25,000 ही वास्तव में किराये की रकम दिखाता है, तो उसे ₹20,000 रुपये प्रतिमाह पर ही HRA Exemption मिल पाएगा, क्योंकि चुकाए गए किराये की रकम में से मूल वेतन का 10 फ़ीसदी घटाने पर यही रकम बचती है. सो, अब किराया वसूल करने वाले माता या पिता की आय ₹20,000 मासिक बढ़ जाएगी (यदि उनकी आय शून्य भी है, तो भी अब उनकी आय ₹20,000 रुपये मानी जाएगी), और इस रकम में से 30 फ़ीसदी रखरखाव खर्च निकालकर शेष रकम पर उन्हें इन्कम टैक्स देना ही होगा.

सो, कुल मिलाकर बेहद ज़रूरी है कि किराये पर लिया गया मकान किराया देने वाले की ही संपत्ति न हो, और माता या पिता को दिया जाने वाला किराया बैंक के ज़रिये दिया जाए, और किराया वसूल करने वाला (माता या पिता) किराये के रूप में हासिल होने वाली रकम को आय में शुमार कर उस पर इन्कम टैक्स अदा करें.

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