Year Ender 2024: कहते हैं कि खेलों को राजनीति से दूर रखना चाहिये लेकिन भारतीय कुश्ती में तो 2024 में खेलों की राजनीति ही हावी रही. एक समय ओलंपिक में सफलता की गारंटी माने जाने वाले इस खेल में प्रशासनिक उठापठक खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही और पेरिस ओलंपिक में विनेश फोगाट का तय लग रहा पदक चले जाने से एक और निराशा हाथ लगी.
ठीक एक साल पहले भारतीय कुश्ती महासंघ के चुनाव से बेंगलुरू में हाल ही में हुई राष्ट्रीय चैम्पियनशिप तक भारतीय कुश्ती दिशाहीन जहाज लग रही थी. एक समय था जब कुश्ती को ओलंपिक में भारत की पदक उम्मीदों में गिना जाता था लेकिन पेरिस ओलंपिक में अमन सहरावत के कांस्य पदक के अलावा इस खेल में भारत की झोली खाली रही. बदकिस्मती से विनेश का स्वर्ण पदक बिल्कुल करीब आकर निकल गया.
ओलंपिक के लिये उनके पसंदीदा भारवर्ग में जगह नहीं बनने से विनेश ने निचले वर्ग में किस्मत आजमाई. उन्होंने पेरिस ओलंपिक में पहले दौर में जापान की महान पहलवान युइ सुसाकी को हराया लेकिन फाइनल के दिन सुबह 100 ग्राम वजन अधिक पाये जाने के कारण अयोग्य करार दी गई.
एक दिन बाद विनेश ने खेल को अलविदा कह दिया. घर लौटने के बाद उनका नायिकाओं की तरह स्वागत किया गया. विनेश ने राजनीतिक पारी शुरू करके कांग्रेस का दामन थामा और हरियाणा विधानसभा चुनाव में जुलाना से जीत दर्ज करके विधायक बन गई.
बजरंग पूनिया भी कांग्रेस में शामिल हुए लेकिन उनकी किस्मत विनेश जैसी नहीं रही.
अभ्यास शिविरों के दौरान डोप टेस्ट के लिये नमूने देने में नाकाम रहने के कारण उन पर चार साल का प्रतिबंध लगा. इससे पहले वह पेरिस ओलंपिक के लिये क्वालीफाई भी नहीं कर सके थे. तोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने के बाद उनका कैरियर ग्राफ इस साल बिल्कुल नीचे चला गया.
विनेश और बजरंग लगातार कहते रहे कि डब्ल्यूएफआई के पूर्व प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ महिला पहलवानों के कथित यौन उत्पीड़न को लेकर उनकी लड़ाई राजनीतिक नहीं है. लेकिन उनके कांग्रेस से जुड़ने के बाद उनकी साथी पहलवान और रियो ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता साक्षी मलिक ने अपनी किताब में लिखा कि दोनों ने लालच ने उनके प्रदर्शन की हवा निकाल दी.
अगली पीढी के पहलवानों अंशु मलिक और अमित पंघाल ने पेरिस में निराश किया लेकिन अमन ने छत्रसाल स्टेडियम की परंपरा को आगे बढाकर पुरूषों की फ्रीस्टाइल 57 किलो कुश्ती में कांस्य पदक जीता.
इसी वर्ग में 2020 तोक्यो खेलों में रवि दहिया ने रहत पदक जीता था. लेकिन चोटों और खराब फॉर्म ने दहिया को हाशिये पर धकेल दिया. तोक्यो में भारत को कुश्ती में दो पदक मिले थे लेकिन पिछले एक साल के घटनाक्रम ने भारतीय कुश्ती को काफी पीछे खिसका दिया.
ऐसा नहीं है कि संभावनायें या प्रतिभायें नहीं है. भारत की अंडर 17 महिला टीम ने सितंबर में जोर्डन के अम्मान में विश्व चैम्पियनशिप जीती. भारत ने संभावित दस पदकों में से पांच स्वर्ण समेत आठ पदक जीते. जापान और कजाखस्तान जैसे दिग्गजों को पछाड़ना बड़ी उपलब्धि है.
संजय सिंह की अगुवाई में भारतीय कुश्ती महासंघ के नये प्रशासन को अभी भी खेल मंत्रालय से निलंबन हटने का इंतजार है. निलंबन इसलिये लगाया गया क्योंकि दिसंबर 2023 में 15 दिन का नोटिस दिये बिना राष्ट्रीय चैम्पियनशिप के आयोजन का ऐलान कर दिया गया था. लेकिन अगर डब्ल्यूएफआई नोटिस अवधि तक रूकता तो पहलवानों को एक साल गंवाना पड़ता क्योंकि 15 दिन पूरे होने तक 2024 शुरू हो जाता.
साक्षी और उनके पति पहलवान सत्यव्रत कादियान की याचिका के कारण डब्ल्यूएफआई को सीनियर विश्व चैम्पियनशिप से टीम वापिस लेनी पड़ी थी. सरकार के दखल के बाद टीम भेजी जा सकी.
पिछले दो साल में कोचिंग शिविर नहीं लगे हैं और प्रो कुश्ती लीग फिर शुरू करने की योजना ठंडे बस्ते में है. अनुदान और प्रायोजन रूके हुए हैं और कोई विदेशी या निजी कोच नहीं है. भारतीय कुश्ती की दशा और दिशा दोनों इस समय तय नहीं है.
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