- मुंबई महानगरपालिका सहित राज्य के 29 शहरों में चुनाव होंगे, जिसमें पुणे, नागपुर, कोल्हापुर जैसे शहर शामिल हैं
- जून 2022 में एकनाथ शिंदे की बगावत से महायुति गठबंधन पुनर्जीवित हुआ, जुलाई 2023 में एनसीपी में भी बगावत हुई है
- पिंपरी-चिंचवड में शरद पवार और अजित पवार ने अपने-अपने गठबंधनों को छोड़कर एक साथ चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है
महाराष्ट्र में 15 जनवरी को होने जा रहे महानगरपालिका चुनावों में राज्य के दोनो बडे़ गठबंधन यानी महायुति और महाविकास आघाडी अप्रासंगिक हो गये हैं. राज्य की सभी प्रमुख पार्टियां स्थानीय स्तर पर अपने अपने अलग सियासी समीकरण के आधार पर चुनावी मैदान में उतरीं हैं. इन समीकरणों में न तो पार्टियों की विचारधाराएं आडे़ आ रहीं हैं और न ही उनके बीच की पुरानी अदावत. साल 2026 का पहला बड़ा चुनाव महाराष्ट्र में होने जा रहा है. मुंबई महानगरपालिका अपने आप में किसी छोटे राज्य की विधान सभा से कम नहीं जहां दो हफ्तों बाद पार्षदों का चुनाव होगा, जिन्हें नगरसेवक कहा जाता है.
मुंबई महानगरपालिका के साथ ही 28 दूसरे शहरों की महानगरपालिकाओं के चुनाव भी होंगें जिनमें पुणे, ठाणे, नासिक, संभाजीनगर, नागपुर और कोल्हापुर जैसे राज्य के बडे़ शहरों की महानगरपालिकाएं शामिल हैं. अगर कोल्हापुर का अपवाद छोड़ दें तो किसी भी शहर में पार्टियां स्थापित गठबंधन के तौर पर चुनाव नहीं लड़ रहीं. कोल्हापुर भी महायुती के तीनों घटक दल एक साथ हैं लेकिन महाविकास आघाडी के नहीं.
महाराष्ट्र में गठबंधन का पुराना इतिहास
1999 से लेकर 2019 तक महाराष्ट्र में दो गठबंधन थे – बीजेपी-शिवसेना का भगवा गठबंधन और कांग्रेस-एनसीपी का धर्मनिर्पेक्ष गठबंधन. गठबंधनों का नया दौर साल 2019 में विधान सभा चुनाव के बाद शुरू हुआ जब अविभाजित शिव सेना ने बीजेपी का साथ छोड कर कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिला लिया. इस गठबंधन के जनक अविभाजित एनसीपी के प्रमुख शरद पवार थे जिनकी पार्टी विधान सभा में चौथे नंबर पर थी लेकिन बीजेपी और शिव सेना के बीच चल रही नाराजगी का फायदा उठाते हुए उन्होने भगवा गठबंधन तोड दिया. शिव सेना को अपने पाले में लाकर वे एनसीपी को सत्ता में ले आये. उन्होने कांग्रेस को भी गठबंधन में शामिल होने की खातिर मना लिया. नये गठबंधन का पहले नाम “महाशिव आघाडी” तय हुआ लेकिन कांग्रेस नेता सोनिया गांधी की आपत्ती के बाद इसका नाम “महाविकास आघाडी” कर दिया गया.
एकनाथ शिंदे और अजीत पवार की बगावत
जून 2022 में एकनाथ शिंदे ने शिव सेना में बगावत कर दी. बागी धड़ा बीजेपी के साथ मिल गया.इस धडे को चुनाव आयोग ने असली शिव सेना के तौर पर मान्यता दे दी.इस तरह से भगवा गठबंधन यानी कि महायुती पुनर्जीवित हो उठा. जुलाई 2023 में एनसीपी में भी अजीत पवार ने बगावत कर दी और बागी धड़ा महायुती में शामिल हो गया. एनसीपी के इस धडे़ को भी चुनाव आयोग ने असली एनसीपी के तौर पर मान्यता दी.अब राज्य में तीन-तीन बडी पार्टियों के साथ दो बडे गठबंधन हो गये - महायुती जिसमें बीजेपी, शिव सेना और एनसीपी हैं और महाविकास आघाडी जिसमें कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव) और एनसीपी (शरद) शामिल हैं.
दोनों ही गठबंधनों ने 2024 का लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक दूसरे के खिलाफ लड़ा लेकिन महानगरपालिका के चुनाव में ये सभी गठबंधन बेमानी हो गये हैं. मुंबई में कांग्रेस, वंचित बहुजन आघाडी के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ रही है तो वहीं शिव सेना (उद्धव) राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के साथ. इससे पहले मनसे ने किसी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं किया था. मुंबई में अजीत पवार की एनसीपी, बीजेपी-शिवसेना से परे,स्वतंत्र चुनाव लड़ रही है.दूसरे शहरों में भी कुछ इसी तरह के समीकरण बने हैं.असली तस्वीर 3 जनवरी को साफ होगी जब नामांकन वापस लेने की मियाद निकल जायेगी.
पुणे जिले के पिंपरी-चिंचवड का मामला दिलचस्प है जहां चाचा शरद पवार और भतीजे अजीत पवार ने अपने अपने गठबंधन का साथ छोड एक दूसरे से हाथ मिला लिया है. जुलाई 2023 में अजीत पवार की बगावत के बाद ये पहला मौका होगा जब चाचा और भतीजा की पार्टियां एक साथ चुनाव लड़ रहीं हैं. सियासी गलियारों में सुगबुगाहट है कि दोनों का ये गठबंधन आगे राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर की राजनीति पर भी अपना असर दिखा सकता है.
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