- पिंपड़ी चिंचवड़ नगर निगम चुनाव में चाचा शरद पवार और भतीजे अजित पवार एकसाथ आए
- दोनों एनसीपी धड़े के एकसाथ आने के बाद शरद पवार के एनडीए में आने की चर्चा छिड़ी
- पुणे और पिंपड़ी चिंचवड़ का इलाका पवार परिवार का गढ़ माना जाता है
महाराष्ट्र में 29 नगर निगमों के चुनावों ने राज्य की राजनीति में जबरदस्त हलचल मचा दी है. जहां एक तरफ राज्य स्तर पर सत्तारूढ़ महायुति (BJP–शिंदे शिवसेना, NCP अजित पवार गुट) और विपक्षी महाविकास आघाड़ी (MVA) के बीच मुकाबला माना जा रहा था, वहीं नगर निगम चुनावों ने इन गठबंधनों की एकता को हिला कर रख दिया है. इसी राजनीतिक उथल-पुथल के बीच पिंपरी-चिंचवड़ नगर निगम (PCMC) में पवार परिवार का एक साथ आना केवल स्थानीय समीकरण नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति तक असर डालने वाला संकेत माना जा रहा है.
ऐसे बनी पवार परिवार में सहमति
पुणे और पिंपरी-चिंचवड़ पवार परिवार के राजनीतिक गढ़ माने जाते हैं. ऐसे में उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने नगर निगम चुनावों के लिए नई रणनीति पर काम शुरू किया. वैचारिक स्तर पर भले ही वह महायुति में हों, लेकिन कई मुद्दों पर उनकी सोच BJP और शिंदे शिवसेना से अलग रही है. इसी पृष्ठभूमि में उन्होंने अपने चाचा शरद पवार के साथ संवाद का रास्ता चुना. सूत्रों के मुताबिक, बीते कुछ हफ्तों में एनसीपी (शरद पवार गुट) के कई अहम नेता बंद कमरे में अजित पवार से मिले. इन बैठकों के बाद पिंपरी-चिंचवड़ नगर निगम चुनाव के लिए दोनों गुटों में सहमति बनी. यहां तक कि पुणे नगर निगम को लेकर भी बातचीत जारी होने की जानकारी सामने आ रही है.
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अजित का बयान, परिवार एकजुट हुआ है
कल बारामती में अजित पवार और शरद पवार की मुलाकात को इस पूरे घटनाक्रम का टर्निंग पॉइंट माना जा रहा है. उसी दिन बाद में एक रैली में पिंपरी-चिंचवड़ के लिए गठबंधन का औपचारिक ऐलान हुआ. रैली में अजित पवार ने साफ शब्दों मे कहा कि पिंपरी-चिंचवड़ नगर निगम चुनाव के लिए ‘घड़ी' और ‘तुतारी' एक साथ आई हैं. परिवार एकजुट हुआ है. यह बयान सिर्फ नगर निगम चुनाव तक सीमित नहीं माना जा रहा, बल्कि इसके राजनीतिक निहितार्थ कहीं बड़े बताए जा रहे हैं.
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क्या NDA में आएंगे चाचा?
औपचारिक तौर पर यह गठबंधन दो वैचारिक रूप से समान दलों का स्थानीय चुनावी समझौता बताया जा रहा है. लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इसके पीछे एक बड़ा राष्ट्रीय संदेश छिपा है. क्या शरद पवार की NDA की ओर बढ़ने की यह पहली ठोस झलक है? खास बात यह है कि सुप्रिया सुले का हालिया बयान भी इसी दिशा में संकेत देता है. उन्होंने कहा था कि अजित पवार के साथ गठबंधन में कोई गलत बात नहीं है, क्योंकि उन्होंने कभी अपनी विचारधारा नहीं छोड़ी. यह बयान शरद पवार गुट के भीतर बदलते राजनीतिक मूड का संकेत माना जा रहा है.
बीजेपी करेगी स्वागत!
चाहे अजित पवार MVA सरकार में उपमुख्यमंत्री रहे हों या अब महायुति सरकार में, उन्होंने खुद को हमेशा सेक्युलर राजनीति के समर्थक के तौर पर पेश किया है. यही साझा वैचारिक आधार अब दोनों पवारों को नगर निगम चुनाव में एक मंच पर लाता दिख रहा है. यही कारण है कि अजित पवार का यह रुख शरद पवार गुट के कैडर के बीच भी एक स्पष्ट संदेश दे रहा है कि राजनीति में नए समीकरण संभव हैं. राजनीतिक गलियारों में यह भी चर्चा है कि BJP भविष्य में शरद पवार का NDA में स्वागत करने के लिए तैयार है. यदि ऐसा होता है, तो यह NDA के लिए रणनीतिक तौर पर बड़ा फायदा हो सकता है, भले ही यह एकनाथ शिंदे की शिवसेना को असहज कर दे.
MVA को लगेगा बड़ा झटका!
महाराष्ट्र की राजनीति में यह पहली बार नहीं होगा जब बड़े वैचारिक मतभेदों को किनारे रखकर सत्ता संतुलन के लिए नए गठबंधन बने हों. अजित पवार की राजनीति सिर्फ पिंपरी-चिंचवड़ तक सीमित नहीं है. मुंबई में अकेले चुनाव लड़ने का कड़ा रुख और नवाब मलिक जैसे विवादित चेहरों को लेकर दबाव के बावजूद समझौता न करना, इन सबने उनकी पार्टी को और मजबूत किया है. इससे शरद पवार गुट के कार्यकर्ताओं के बीच भी यह संदेश गया है कि अजित पवार सत्ता में रहते हुए भी अपनी शर्तों पर राजनीति कर रहे हैं. पिंपरी-चिंचवड़ में पवारों का एकजुट होना भले ही नगर निगम चुनाव का फैसला हो, लेकिन इसके राजनीतिक मायने कहीं गहरे हैं. यह घटनाक्रम न केवल MVA और महायुति के समीकरणों को प्रभावित कर सकता है, बल्कि आने वाले समय में शरद पवार की NDA में भूमिका को लेकर भी नई बहस छेड़ चुका है. नगर निगम चुनाव सिर्फ स्थानीय सत्ता की लड़ाई नहीं रहे, बल्कि बड़े राजनीतिक बदलावों की प्रयोगशाला बन चुके हैं.
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