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This Article is From Sep 14, 2016

रियो पैरालिंपिक: भारत के गोल्ड विजेता की बेटी ने कहा था, 'पापा मैंने टॉप किया अब आपकी बारी'

रियो पैरालिंपिक: भारत के गोल्ड विजेता की बेटी ने कहा था, 'पापा मैंने टॉप किया अब आपकी बारी'
देवेंद्र झझारिया (फोटो : AP)
  • देवेंद्र ने पैरालिंपिक में दूसरी बार जीता है गोल्ड मेडल
  • उन्होंने 2004 में एथेंस पैरालिंपिक में भी जीता था गोल्ड
  • देवेंद्र पिछले दो पैरालिंपिक में नहीं ले पाए थे हिस्सा
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कोलकाता: रियो पैरालिंपिक में भारते के लिए गोल्ड जीतने वाले भालाफेंक खिलाड़ी देवेंद्र झझारिया ने अपनी इस जीत के पीछे की प्रेरणा के बारे में बताया है. उन्होंने अपनी छह साल की बेटी के साथ हुई ‘डील’ के बारे में खुलासा किया, जिसने उन्हें पैरालंपिक में रिकार्ड दूसरा गोल्ड मेडल जीतने के लिए प्रेरित किया.

राजस्थान में झझारिया के साथ ट्रेनिंग के लिए गई जिया का अपने पिता के साथ समझौता हुआ था कि अगर वह अपनी एलकेजी परीक्षा में टॉप करती है तो वह पैरालिंपिक में गोल्ड मेडल जीतकर लाएंगे.

कानों में गूंज रही थी उसकी बात
पैरालिंपिक में दो गोल्ड जीतने वाले एकमात्र भारतीय झझारिया ने पुरुष एफ46 भालाफेंक में मेडल जीतने के बाद रियो से पीटीआई से कहा, ‘‘उसने गर्व के साथ फोन करते हुए मुझे बताया कि मैंने टॉप किया है और अब आपकी बारी है. ओलिंपिक स्टेडियम में जब मैं मैदान पर उतरा तो यह बार-बार मेरे कानों में गूंज रहा था.’’

उन्होंने कहा, ‘‘उसे सबसे ज्यादा खुशी होगी. मैं उसके उठने का इंतजार करूंगा और उससे बात करूंगा.’’ झझारिया ने एथेंस में बनाया अपना ही रिकॉर्ड तोड़कर गोल्ड जीता.

झझारिया पूरी रात नहीं सोए और रियो में सुबह पांच बजे तक अपने परिवार के सदस्यों और शुभचिंतकों से बात करते रहे. प्रत्येक भारतीय को धन्यवाद देते हुए झझारिया ने कहा, ‘‘अब क्या सोना, अब हमें कुछ नहीं होगा. हम तो राष्ट्रीय ध्वज के साथ जश्न मनाएंगे.’’

पिछले दो ओलिंपिक में नहीं ले पाए भाग
झझारिया ने अपने तीसरे प्रयास में 63-97 मीटर की थ्रो फेंकी और 2004 में एथेंस पैरालिंपिक में 62-15 मीटर से गोल्ड जीतने के अपने ही प्रयास में सुधार किया. झझारिया पिछले दो पैरालिंपिक में हिस्सा नहीं ले पाए, क्योंकि उनकी स्पर्धा को कार्यक्रम में जगह नहीं मिली थी.

इस दौरान खुद को फिट और चोट मुक्त रखने के लिए झझारिया ने कड़ी ट्रेनिंग की और बेहद कम बार घर गए. उनका घर राजस्थान के चुरू जिले के एक छोटे गांव में है. वह इतने कम घर रहे हैं कि उनका दो साल का बेटा काव्यान अपने पिता को पहचानता भी नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘‘उसे को यह भी नहीं पता कि पिता कैसा होता है. उसकी मां की मेरी फोटो दिखाकर कहती है कि यह तुम्हारे पापा हैं. उम्मीद करता हूं कि अब उसके साथ कुछ समय बिता पाऊंगा.’’ पैरालिंपिक से पहले झझारियो ने अप्रैल-जून में फिनलैंड के क्योरटेन में अभ्यास किया जहां उनकी कीनिया के भाला फेंक खिलाड़ी यूलियस येगो से दोस्ती हुई जिन्हें वह अपना सबसे बड़ा प्रेरक मानते हैं.

झझारिया ने कहा कि उनकी मां जिवानी देवी और पत्नी राष्ट्रीय स्तर की पूर्व कबड्डी खिलाड़ी मंजू ने उनकी सफलता में अहम भूमिका निभाई.

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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