
मध्यप्रदेश के जंगल एक ऐसे रहस्यमय साए से जूझ रहे हैं जो थमने का नाम ही नहीं ले रहा. दो महीने पहले सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के सुरक्षा गार्ड हरीराम की रहस्यमयी हालात में मौत हुई थी, अब उसी इलाके में तवा नदी से एक बाघ का क्षत-विक्षत शव बरामद हुआ है. शिकारी उसके एक पंजे को बेरहमी से काटकर ले गए, जबकि शव बड़चापड़ा गांव के पास नदी के पानी में तैरता मिला. एनडीटीवी के हाथ लगे एक गोपनीय पत्र से यह खुलासा हुआ है कि खुद विभाग के शीर्ष अधिकारी लगातार बाघ और तेंदुओं की हो रही संदिग्ध मौतों पर चिंता जता चुके हैं. इसी बीच चूरना क्षेत्र में अवैध खनन और जंगलों की कटाई के आरोपों ने शक को और गहरा कर दिया है. विशेषज्ञों का कहना है कि जंगल के भीतर फैला यह समानांतर तंत्र वन्यजीवों और उनकी सुरक्षा दोनों पर भारी पड़ रहा है.
'असली वजह शिकारियों और अवैध खनन माफियाओं का गठजोड़'
फील्ड डायरेक्टर राखी नंदा, जो मौके पर पहुंचीं, उन्होंने पुष्टि की कि बाघ का एक पंजा गायब है, जबकि बाकी तीन सुरक्षित हैं. शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा गया है, लेकिन जिस तरह यह हत्या की गई उसने पूरे विभाग को झकझोर दिया है. जिले में यह दस दिन के भीतर दूसरी मौत है. 12 अगस्त को भी मड़ई कोर क्षेत्र में एक बाघ मृत मिला था, जिसे अधिकारियों ने आपसी संघर्ष बताकर टाल दिया था. लेकिन स्थानीय लोग और संरक्षणवादी मानते हैं कि सतपुड़ा में शिकार की प्रचुरता है और यहां बाघों के बीच ऐसी लड़ाइयां जानलेवा नहीं होतीं. उनका आरोप है कि असली वजह शिकारियों और अवैध खनन माफियाओं का गठजोड़ है.
प्रधान मुख्य वन संरक्षक के लेटर से खड़े हुए सवाल
इस आधिकारिक सफाई पर तब और सवाल खड़े हुए जब एनडीटीवी को 20 अगस्त का एक खत मिला. इसमें प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक और वन बल प्रमुख वी.एन. अंबाडे ने साफ लिखा, "पिछले 20–25 दिनों में ही 5 से 6 बाघ और तेंदुओं की मौत हो चुकी है. M-strips और मानसून गश्त जैसी व्यवस्थाओं के बावजूद अगर बाघ मरते हैं और स्थानीय स्टाफ को भनक तक नहीं लगती, तो यह सुरक्षा तंत्र की गंभीर कमजोरी है." उन्होंने बालाघाट में बाघ की मौत के बाद अधिकारियों की लापरवाही को “बेहद शर्मनाक और खेदजनक” कहा. साथ ही स्पष्ट निर्देश दिए कि वन्यजीव सुरक्षा विभाग की सर्वोच्च प्राथमिकता है और आगे कोई कोताही बर्दाश्त नहीं होगी.
'जंगल में अवैध खनन हो रहा है, अवैध कटाई हो रही है'
लेकिन जमीनी हकीकत इन आश्वासनों को ठेंगा दिखा रही है. सतपुड़ा में अनुमानित 64 बाघ और 500 से ज़्यादा कर्मचारियों के बावजूद जिनके पास हाथी, मोटरसाइकिल, नाव और पैदल गश्त जैसी सुविधाएं हैं, शिकारी इतनी आसानी से वार कैसे कर जाते हैं? वन्यजीव कार्यकर्ता अजय दुबे का कहना है, “जंगल में अवैध खनन हो रहा है, अवैध कटाई हो रही है… गड़बड़ियां हो रही हैं, बाघ मर रहे हैं… हंगामे के बावजूद गश्त नहीं हो रही.” विशेषज्ञ याद दिलाते हैं कि जून 2023 में भी चूरना इलाके से एक बाघ का सिर काटकर शिकारी ले गए थे. यानी यह इलाका लंबे समय से तस्करों का पसंदीदा ठिकाना है.
अब डर और अविश्वास का माहौल
अगस्त में दो बाघों की लाशें और पिछले दो महीनों में लगातार हो रही संदिग्ध मौतें, अब डर और अविश्वास का माहौल बना चुकी हैं. अधिकारी चाहे कितनी ही बार “आपसी संघर्ष” की कहानी दोहराएं, संरक्षणवादी साफ कहते हैं कि सतपुड़ा के जंगलों में बाघों का आपसी संघर्ष इतना आम नहीं है और अगर मौत संघर्ष से हुई भी होती तो शव कभी इस तरह क्षत-विक्षत हालत में न मिलते.
मध्यप्रदेश, जो खुद को देश की “टाइगर स्टेट” कहकर गर्व करता है, अब एक गहरी विडंबना में फंस गया है. प्रदेश के पास सबसे अधिक बाघों की संख्या है, लेकिन इसी साल सबसे ज्यादा मौतें (36) भी यहीं दर्ज हुई हैं. तवा नदी के किनारे मिला यह क्षत-विक्षत बाघ महज एक और आंकड़ा नहीं है, बल्कि यह डरावना सबूत है कि जंगल अब बाघ का सुरक्षित ठिकाना नहीं रहा. यहां वह शिकारी, खनन और लापरवाही की त्रासदी का शिकार है और उसकी दहाड़ धीरे-धीरे खामोशी में बदल रही है.
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