Exclusive : बजरंग दल के नेता ने कथित तौर पर 'मुस्लिमों का डर' दिखा किसानों से सस्ते में खरीदी कई एकड़ जमीन

जब NDTV अपने सवाल लेकर संस्था के पास पहुंचा तो संस्था के संचालक रवि महाजन का कहना था कि सब काम कानून के तहत हुआ है, यहां गरीबों को मकान मिले हैं, जमीन में पानी संस्था लेकर आई है.

भोपाल :

Madhya Pradesh News: कुछ दिनों पहले तक मध्य प्रदेश का खरगोन दंगों की वजह से सुर्खियों में था लेकिन आप यकीन करेंगे कि उसी खरगोन ने 'भाईचारे की अनूठी मिसाल' कायम की है. बजरंग दल के एक नेता ने कथित तौर पर मुस्लिम संस्था के नाम पर किसानों से कई एकड़ जमीन खरीदी. बाद में उनका हृदय और जमीन का नाम परिवर्तन हो गया. हालांकि संस्था का कहना है कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया और वो समाज सेवा कर रहे हैं. भारत शासन द्वारा मान्यता प्राप्त पंजीकृत संस्था प्रो. पीसी महाजन फाउंडेशन का बोर्ड खरगोन के डाबरिया गांव में लगा है. वैसे कुछ सालों पहले तक इसका नाम तंजीम-ए-जरखेज था. 2007 में बोर्ड का नाम बदला और कहानी शुरू हुई. उस वक्त जिन लोगों ने तंजीम-ए-जरखेज को जमीन बेची, उनका आरोप है कि उन्हें बताया गया था कि यहां मुस्लिम कब्रिस्तान बनेगा. आसपास बड़ी तादाद में मुस्लिम बसने वाले हैं, ऐसे में उनका रहना मुश्किल होगा. अब वो किसान खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं. 

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राजपुरा में रहने वाले नंदकिशोर बताते हैं कि उनकी ज़मीन इस्कॉन मंदिर के पास थी, उन्होंने मात्र 40,000 रु. में सारी जमीन बेच दी. वो कहते हैं, "ज़ाकिर नाम का शख्स हमारे पास आया. कहने लगा कि तुम्हारे आसपास की जमीन खरीद ली. बोला- यहां बूचड़खाना बनेगा मुसलमानों का, तुम्हारी जमीन बेच दो, नहीं तो घेरे जाओगे. पूरी कीमत नहीं दी, 40,000 रुपये दिये थे. बाकी पैसे दिये नहीं, अब मेरे पास जमीन नहीं है, सब ले ली." वहीं रहने वाले रामनारायण बताते हैं, "2004-05 में दलाल बबलू खान आता था. मेरे बड़े भाई को एक मोटरसाइकिल खरीद दी. फिर हमारी जमीन औने-पौने दाम में ले ली. जो रजिस्ट्री थी वो अंग्रेजी में थी, यही भ्रम फैलाया कि मुस्लिम आ जाएंगे. भयभीत होकर हमने जमीन बेच दी, अपने पास मुसलमान आ रहे थे तो हमने यही सोचा वो बसेंगे. अपने को क्या पता कि जमीन व्यापारी ने खरीदी या किसने खरीदी." दीपक कुशवाहा भी पेशे से किसान हैं. उन्होंने बताया कि बबलू दलाल आ रहा था. उसने कहा मुसलमानों की संस्था बना रहे हैं. हमने सोचा कि वाद-विवाद में कहां पड़ेंगे, हमारी 9 एकड़ जमीन थी, हमने भी बेच दी. सिर्फ छोटे किसान ही नहीं, संजय सिंघवी जैसे कारोबारियों ने भी वहां खेती की जमीन बेची थी. वे कहते हैं, वहां रिश्तेदारों ने जमीन बेची, दबाव में उन्हें भी जमीन बेचनी पड़ी. हालांकि उनका कहना है कि उन्हें भाव अच्छा मिला, उनका कहना था कि वहां तंजीम-ए-जरखेज नाम देखकर हमारे रिश्तेदारों को लगा कि हज कमेटी बनेगी, मुस्लिम बस्ती बसेगी.घबराकर उन्होंने जमीन बेच दी. सबसे आखिर में हमने अपनी ज़मीन उनके और बबलू दलाल के बोलने पर बेची.

जब NDTV अपने सवाल लेकर संस्था के पास पहुंचा तो संस्था के संचालक रवि महाजन का कहना था कि सब काम कानून के तहत हुआ है, यहां गरीबों को मकान मिले हैं, जमीन में पानी संस्था लेकर आई है. 200 एकड़ को लेकर अपने विजन के बारे में भी विस्तार से कहा कि वो खांडव वन को इंद्रप्रस्थ में बदलने का ध्येय रखते हैं. यहां हमें 58 साल के जाकिर भी, मिले. जाकिर संस्था में प्रबंधक थे जब जमीन तंजीम-ए-जरखेज के नाम से खरीदी गई. 2014 में उन्होंने अर्जी दी कि संस्था का नाम बदलने से उन्हें हर्ज नहीं, वो अब संस्था से नहीं जुड़े हैं.

महाजन ने कहा, "यहां 700 फीट तक पानी नहीं था, यहां हमने पानी पैदा किया. मैं अन्ना हजारे, बाबा आमटे से प्रेरित रहा हूं. हमने भी ये कल्पना की कि यहां ग्रीनलैंड बनाया जाए. ये समाज को मैसेज देना था. 148 एकड़ की लिस्ट मैं आपको दे चुका हूं जो गैर कृषक हैं, व्यवसायी हैं, अधिकारी हैं ... इनको डराना ...ये भ्रामक प्रचार है. तंजीम ए जरखेज का मतलब है-बेकार जमीन को उपजाऊ बनाना. जब हमने पूछा तो नाम क्यों बदला तो उन्होंने कहा कि हमने अनुभव किया जो तंजीम ए जरखेज है, उसका भावार्थ समाज नहीं समझ रहा है, इसलिये हमने नाम बदला. वहीं जाकिर शेख ने कहा, "मैंने संस्था का मकसद समझा कि कैसे यहां सैनिक स्कूल खोलेंगे, समाज सेवा के काम हैइसलिये मैं तंजीम से जुड़ गया." 

हमने कैंपस को देखा वहां हरियाली थी, लोगों के घर बने थे, लेकिन तंजीम-ए-जरखेज से पीसी फाउंडेशन के नाम पर हमें साफ जवाब नहीं मिला. रणजीत डांडीर पहले बजरंग दल के प्रांत सहसंयोजक थे, बाद में सहकारी बैंक के अध्यक्ष बने. अब बीजेपी में हैं  डांडीर का कहना है, "उन्होंने संस्था की सीसी लिमिट बढ़ाई, फिर समाजसेवा करने अध्यक्ष बने. मेरा नाम उछाल रहे हैं क्योंकि बड़ा नाम है रणजीत डंडीर.. मैं सात बार जेल गया ... मर्डर केस चला है मुझ पर ... मेरा पूरा जीवन हिन्दू समाज के लिए गया है ... खरगोन में गौशाला में तकलीफ है तब हम जुड़े पहले जो नाम था उससे मेरा सीधा रिश्ता नहीं. मुझे नहीं लगता तंजीम-ए-जरखेज रखने से कोई तकलीफ है."  मामला अपर कलेक्टर के कोर्ट में भी पहुंचा है. कोर्ट केस लड़ने वाले सुधीर कुलकर्णी खुद 30 साल से संघ के कार्यकर्ता रहे हैं. उनका कहना था, "2005 में उस वक्त बीजेपी विधायक बाबूलाल महाजन ने ही आवाज उठाई थी कि ये गलत हो रहा है. 2017 में मैंने आवेदन दिया था कि करोड़ों की स्टॉम्प ड्यूटी चोरी हुई. तहसीलदार ने गलत नामांकरण किया था, अब हम धारा 80 के तहत नोटिस देंगे ये सारी संपत्ति सीज हो.जब तक प्रभारी अधिकारी बैठे हैं. ये जमीन बेच रहे हैं." इस मामले में हमने कलेक्टर से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. सवाल अभी भी खड़ा है कि क्या समाजसेवा करने के लिये नाम बदलने की जरूरत थी.

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